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प्राकृतिक आपदाओं के शिकार होने वाले लोगों का मानसिक संतुलन बनाये रखना एक बड़ी चुनौती

-विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर नूर मंजिल में आयोजित किया गया जागरूकता कार्यक्रम

सेहत टाइम्स
लखनऊ। नूर मंजिल में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ. शबरी दत्ता, डॉ. ए. राजपूत और डॉ. अंजली गुप्ता ने अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम है — “सेवाओं तक पहुंच : आपदाओं और संकट के समय में मानसिक स्वास्थ्य”। आज पूरी दुनिया प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हो रही है — कहीं बाढ़, कहीं भूकंप, कहीं आग, तो कहीं दुर्घटनाओं की पीड़ा। ये आपदाएं केवल शारीरिक नुकसान नहीं करतीं, बल्कि भावनात्मक और मानसिक स्तर पर भी गहरा आघात पहुँचाती हैं। यही वह पहलू है, जिस पर हमारा विशेष ध्यान आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि कैसे प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, भूकंप, आग और दुर्घटनाएं — कोविड-19 महामारी की तरह ही — लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित कर रही हैं। जिन लोगों ने अपना घर, भोजन, पानी और जीने की उम्मीद तक खो दी है, उनके लिए मानसिक संतुलन बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।

वक्ताओं का कहना था कि ऐसे समय में समाज और पेशेवर विशेषज्ञों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। समाज के लोग यदि सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर भोजन, वस्त्र, दवाइयाँ और आश्रय जैसी मूलभूत सहायता प्रदान करें, तो यह प्राथमिक उपचार (First Aid) का कार्य करेगा। द्वितीय स्तर पर, प्रभावित जनसंख्या के बीच व्याप्त भय, तनाव और घबराहट को कम करना आवश्यक है।

आपदा की स्थिति में लोग शोक (Bereavement), शोक-प्रक्रिया (Grief), बेघरपन (Homelessness), तनाव (Stressors) और विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हैं। ऐसे समय में उन्हें करुणा, सुनवाई और मनोवैज्ञानिक सहायता की अत्यंत आवश्यकता होती है। प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, काउंसलर और समाजसेवी मिलकर यदि ऐसी परिस्थितियों में भावनात्मक सहारा, समूह चर्चा, ध्यान (Meditation), और व्यवहारिक सहयोग प्रदान करें — तो यह न केवल मानसिक राहत देगा बल्कि जीवन में दोबारा आशा की किरण जगा सकता है।

इसके अतिरिक्त, समाज को चाहिए कि वे प्रभावित लोगों को सही दिशा में मार्गदर्शन दें —

* सही और सत्य जानकारी साझा करें,
* अफवाहों से दूर रहें,
* स्थानीय प्रशासन और सहायता केंद्र से संपर्क में रहें,
* सुरक्षित स्थान पर रहें,
* आशा, सकारात्मक सोच और ईश्वर पर विश्वास बनाए रखें।

जैसा कहा गया है — “जिसका कोई नहीं, उसका वही गुरु, वही भगवान होता है।”
इसीलिए कहा जाता है — “रोकथाम इलाज से बेहतर है।”
संकट के समय केवल ऊपरवाले से कृपा मांगने के बजाय, हर परिस्थिति में उसके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।

हमें अच्छे कर्मों पर विश्वास रखना चाहिए। जब हम सच्चे और सकारात्मक कर्म (Good Karma) करते हैं, तो संसार और सृष्टि (Universe) हमारे पक्ष में कार्य करने लगती है। ब्रह्मांड की ऊर्जा हमारे विचारों और कर्मों का प्रतिबिंब है — जब हम प्रेम, दया, सेवा और सत्य के मार्ग पर चलते हैं, तो वही ऊर्जा हमें सुरक्षा, सहारा और मानसिक शांति के रूप में लौटती है।

हमें महात्मा गांधी जी के सिद्धांतों को जीवन में उतारना चाहिए —
सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय (चोरी न करना) और लोभ से दूर रहना।
जब हम अपने रजोगुण और तमोगुण पर नियंत्रण पाते हैं और सात्त्विक गुणों को अपनाते हैं, तब हमें सच्चा संतोष, स्थिरता और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

यही विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का सच्चा संदेश है —
आशा, करुणा, सहयोग, अच्छे कर्म और आंतरिक शांति के माध्यम से एक स्वस्थ मन, स्वस्थ समाज और संतुलित ब्रह्मांड की ओर बढ़ना।

इस मौके पर लखीमपुर खीरी के सृजन कॉलेज ऑफ नर्सिंग के विद्यार्थियों ने नुक्कड़ नाटक के माध्यम से लोगों को जागरूक किया।

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