-लखनऊ, अयोध्या और उन्नाव जिलों के 100 पीएमएस चिकित्सकों की वर्कशॉप आयोजित
–कम्युनिटी कैंसर नेटवर्क : केजीएमयू’ विषय पर प्रथम वर्कशॉप का आयोजन
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सेहत टाइम्स
लखनऊ। कैंसर को प्राथमिक स्टेज पर ही डायग्नोज करना और उसका इलाज किया जाना एक बड़ी समस्या है, लेकिन यह अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि प्राथमिक स्तर पर डायग्नोसिस होने का नतीजा यह होगा कि कैंसर से उपचारित होने की संभावना कई गुना बढ़ सकती है, इसके लिए आम मरीज को उसके घर के नजदीक और जल्दी इलाज कैसे मिले इस दिशा में आज किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय केजीएमयू में शुरुआत हुई है। केजीएमयू के हॉस्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री यूनिट (एच बी सी आर) द्वारा “कम्युनिटी कैंसर नेटवर्क : केजीएमयू “ विषय पर प्रथम वर्कशाप का आयोजन किया गया। इस वर्कशॉप में पीएचसी, सीएचसी में कार्यरत लखनऊ, अयोध्या और उन्नाव के लगभग 100 चिकित्सकों ने भाग लिया।
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केजीएमयु कुलपति ले0 जन0 (डा0) बिपिन पुरी रहे। उन्होंने कैंसर रोगियों के मामलों को उन्नत चरण के बजाय प्रारंभिक चरण पर ही ठीक होने पर चर्चा की। इस पहल के लिए उन्होंने सम्मिलित सभी टीम को सराहा एवं बधाई दी। इस वर्कशाप का आयोजन पी एच सी (पेरीफेरल हेल्थ सेंटर ) व सी एच सी ( कम्युनिटी हेल्थ सेंटर ) और एच बी सी आर यूनिट (हॉस्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री) केजीएमयू के मध्य नेटवर्क स्थापित करने के लिए किया गया।
कार्यक्रम में एसजीपीजीआई की डॉ पुनीता लाल एवं केजीएमयू के डॉ राजेंद्र ने पैलियेटीव केयर सम्बन्धी जानकारी, इसकी उपयोगिता एवं आवश्यकता के सम्बन्ध में बताया।
केजीएमयू के डॉ एके त्रिपाठी ने अपने सम्बोधन में कहा कि कैंसर के मरीज की शीघ्र डायग्नोसिस इसलिए भी जरूरी है कि अगर कैंसर गुर्दे या लिवर में फैल जाता है तो दवा भी फायदा नहीं करती है, क्योंकि लिवर खराब होने से खाने वाली दवा का असर नहीं होगा, नतीजा यह है मरीज की मृत्यु भी जल्दी हो जाती है। डॉ त्रिपाठी ने कहा कि कैंसर रजिस्ट्रेशन से जुड़े इस कार्यक्रम का उद्देश्य कैंसर का इलाज ले रहे मरीजों की बार-बार केजीएमयू की दौड़ बचाना भी है। मरीज अपना फॉलोअप इलाज पीएचसी-सीएचसी पर स्थित चिकित्सक को दिखाकर कर सकता है। वहां तैनात चिकित्सक इलाज के सम्बन्ध में केजीएमयू के चिकित्सकों से ऑनलाइन परामर्श कर सकते हैं।
डॉ त्रिपाठी ने वर्कशॉप में भाग ले रहे चिकित्सकों से कहा कि बहुत बार ऐसा होता है कि कैंसर का पता चलते ही डॉक्टर सीधे केजीएमयू के लिए रेफर कर देते हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिये, उन्होंने कहा कि ऐसे में होता यह है कि अगर उस मरीज का हीमोग्लोबिन 2 या 3 है तो आनन-फानन में वह लखनऊ लेकर भागता है तो अनेक बार रास्ते में ही मौत हो जाती है। उन्होंने कहा कि इसके लिए चिकित्सकों को चाहिये कि वे मरीज का हीमोग्लोबिन टेस्ट करें और कम दिखने पर सीधे रेफर न कर वहीं खून चढ़ायें और हीमोग्लोबिन का स्तर ऊपर लायें, इस बीच चिकित्सक केजीएमयू को सूचना दे दें कि अमुक मरीज को भेजा जा रहा है, इससे यह होगा कि केजीएमयू में भी चिकित्सक को पहले से पता रहेगा कि इस नाम का और इस स्थिति का मरीज आ रहा है। इससे मरीज को शीघ्र भर्ती कर इलाज शुरू किया जाना संभव हो सकेगा।
डॉ त्रिपाठी ने बताया कि फिलहाल अभी लखनऊ, उन्नाव और अयोध्या जिलों से इस पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की जा रही है, और इसमें सफलता मिलने पर अन्य जिलों के लिए भी इसे लागू किया जा सकता है।
इस वर्कशाप में मुख्य रूप से पूर्व कुलपति डॉ एम एल बी भट्ट समेत डा0 कीर्ति श्रीवास्तव,डा0 अरुण चतुर्वेदी, महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य डॉ लिली सिंह, ज्वॉइंट डाइरेक्टर एनसीडी सेल चिकित्सा शिक्षा डॉ अलका शर्मा भी उपस्थित रहीं।
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