जितनी जल्दी इलाज, सफलता का प्रतिशत उतना ही ज्यादा
लखनऊ। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बच्चा जब पैदा होता है तो देखा जाता है कि उसके हाथ-पैर की उंगलियां आदि ठीक-ठाक तो हैं। जिन अंगों को देखा जा सकता है उन्हें तो देखकर पता चल जाता है लेकिन जहां तक कान की बात है तो दुर्भाग्य से कुछ बच्चों में ऐसा होता है कि वे सुनने में असमर्थ होते हैं या कम सुनते हैं, चूंकि इसका पता किसी के आवाज देने से तो लगेगा नहीं क्योंकि पैदा हुआ शिशु किसी की बात का उत्तर तो दे नहीं सकता है, इसलिए यह आवश्यक है कि इसकी जांच जितनी जल्दी हो जाये उतना अच्छा है क्योंकि उसका इलाज भी उतनी ही जल्दी हो सकेगा। बिल्कुल न सुनने वाले शिशु को कॉकलियर इम्प्लांट लगाने की जरूरत पड़ती है। यह इम्प्लांट बच्चे की 6 माह से 2 साल की उम्र के बीच में लग जाये तो इसका परिणाम अच्छा आने की संभावना रहती है।
इसी विषय पर आज किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय (केजीएमयू) के सेल्बी हॉल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मुम्बई से आयीं सुश्री जसपाल चौधरी ने प्रो आरएन मिश्र मेमोरियल व्याख्यान दिया। “Neurological emergency in audio verbal therapy”. विषय पर अपने व्याख्यान में उन्होंने कॉकलियर इम्प्लांट के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि समय पर इसका इम्प्लांट के साथ ही इस टाइप के बच्चों से किस तरह से बात की जाये इसके बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि इसके लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। ऐसे प्रशिक्षण देने वाले लोगों की काफी कमी है।
इससे पूर्व कार्यक्रम का उदघाटन कुलपति प्रो एमएलबी भट्ट ने किया। इस मौके पर आमंत्रित अतिथियों में ईएनटी विभाग के पूर्वविभागाध्यक्ष प्रो एससी मिश्र, पूर्वविभागाध्यक्ष प्रो जीके शुक्ला, डॉ पुष्पा भट्ट, बाल रोग विभाग की पूर्वविभागाध्यक्ष प्रो बीना शर्मा उपस्थित रहे। इस मौके पर ईएनटी विभागाध्यक्ष डॉ अनुपम मिश्र, डॉ वीरेन्द्र वर्मा सहित अन्य चिकित्सक भी उपस्थित रहे।
केजीएमयू में फ्री में उपलब्ध कराया जाता है कॉकलियर इम्प्लांट
विभागाध्यक्ष डॉ अनुपम मिश्र ने बताया कि भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से उपलब्ध सहायता से यहां कॉकलियर इम्प्लांट फ्री में उपलब्ध कराये जाते हैं। इसके अलावा क्वीनमेरी में डॉ वीरेन्द्र वर्मा वहां पैदा होने वाले बच्चों की श्रवण शक्ति की जांच करते हैा