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बस…बहुत हो चुका… कानून की तलवार से झूठ के पंख काटने का समय आ गया है अब…

-सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न होने से बचाना होगा

लखनऊ। अब नहीं तो कब ? नाली में कचरा फंसने पर जब गंदा पानी भरता है तो भरा हुआ गंदा पानी उलीचने से भी ज्यादा जरूरी होता है फंसा हुआ कचरा निकालना ताकि पानी बाहर जाने का रास्ता साफ हो, और यही लोग करते भी हैं। कुछ इसी तरह करने की जरूरत आज देश के सामने है। किसी भी मसले पर झूठ बोलकर जिसके मुंह में जो आया, जिसके प्रति आया उसने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कह दिया। संविधान निर्माताओं ने यह सोचकर तो अभिव्यक्ति की आजादी नहीं दी होगी कि लगातार झूठ बोलकर इस अधिकार का दुरुपयोग करते रहो, भले ही उसका परिणाम समाज पर कैसा भी पड़े। देश के लिए नासूर बनती जा रही इस समस्या की तुरंत सर्जरी करनी आवश्यक हो गयी है, वरना यह तीसरे और चौथे स्टेज का कैंसर बन जायेगा।

21वीं सदी तक पहुंचते-पहुंचते हमने बहुत तरक्की की है, जिस पर हम गर्व कर सकते हैं, और करना भी चाहिये, लेकिन साथ ही नैतिकता के गर्त में गिरने में तरक्की करने वालों की भी कमी नहीं है। नैतिकता को तार-तार करने वाले भी पूरे जोशो-खरोश के साथ बेशर्म बनकर अट्टहास लगा रहे हैं। श्री रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने सदियों पहले लिख दिया था कि भय बिन होये न प्रीति। इस सीख को हमें सिर्फ समझना ही नहीं होगा, अपने सिस्टम में उतारना होगा। यानी कि सजा और जुर्माना ऐसा हो कि दूसरों के लिए नजीर बने और अपराध करने से पूर्व व्यक्ति की रूह कांप जाये।

हमारे देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है, इसके तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी पद पर पहुंच सकता है, इलेक्ट होकर या सिलेक्ट होकर। राजनीति ऐसी ही विधा है जहां इलेक्ट होकर ही नेता किसी भी कुर्सी तक पहुंच सकता है। राजनीतिक गलियारों में अब झूठ का बाजार बहुत ज्यादा बढ़ चुका है। इसके लिए एक सख्त कानून लाने की आवश्यकता है। जाहिर है जिन राजनेताओं की दुकान इसी झूठ को बेचकर चल रही है, उन्हें इस कानून के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं होगी, लेकिन यही उनकी चूक साबित हो सकती है। उन्हें यह समझना होगा कि इस झूठ का सहारा तो उनके प्रतिद्वंद्वी भी ले सकते हैं, आज वे झूठ की कमाई खा रहे हैं, कल को उनके विरोधी भी तो झूठ की कमाई खा सकते हैं, क्योंकि जब झूठ-झूठ का खेल खेलेंगे तो हमेशा बाजी एक ही खिलाड़ी तो जीतेगा नहीं, दूसरा भी जीत सकता है।

यहां बात सिर्फ इतने तक ही सीमित नहीं है कि कभी कोई राजनीतिक दल, कभी कोई पार्टी झूठ की कमाई खा लेगा, इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे जनतंत्र को कितना नुकसान हो रहा है, जन ऐसे तंत्र में फंसता जा रहा है, जिसमें उलझकर एक दिन वह दम तोड़ देगा। आज जनता जब अपने राजनेताओं को विवाद करते और उसके चलते देश की स्थिति खराब होते देखती है तो उसके अंदर कुढ़न, रोष, गुस्सा उठता है, उससे उसका कार्य, उसकी मन:स्थिति प्रभावित होती है। यही चलता रहा तो इसका परिणाम गंभीर भी हो सकता है।

आज जरूरत इस बात की है कि एक ऐसा कानून आये जिसमें यह प्रावधान हो कि ऐसा झूठ जो किसी व्यक्ति की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, देश को नुकसान पहुंचा सकता है, समाज में हिंसा भड़का सकता है, कहने का अर्थ है कि वह झूठ जिसका गंभीर असर हो सकता है, ऐसे झूठ को इस कानून के दायरे में लाना चाहिये। जब कोई इस कैटेगरी वाले झूठ को बोलकर अपने विरोधी पर आरोप लगाये और अगर वह झूठ साबित हो तो आरोप लगाने वाले को कड़ी सजा, कड़ा जुर्माना का प्रावधान हो। यही नहीं इस तरह के वाद को शीघ्र निपटाने के लिए अनिवार्य रूप से वैज्ञानिक उपकरणों लाई डिटेक्टर, पॉलीग्राफी मशीन का सहारा लिया जाये। चूंकि वर्तमान प्रावधान के अनुसार ऐसी मशीनों से टेस्ट के लिए उस व्यक्ति की सहमति की भी आवश्यकता होती है, लेकिन इस प्रावधान में संशोधन करते हुए इस टेस्ट को अनिवार्य किया जाना चाहिये। हालांकि इस तरह का कानून बनाना, प्रावधान में संशोधन करना आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं है। इसके लिए जरूरी है कि जिम्मेदार लोग इसे करने के प्रति कितने ईमानदार हैं। यह तो ऐसा मुद्दा है जिस पर दलगत राजनीति को अलग रखते हुए देश की मौजूदा और आने वाली पीढ़ी को सम्मान के साथ जीने का अधिकार देने के प्रति कितने लोग संजीदा हैं इस ओर ध्यान देना चाहिये।

इस कानून को एक फॉर्मूले की तरह विभिन्न प्रकार के अपराधों पर लागू करके देखिये, कोलकाता में रेप और हत्या का मामला हो, या बच्चियों के साथ रेप का मामला, पुलिस भर्ती परीक्षा में पेपर आउट होने की झूठी खबर फैलाना हो, या फिर अफवाह फैलाकर हिंसा भड़काना हो, सभी तरह के अपराधों पर इस कानून का असर पड़ेगा ही पड़ेगा, और जब ऐसा होगा तो अपराध का ग्राफ गिरना तय है। इसके साथ ही आवश्यक है इन केसेज पर तय समयसीमा में न्यायालय से निर्णय होना। येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने की चाह रखने वाले नेताओं को यह सोचना होगा ​कि कम से कम झूठ की नींव पर अपनी सत्ता न खड़ी करें क्योंकि इस तरह से सत्ता हासिल करके तात्कालिक आनंद तो मिल सकता है लेकिन ऐसा करके वे उस पेड़ को काट रहे हैं, जिसकी डाल पर वह स्वयं भी बैठे हैं। रही बात सत्ता में आने की तो बहुत से ऐसे मसले हैं जिनपर अच्छा कार्य करके आप जनता के दिलों पर राज कर सकते हैं। आपके प्रतिद्वंद्वी ने सत्ता हासिल करने के लिए जो लाइन खींची है, उससे बड़ी लाइन खींचिये और उसकी लाइन को छोटा कर दीजिये।

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