जनता की गाढ़ी कमाई के अरबों रुपयों से बने संस्थान में लापरवाही
लखनऊ. सरकारी अस्पतालों का रवैया नहीं सुधर रहा है. कहीं न कहीं से लापरवाही की ख़बरें आती ही रहती हैं. ऐसा ही एक और मामला सामने आया है. जनता की गाढ़ी कमाई के अरबों रुपये खर्च करके बनाये गए राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर स्थित लोहिया संस्थान में आज एक मरीज की जान सिर्फ इसलिए चली गयी कि वहां एक अदद स्ट्रेचर नहीं था. बहराइच के रहने वाले मरीज अमरेश बहादुर सिंह को गाड़ी में ही करीब आधा घंटा तड़पते रहे और अंत में उनकी मौत हो गयी.
इस लापरवाही के बारे में मरीज के परिजन ने बताया कि अमरेश बहादुर का यहाँ लोहिया संस्थान में बीती फरवरी महीने से डॉ. गौरव गुप्ता के पास कीमोथेरपी से कैंसर का इलाज चल रहा था. मरीज की कल बुधवार को चौथी बार कीमोथेरपी होनी थी. परिजन के अनुसार कीमोथेरपी से पूर्व ब्लड की जांच के लिए आज सुबह लोहिया संस्थान में ही ब्लड टेस्ट कराया था. उन्होंने बताया कि आज ब्लड टेस्ट कराने के बाद लखनऊ में ही रहने वाले रिश्तेदार के यहाँ रुक गए ताकि कल कीमोथेरपी कराई जा सके. परिजनों ने बताया कि घर पर मरीज की तबियत जब खराब होने लगी तो वे लोग शाम को करीब पौने पांच बजे गाड़ी से लेकर लोहिया संस्थान की ओपीडी नंबर 3 में पहुंचे, यह ओपीडी शाम को चलती है.
परिजनों का कहना है कि वहां पहले तो डॉक्टर अपनी सीट पर नहीं थे, जैसे-तैसे उन्हें ढूंढ़ा गया, फिर जब मरीज को लाने के लिए स्ट्रेचर की बात आई तो डॉक्टर ने कहा कि वार्ड बॉय से कहिये, परिजनों के अनुसार जब वार्ड बॉय से कहा गया तो उसने यह जिम्मेदारी भी उसने परिजनों पर ही सौंप दी. उसने कहा कि स्ट्रेचर आप लोगों को लाना चाहिए. परिजन ने बताया कि फिर वार्ड बॉय ने उनसे कहा कि ओपीडी नंबर 1 से स्ट्रेचर ले आईये, दौड़-भाग कर स्ट्रेचर लेने जब परिजन ओपीडी नंबर 1 पहुंचे तो वहां स्ट्रेचर जंजीर से बंधा हुआ था. इन्हीं सब बातों में करीब आधा घंटा निकल गया और मरीज ने गाड़ी में ही दम तोड़ दिया.
परिजनों का आरोप है कि डॉक्टर और वार्ड बॉय दोनों का रवैया लापरवाही वाला रहा अगर समय रहते मरीज को देख लिया जाता तो जान बच सकती थी. परिजन ने बताया कि फिलहाल अफरा-तफरी के बीच अभी इसकी मौखिक शिकायत की है, लिखित में शिकायत भी की जाएगी. इस बारे में जब संस्थान के निदेशक डॉ. दीपक मालवीय से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ऐसा मामला मेरी जानकारी में आया है, हालांकि स्ट्रेचर की कमी आमतौर पर रहती नहीं है, वैसे इस मामले में मैंने अधीक्षक को जांच करने को कहा है.

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