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नरेन्द्र मोदी को बताया 21वीं सदी का सम्राट विक्रमादित्य

-‘इतिहास के पन्नों में सम्राट विक्रमादित्य’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

सेहत टाइम्स

लखनऊ। विक्रमादित्य सिर्फ किसी सम्राट का नाम नहीं है बल्कि यह एक विचारधारा है जिसे सम्राट विक्रमादित्य के बाद के प्रतापी राजाओं के नाम के साथ जोड़ा गया इस प्रकार अब तक लगभग 16 विक्रमादित्य हो चुके हैं…विक्रमादित्य हर युग में हुए हैं…प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अगर 21वीं सदी का विक्रमादित्य कहा जाये तो क्या गलत है… सम्राट विक्रमादित्य राम जन्मभूमि को खोजते हुए अयोध्या गए थे…

ये वे तथ्य हैं जिन्हें शनिवार 17 फरवरी को यहाँ नवयुग कन्या महाविद्यालय में ‘इतिहास के पन्नों में सम्राट विक्रमादित्य’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में वक्ताओं ने अपने विचारों में रखे। संगोष्ठी का आयोजन नव वर्ष चेतना समिति एवं नवयुग कन्या महाविद्यालय लखनऊ द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। संगोष्ठी के  मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन तथा मुख्य वक्ता के रूप में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन मंत्री संजय जी उपस्थित रहे।

प्रभात रंजन ने कहा कि मैं हमेशा स्वतंत्र पत्रकार रहा हूं मेरी चिंतन शैली मुक्त है और अपनी इस मुक्त चिंतन शैली से मेरे विचार हैं कि सम्राट विक्रमादित्य का शासन काल और वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में बहुत समानता है।  उन्होंने कहा कि नवरत्नों का कॉन्सेप्ट राजा विक्रमादित्य का है जिसे इतिहासकारों ने गलत तरीके से अकबर का बता कर विक्रमादित्य को महिमा मंडित न करके अकबर को महिमा मंडित किया।  उन्होंने कहा कि जिस प्रकार सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में कालिदास, धनवंतरि जैसे नवरत्न थे जो उनके सुशासन को चलाने में सहयोगी थे, इसी प्रकार वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने साथ नवरत्नों को रखा है। उन्होंने इन नवरत्नों में अमित शाह, निर्मला सीतारमण, नितिन गडकरी, अजीत डोभाल, जयशंकर आदि के नाम गिनाये। उन्होंने कहा कि पुराने समय में राजा अपने राज्य की जमीन का क्षेत्रफल बढ़कर अपना साम्राज्य बढ़ाते थे जबकि आजकल प्रतिष्ठा का साम्राज्य बढ़ता है। वर्तमान में अगर भारत की प्रतिष्ठा वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है तो यह प्रधानमंत्री मोदी की ही देन है, ऐसे में अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 21वीं सदी का विक्रमादित्य कहा जाए तो क्या गलत होगा।

राम जन्मभूमि को खोजते हुए अयोध्या गए थे सम्राट विक्रमादित्य

उन्होंने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य राम जन्मभूमि को खोजते हुए अयोध्या गए थे उन्होंने कहा कि सम्राट विक्रमादित्य जब अयोध्या पहुंचकर राम जन्मभूमि की तलाश कर रहे थे उसे समय उन्होंने देखा कि घोड़े पर सवार एक काला व्यक्ति आया, जिसने सरयू में डुबकी लगाई लेकिन जब वह डुबकी लगाकर निकला तो उसका शरीर सफेद हो गया था। जिज्ञासावश राजा विक्रमादित्य ने उस व्यक्ति से पूछा कि आप कौन हैं और यह काले से गोरे कैसे हो गए तो उस व्यक्ति ने उन्हें बताया कि मैं प्रयागराज हूं, लोग मेरे तट पर अपने पाप धोने आते हैं, जिन्हें मैं आत्मसात कर लेता हूं और उसी की वजह से मैं काला हो जाता हूं, उन लोगों के इस पाप को धोने के लिए मैं यहां सरयू में आता हूं। राजा विक्रमादित्य ने उनसे भी राम जन्मभूमि का पता पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम काशी चले जाओ, जब राजा विक्रमादित्य काशी पहुंचे तो वहां उन्हें एक व्यक्ति मिला जिससे उन्होंने राम जन्म भूमि के बारे में पूछा तो उस व्यक्ति ने विक्रमादित्य को एक गाय देते हुए कहा कि यह गाय जहां पर दूध देने लगेगी, वही राम जन्मभूमि है।  बताया जाता है कि वह व्यक्ति और कोई नहीं स्वयं भगवान शंकर थे। इसके बाद विक्रमादित्य जब गाय लेकर चले तो वह अयोध्या में आकर एक स्थान पर रुक कर रम्भाने लगी और दूध देना शुरू कर दिया। बताया जाता है वह स्थान गर्भगृह था, जहां आज भव्य राम मंदिर बन चुका है।  प्रभात रंजन ने एक बड़ी बात कहते हुए बताया कि जब राम जन्म भूमि आंदोलन चल रहा था उस समय उन्होंने इस आंदोलन में  महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महंत अवैद्यनाथ से जब यह प्रश्न किया कि आप साधु संत इस राजनीतिक आंदोलन में क्यों लगे हुए हैं, तो महंत अवैद्यनाथ ने जवाब दिया था कि यह आंदोलन राजनीतिक नहीं, बल्कि सनातन की दो धाराओं शैव और वैष्णव को आपस में मिलाने की प्रक्रिया है।

विक्रमादित्य सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि एक विचारधारा

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता संजय जी ने कहा कि विक्रमादित्य सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि एक विचारधारा है, उन्होंने कहा कि अब तक लगभग 16 विक्रमादित्य हो चुके हैं उन्होंने बताया कि मूल रूप से जो राजा विक्रमादित्य थे उनके विचारों का प्रभाव दूसरे राजाओं पर इतना ज्यादा पड़ा कि वह अपने नाम के आगे विक्रमादित्य जोड़ने लगे।  उन्होंने कहा कि बहुत बार विक्रमादित्य के सत्य को मिटाने की कोशिश की गई है लेकिन कोई मिटा नहीं पाया है और न ही मिटा सकेगा। उन्होंने कहा कि निराश होने की बात नहीं है क्योंकि हमेशा यह कहा गया कि अगली पीढ़ी विक्रमादित्य को भुला देगी, लेकिन अगली पीढ़ी ने हमेशा अपने आप को साबित किया है।

उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय स्तर पर भारतीय संस्कृति से संबंधित कई अनुसंधान शेष हैं। इसके लिए अभी और भी जानकारी संकलित की जानी शेष हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के गौरव के निर्माण मे क्षेत्र विशेष के सामान्य लोगो के योगदान को भी लिपिबद्ध किया जाना चाहिए। विक्रमादित्य पर 962 दिगम्बर जैनियों की पुस्तकें उपलब्ध हैं। उन्होंने उज्जयिनी में 1964-65 में हुए उत्खनन की रिपोर्ट और उज्जैन से 35 किलो मी0 दूर जल के स्रोत से उपलब्ध विक्रमादित्य के अभिलेख की भी चर्चा की।

नव वर्ष चेतना समिति के अध्यक्ष डॉ गिरीश गुप्ता ने अपने संबोधन में समिति के गठन के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष 2009 में इसका गठन हुआ था जिसमें मुख्य भूमिका लखनऊ के पूर्व महापौर डॉ एससी राय की थी। डॉक्टर राय ने उन्हें अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपा था. जिसे वह अब तक निभा रहे हैं। उन्होंने कहा की सम्राट विक्रमादित्य को इतिहास के पन्नों से हटा दिया गया और उन्हें भुलाने की कोशिश की गई। उन्होंने कहा कि विक्रम संवत का कैलेंडर जो ईसा के पूर्व से चल रहा था जिसे बड़े-बड़े आक्रांता नहीं बदल पाए उस कैलेंडर को लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजों के साथ मिलकर बदलवा दिया और देश की जनता पर थोप दिया।

कार्यक्रम के अन्त में प्राचार्या प्रो0 मंजुला उपाध्याय ने  धन्यवाद ज्ञापन किया और इतिहास के अनसुलझे बिन्दुओं पर चर्चा करने के लिए मुख्य वक्ता को पुनः महाविद्यालय में पधारने का  निवेदन भी किया। कार्यक्रम का अन्त राष्ट्रगान से हुआ। इस मौके पर प्रोफेसर संगीता शुक्ला, विभागाध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व, नवयुग कन्या महाविद्यालय, नववर्ष चेतना के समिति सचिव सुनील अग्रवाल, प्रवक्ता प्रो0 संगीता कोतवाल, शर्मिता नन्दी, सृष्टि श्रीवास्तव आदि सहित अजय सक्सेना, ओमप्रकाश पाण्डेय, अरुण मिश्रा, डॉ0 निवेदिता रस्तोगी और डॉ0 रश्मि श्रीवास्तव आदि सम्मिलित हुए।

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