Wednesday , October 11 2023

उपलब्धि : प्रसव के दौरान रक्‍तस्राव के केस को इस तरह संभाला

-तीन विभागों के बेहतर तालमेल के चलते सफल हो सकी प्रक्रिया
-केस को लेकर केजीएमयू में बहु विभागीय संगोष्‍ठी का आयोजन

सेहत टाइम्‍स
लखनऊ।
प्रसव के दौरान होने वाली माताओं की मृत्यु का एक प्रमुख कारण प्रसव पश्चात होने वाला रक्त स्राव Placenta accreta है। यह 1000 में से पांच महिलाओं में होता है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग के क्वीन मैरी हॉस्पिटल में एक महिला को इस जटिल स्थिति से बचाते हुए सुरक्षित प्रसव कराने में यहां की चिकित्सकों को सफलता प्राप्त हुई है।

इस जटिल प्रक्रिया को लेकर आज केजीएमयू में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें कई विभाग के चिकित्‍सकों ने हिस्सा लिया और डिलीवरी में होने वाले रक्त स्राव Placenta accreta की समस्या को कम करने के उपायों पर विचार-विमर्श किया। आपको बता दें प्लेसेंटा एक्रेटा गर्भावस्था के दौरान होने वाली ऐसी समस्या है जिसमें प्‍लेसेंटा गर्भाशय से चिपक जाता है और कभी-कभी गर्भाशय से बाहर भी फैल जाता है। इसकी वजह से डिलीवरी के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव होने की संभावना होती है एवं मां की जान जाने का खतरा बढ़ जाता है।

विभाग द्वारा दी गयी जानकारी में बताया गया है कि बहु विभागीय संगोष्ठी में ऑब्‍स एंड गायनी विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर उमा सिंह, रेडियो डायग्नोसिस की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नीरा कोहली और एनेस्थीसिया विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जीपी सिंह द्वारा विभिन्न उपायों पर विचार विमर्श किया गया।

प्लेसेंटा एक्रेटा के जिस केस को यहां उपचारित किया गया है उसके बारे में जानकारी देते हुए बताया गया कि साडे 8 महीने की गर्भवती सुल्तानपुर निवासी महिला केजीएमयू के क्‍वीनमैरी अस्पताल में इस गंभीर समस्या के साथ प्रोफेसर निशा सिंह की यूनिट में भर्ती हुई थी। इस महिला का ऑपरेशन करने की तैयारी पूरी करके इंटरवेंशन रेडियोलॉजी में गर्भाशय की नसों में बैलून डालने के लिए भेजा गया था। बताया जाता है कि शिशु का जन्म होने के बाद नसों में डाले गए दोनों बैलून को लगभग 30 मिनट तक फैला कर रखा गया ताकि रक्तस्राव को रोका जा सके।

जारी विज्ञप्ति में बताया गया है कि इस पद्धति का उपयोग ऑपरेशन में होने वाले रक्त स्राव को रोकने के अलावा उन महिलाओं में भी कर सकते हैं जो बच्चेदानी निकलवाने की इच्छुक नहीं है और इस तरह हम उनको भविष्य में दोबारा गर्भवती होने का अवसर प्रदान कर सकते हैं। बताया गया कि यह बैलून इन्फ्लेशन प्रोसीजर रेडियोग्राम विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर नीरा कोहली, प्रोफेसर अमित, प्रोफेसर मनोज कुमार और डॉ दुर्गेश द्विवेदी के निर्देशन में विभाग में कार्यरत डॉ मेजर नितिन अरुण दीक्षित, डॉ सौरभ कुमार और डॉ सिद्धार्थ मिश्रा द्वारा किया गया। गर्भवती महिला का ऑपरेशन ऑब्‍स एंड गायनी विभाग की डॉ निशा सिंह, डॉ सुचि‍ अग्रवाल, डॉ शिल्पा सिंह द्वारा किया गया। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान विभाग के डॉ मनीष कुमार ने विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जीपी सिंह के निर्देशन में अतुलनीय योगदान दिया। इस प्रकार के प्रथम ऑपरेशन के लिए कुलपति लेफ्ट‍िनेंट जनरल डॉ बिपिन पुरी ने समस्त टीम और विभागाध्यक्ष को बधाई देते हुए उनके द्वारा किए गए कार्य की सराहना की है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.