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केजीएमयू की टीम ट्रॉमा ने फि‍र सिद्ध की श्रेष्‍ठता, सांस की कटी नली वाले मरीज की बचायी जान

-धारदार हथियार से हुआ था हमला, आहार नली को भी पहुंचा था नुकसान

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय (केजीएमयू) के ट्रॉमा सर्जरी की टीम ने एक बार फि‍र साबित कर दिया कि क्रिटिकल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाना उनकी आदत बन गयी है, यह आदत जहां लोगों की जान बचाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है, वहीं संस्‍थान की उपयोगिता और श्रेष्‍ठता भी सिद्ध करती रहती है।

पूर्व में कई बार शरीर में आर-पार हो चुकी सरिया को सर्जरी से सफलतापूर्वक निकालने वाली ट्रॉमा सर्जरी के इंचार्ज डॉक्टर संदीप तिवारी, डॉक्टर समीर मिश्रा और उनकी टीम ने अब 19 वर्षीय युवक जिसके गले पर धारदार हथियार से वार किया गया था और उससे उसकी सांस की नली भी कटी हुई थी ऐसे मरीज को टीम ट्रॉमा ने 3 घंटे की लंबी सर्जरी और 7 घंटे की गहन मॉनीटरिंग के बाद बचाया सर्जरी के 12 दिन बाद अब मरीज ठीक है और उसको अस्पताल से छुट्टी देने की तैयारी है। यहां गौरतलब यह है की यह जटिल सर्जरी इस कोविड काल के दौरान की गई, जिसमें चिकित्सकों ने कोविड की रिपोर्ट का इंतजार किये बिना जान बचाने को प्राथमिकता देते हुए अपने कार्य को अंजाम दिया।

सर्जरी के बारे में ट्रॉमा सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ संदीप तिवारी ने बताया कि बलरामपुर जिले के रहने वाले 19 वर्षीय युवक रिंकू तिवारी को बीती 10 सितंबर को सुबह 10 बजे ट्रॉमा सेंटर लाया गया था, बताया गया कि युवक पर साढ़े सात घंटे पूर्व यानी 9-10 सितम्‍बर की रात्रि डेढ़ बजे किसी धारदार हथियार से हमला कर उसके गले पर वार किया गया था। बलरामपुर जिले में सीएचसी, जिला अस्‍पताल, बहराइच जिला अस्‍पताल होता हुआ मरीज यहां केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर पहुंचने पर डॉ संदीप तिवारी, डॉ समीर मिश्रा, डॉ यादवेंद्र धीर और डॉ हर्षित अग्रवाल की टीम ने युवक को देखा तो मरीज की हालत बहुत गंभीर थी और उसे सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी उसका ऑक्सीजन लेवल भी बहुत कम था। कोरोना काल के चलते डॉक्टरों की टीम ने तुरंत ही पीपीई किट व एन 95 मास्क लगाकर मरीज का प्राथमिक परीक्षण और उपचार किया।

जांच से पता चला कि मरीज की ट्रैकिया (सांस की नली) कटी हुई है और आहार नली में भी इंजरी की आशंका थी, मरीज की कोविड जांच तुरंत कराई गई लेकिन चूंकि चिकित्सकों के सामने समय न गंवाने की चुनौती थी इसलिए तुरंत ही मरीज को इमरजेंसी में ही सांस की नली में जहां इंजरी थी वहां से सांस की नली डाल दी गई जिससे मरीज सांस ले सकता था। उन्‍होंने बताया कि यह प्रोसीजर करने में एरोसॉल जेनरेटिंग होने की वजह से कोरोना का संकट डॉक्टरों पर भी आने की संभावना थी लेकिन डॉ यादवेंद्र धीर ने यह खतरा उठाते हुए ट्रैकिया (सांस की नली) में सीटी करने का जोखिम उठाया इसके बाद टीम के अन्य सदस्यों ने मरीज का इमरजेंसी में ही ऑपरेशन करने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि चूंकि मरीज की जनरल कंडीशन बीच-बीच में अनियंत्रित हो रही थी, इसलिए डॉक्टरों ने कुछ समय के लिए सर्जरी को टालना उचित समझा एवं ब्लड एवं अन्य प्राणरक्षक दवाओं के माध्यम से उसकी कंडीशन सामान्य करने का प्रयास किया जब उसके सभी पैरामीटर नियंत्रण में आ गए तो सर्जरी करने का निर्णय लिया गया। गले की कटी हुई शिराओं एवं खून की धमनियों को दृष्टिगत रखते हुए पूरी तैयारी के साथ ऑपरेशन शुरू किया गया इसमें सांस की नली, आहार नली, मांसपेशियां एवं खून की धमनियों को रिपेयर किया गया। इसके बाद डॉक्टरों की टीम ने वहीं पोस्ट ऑपरेशन वार्ड में करीब 7 घंटे तक मॉनिटरिंग की। जब मरीज के वाइटल एवं हालत स्थिर हो गई तब डॉक्टरों ने चैन की सांस ली। आज अपनी मेहनत को सफल होते देख डॉक्टरों की टीम प्रफुल्लित है तो दूसरी ओर मरीज रिंकू डॉक्टरों का आभार व्यक्त करते नहीं थक रहा है।