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ट्रॉमा में उखड़ती सांसों को विभागों ने थमने नहीं दिया

अफरा-तफरी के मंजर में गजब का जज्बा दिखाया विभागों ने

मेडिसिन, सर्जरी, आर्थो, न्यूरो सर्जरी व बाल रोग विभागों में हुआ बेहतरीन प्रबन्धन

सडक़ पार लारी कार्डियोलॉजी भी नहीं रहा पीछे

पदमाकर पांडेय पद्म

लखनऊ। बीते शनिवार को ट्रामा सेंटर और भर्ती मरीजों की काली शाम को सफेद करने में नि:संदेह ट्रॉमा में मौजूद डॉक्टरों , पीआरओ, कर्मचारी, वार्ड ब्वॉय व सुरक्षागार्ड आदि की फौज ने धुएं से भरे वार्डों से मरीजों को बाहर निकाल कर बेहद सराहनीय कार्य किया, मगर इतनी बड़ी विपत्ति से उबरने में दूसरे विभागों में डॉक्टर व स्टाफ ने भी सराहनीय योगदान दिया है। ट्रॉमा से भेजे जाने वाले मरीजों की उखड़ रही सांसों को विभागों में ही निरंतरता मिली। तारीफ करनी होगी, लारी कार्डियोलॉजी, शताब्दी में न्यूरो सर्जरी, गांधी वार्ड व बाल रोग विभाग के डॉक्टर व स्टाफ की, जिन्होंने आने वाले हर मरीज को हाथोंहाथ लिया और इलाज उपलब्ध कराया।
ट्रॉमा सेंटर में कुलपति प्रो.एमएलबी भट्ट, सीएमएस डॉ.एसएन संखवार, डॉ.अविनाश अग्रवाल, एमएस डॉ.विजय कुमार, डॉ.अब्बास अली मेंहदी, डॉ विनोद जैन, डॉ.अजय वर्मा समेत पैरामेडिकल स्टाफ में पीआरओ राजेश श्रीवास्तव, प्रदीप गंगवार, विकास सिंह, और गौतेन्द्र चौधरी देवदूत बनकर लोगों का जीवन बचा रहे थे वहीं लारी कार्डियोलॉजी विभाग ने भी शानदार भूमिका निभाई, आग की खबर मिलते ही न केवल मौजूद स्टाफ ट्रॉमा पहुंच गया, बल्कि सबसे पहले ट्रॉमा के मरीजों को लारी इमरजेंसी में भी शिफ्ट किया जाने लगा। जहां एचओडी प्रो.वीएस नारायण व प्रो.एसके द्विवेदी ने मौके पर पहुंच कर रेजीडेंंट डॉक्टर, डॉ.वृशंक बजाज, डॉ.विनय गुप्ता व डॉ.राजा राम शर्मा के साथ मिलकर मोर्चो संभाल लिया। वहीं पीआरओ चन्द्र प्रकाश,पुष्पेन्द्र कुमार यादव व लालजी उपाध्याय खुद स्टे्रचर घसीट-घसीट कर मरीजों को अंदर वार्डो में शिफ्ट कराते रहे, और इलाज के संसाधन मुहैय्या कराने में जुटे रहे। आनन फानन में करीब ढाई दर्जन मरीजों को लारी लाया गया था, शताब्दी में व्यवस्था बनते ही सर्जरी व ऑर्थो के मरीजों शिफ्ट किया गया, जबकि छह मरीजों को लारी में भी भर्ती रखा गया। इसी प्रकार शताब्दी अस्पताल के ग्राउंड फ्लोर पर रेडियो विभाग में सर्जरी व ऑर्थो के मरीजों की वैकल्पिक व्यवस्था हुई ओर सर्जरी में डॉ.अनिता, डॉ.अनूप, डॉ.वैभव, डॉ.नरेन्द्र और रेजीडेंट डॉ. अंकित, डॉ.सपना व डॉ.उधम ने मोर्चा संभाला था, जबकि ऑर्थो में डॉ.अजय सिंह, डॉ.संतोष कुमार, डॉ.अभिषेक रेजीडेंट डॉक्टरों के साथ देर रात तक जुटे रहे। वे ट्रॉमा भी जाते थे और शताब्दी भी। इसी प्रकार न्यूरो सर्जरी विभाग में एचओडी प्रो.बीके ओझा के निर्देशन में डॉ.क्षितिज, डॉ.सुनील डॉ.सोमिल एवं रेजीडेंट डॉक्टर्र्स के प्रयास अथकनीय रहे। इसके बाद सबसे ज्यादा दबाव गांधी वार्ड में था, जहां पहले से मौजूद प्रो.कौसर उस्मान, प्रो. सत्येन्द्र सोनकर, प्रो.कमल सावलानी हर आने वाले मरीजों को देख रहे थे और रेजीडेंट डॉक्टर्स डॉ.मनू शर्मा, डॉ.मुकेश शुक्ल, डॉ.जयंत, डॉ.दीपक ने पसीना बहाते हुए आने वाले 28 मरीजों का खून ठंडा नहीं होने दिया। इसी प्रकार बाल रोग विभाग में प्रो. शालिनी त्रिपाठी और प्रो.माला कुमार अपनी टीम के साथ मुस्तैद थी। अमूमन उस रात सभी डॉक्टर्स ने देर रात बिना किसी दबाव के स्वेच्छा से वो कार्य किया जिसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं।

 

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