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लेकर वैक्‍सीन का हथियार, कोरोना पर करें जोरदार वार

-हम सभी को साथ मिलकर लड़नी होगी कोरोना के खिलाफ जंग

-अम्‍बाह, मुरैना की माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट लक्ष्‍मी सैनी का लेख

लक्ष्‍मी सैनी

बीता हुआ वर्ष तथा नए वर्ष की शुरुआत में पूरा विश्व ‘कोरोना क्राइसिस’ से गुजरा है, जिससे अभी भी हमने पूरी तरह से निजात नहीं पाई है।  हम सबके लिए अच्छी खबर यह है, कि कोरोना के बचाव के लिए वैक्सीन को खोज लिया गया है और खोज के साथ-साथ इसका प्रयोग अर्थात टीकाकरण भी आरम्भ हो गया है। भारत ने  भी अपनी खुद की वैक्सीन का आविष्कार किया है जिसमें ‘कोवीशील्ड’ और ‘कोवैक्सीन’ है, यही नहीं साथ ही यह भी खबर आ रही है कि एक और नयी स्‍वदेशी वैक्‍सीन भी हमें जून तक मिल सकती है। यह हमारी सरकार, डॉक्टर्स और वैज्ञानिकों की मेहनत का फल है जिसके फलस्वरूप हम सभी ने धीरे-धीरे इस जंग को जीतना शुरू कर दिया है।

भारत में कोविड टीकाकरण की शुरुआत 16 जनवरी 2021 को हुई। वैक्सीनेशन की प्रक्रिया के दौरान ‘कोवीशील्ड’ के डोज को पहली बार तथा ‘कोवैक्सीन’ के अगले डोज को एक महीने बाद दिया जाता है। जिस दिन टीकाकरण की शुरुआत हुई उसी दिन किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्‍पाइरेटरी विभाग के अध्‍यक्ष डॉ सूर्यकांत ऐसे पहले डॉक्‍टर थे जिन्‍हें मैंने सुना था जिन्‍होंने टीका लगवाने के तुरंत बाद ही कहा था कि वैक्‍सीन पूरी तरह सुरक्षित है। आज स्थिति यह है कि देश भर के अनगिनत डॉक्‍टर वैक्‍सीन लगवा चुके हैं, सभी कह रहे हैं कि वैक्‍सीन पूरी तरह सुरक्षित है। वैज्ञानिक तथा डॉक्टर्स टीकाकरण के दौरान बहुत ही सावधानी बरत रहे हैं। जिस व्यक्ति को वैक्सीनेट किया जाता है, उसे टीका लगाने के आधे घंटे तक कड़ी देखभाल में रखा जाता है। डॉक्‍टरों का कहना है कि वैक्सीन के प्रति कुछ मिथक हैं, जैसे वैक्सीन सिर्फ सीनियर सिटीजंस, 10 साल से कम उम्र वाले बच्चों और स्वास्थ्य कर्मियों को ही लगेगी तो  ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।

भारत ने कोरोना के विरुद्ध बचाव की वैक्सीन को खोजा ही नहीं बल्कि इसे ब्राजील सहित अन्य देशों को निर्यात भी किया है। जिसमें से ब्राजील को 2 लाख (2 मिलियन) डोजेज को निर्यात भी किया है। भारत सरकार ने अपनी इस वैक्सीन को बिना किसी फायदे के जितने बजट में उत्पाद किया, उतने  में हीं निर्यात किया है। जिसके लिए मालदीव, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश ने भारत सरकार को हार्दिक आभार भी व्यक्त किया है।

कोरोना के विरुद्ध वैक्सीनेशन की इतनी बड़ी सफलता के बाद लोगों में अज्ञानता के चलते कई प्रकार की भ्रांतियां फैली हुई हैं जैसे कि, क्या यह वैक्सीन दूसरे देशों की अपेक्षा कम प्रभावी है, इसे लगवाने से कोई दुष्प्रभाव तो नहीं अथवा किसी अन्य तरह का रोग या संक्रमण आदि। इन भ्रांतियों के चलते लोगों में एक असमंजस तथा अविश्वास का माहौल बना हुआ है जिससे वे टीकाकरण के लिए जागरूक नहीं हो रहे हैं। 

टीकाकरण वह प्रक्रिया है, जिसमें वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में होने वाली भयंकर बीमारियों से बचा जा सकता है। जिन रोगों पर सामान्य दवाइयां उपयोगी नहीं होती वहां पर वैक्सीनेशन के द्वारा उन बीमारियों से निजात पाई जाती है। टीकाकरण की प्रक्रिया के फलस्वरुप कुछ लक्षण जैसे फीवर(बुखार आना), चक्कर आना, घबराहट आदि सामान्य होते हैं ये लक्षण दूसरी वैक्सीनेशन के दौरान भी होते हैं। जब हम नवजात शिशु को भी टीका लगवाते हैं तब उसे भी रात में बुखार आता है। जिससे हम सभी परिचित हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे तथा विश्व के सभी वैज्ञानिकों और डॉक्टर ने बहुत ही मेहनत और कई प्रयासों के बाद इस वैक्सीन को बनाया है, तथा कई सफल प्रयोगों के बाद ही इसे उपयोग में लाया गया है। भारत सरकार ने टीकाकरण के लिए सबसे पहले अत्यधिक जोखिम वाले समूहों को चुना है जिसमें सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मी, फ्रंटलाइन वर्कर्स फिर 50 साल से अधिक उम्र के लोग, पहले से किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित लोग और बाद में धीरे-धीरे वैक्सीन उन सभी को उपलब्ध होगी जिन्हें जरूरत है।  टीकाकरण केवल 18 साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और धात्री महिलाओं को नहीं किया जाना है। ध्यान रखने वाली बात केवल यही है।

विचार करने वाली बात है यदि इसे बनाना आसान होता या इससे किसी प्रकार की असावधानी से बनाया जाता तो यह वैक्सीन कब की बन चुकी होती। कोविड-19 के कारण  इतनी जानें नहीं जातीं, किंतु कोरोना पूरे विश्व के लिए ही एक भयानक संक्रमण था। जिससे बचाव के लिए भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को ही बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ी है। तब जाकर हमने कहीं इस जंग को जीतना शुरू किया है जिसकी शुरुआत भी कुछ भ्रांतियों के चलते भली प्रकार से नहीं हो पा रही है।

इस कोरोन रूपी जंग को जीतने के लिए हम सभी को ही प्रयत्न करना होगा और दूसरों को भी समझाना होगा।  जिन व्यक्तियों को अभी तक वैक्सीनेट किया गया है, उनके अनुभव पूछे जाने पर उन्होंने किसी प्रकार की कोई समस्या या दुष्प्रभाव नहीं बताया, बल्कि प्रसन्नता जाहिर की है, कि वे इस जंग के वॉरियर्स (योद्धा) बन चुके हैं।  हम सभी को इन भ्रांतियों को दूर करते हुए टीकाकरण अर्थात वैक्सीनेशन के लिए जागरूक होने की आवश्यकता है और हम इसमें सफल भी जरूर होंगे। अन्यथा अभी भी हम कोरोना की पकड़ से पूरी तरह से आजाद नहीं हुए हैं। थोड़ी सी लापरवाही और अज्ञानता हम सभी पर पुनः भारी पड़ सकती है और साथ-साथ ही जब तक पूरी तरह से ‘कोरोना के खत्म ना हो जाए इसके बचाव के नियमों का पालन भी भली प्रकार से करते रहना होगा तभी हमारी जीत और कोरोना की हार निश्चित होगी।

(लेखिका लक्ष्‍मी सैनी अम्‍बाह पीजी कॉलेज, मुरैना (म.प्र.) में माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट हैं )