–डॉ गिरीश गुप्त लिखित Evidence-based research of Homoeopathy in Dermatology पुस्तक का विमोचन
-स्त्री रोगों को लेकर पहले लिख चुके हैं Evidence-based research of Homoeopathy in Gynaecology
सेहत टाइम्स ब्यूरो
लखनऊ। सफेद दाग, सोरियासिस जैसे सात प्रकार के त्वचा रोगों के होम्योपैथिक दवाओं से किये गये सफल उपचार की जानकारी देने वाली पुस्तक एवीडेन्स बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन डर्मेटोलॉजी Evidence-based research of Homoeopathy in Dermatology लिखने का उद्देश्य त्वचा के वे रोग, जिनका अन्य चिकित्सा पद्धतियों में प्रबंधन ही इलाज है, ऐसे रोगों को होम्योपैथिक दवाओं से किये गये शोध में पूरी तरह ठीक करने की साक्ष्य सहित जानकारी देना है, ताकि ऐसे रोगों से लोग हमेशा के लिए छुटकारा पा सकें।
यह बात इस पुस्तक के लेखक राजधानी लखनऊ स्थित गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के संस्थापक होम्योपैथिक विशेषज्ञ डॉ गिरीश गुप्त ने ‘सेहत टाइम्स’ से एक विशेष बातचीत में कही। डॉ गिरीश ने बताया कि 200 पन्नों की इस किताब में जिन त्वचा रोगों के बारे में दिया गया है उनमें विटिलिगो यानी ल्यूकोडर्मा (सफेद दाग), सोरियासिस (इसमें लाल परतदार चकत्ते हो जाते हैं), एलोपीशिया एरियटा (इसमें बाल झड़ने लगते हैं), लाइकिन प्लेनस (इसमें त्वचा पर बैंगनी कलर के दाने हो जाते हैं), वार्ट (वायरल इन्फेक्शन), मोलस्कम कॉन्टेजियोसम (वायरल इन्फेक्शन) तथा माइकोसेस ऑफ नेल (नाखूनों में फंगस इन्फेक्शन) शामिल हैं। इन सात प्रकार के त्वचा रोगों के कुछ मॉडल केसेज, जिन्हें होम्योपैथिक दवाओं से पूरी तरह ठीक कर दिया गया है, के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी है।
डॉ गिरीश गुप्त ने बताया कि ये सब वे बीमारियां हैं, जिनका अन्य चिकित्सा पद्धतियों से उपचार में सामान्यत: पैलिएशन और सप्रेशन होता है, क्योर नहीं होता है, जबकि मानसिक एवं शारीरिक लक्षणों के अनुसार उपचार किये जाने के कारण होम्योपैथिक दवाओं से क्योर होता है। उन्होंने कहा कि मैं त्वचा के रोगों का इलाज तो 38 वर्षों से कर रहा हूं लेकिन पहले इनका रिकॉर्ड नहीं रखता था, फिर 1995 में यह तय किया कि रोगियों का पूरा रिकॉर्ड रखकर इसका डेटा बनाया जाये, ताकि होम्योपैथी के प्रति जिन लोगों की धारणा है कि इन मीठी गोलियों से कुछ नहीं होता है, उनको सबूत सहित दिखाया जा सके कि मीठी गोलियों में कितना दम है।
उन्होंने बताया कि 25 सालों में जिनका इलाज किया, उन्हीं में से मॉडल मरीजों के डेटा इस पुस्तक में प्रकाशित किये गये हैं, हालांकि इलाज सैकड़ों मरीजों का किया गया है, सभी मरीजों का रिकॉर्ड मौजूद है, जरूरत पड़ने पर उपलब्ध कराया जा सकता हे। उन्होंने बताया कि प्रत्येक मॉडल मरीजों के इलाज का सम्पूर्ण विवरण सबूत सहित इस किताब में उपलब्ध है, विस्तार से सूचना देने के कारण ही यह 200 पृष्ठों की पुस्तक हो गयी। उन्होंने बताया कि इसमें उपचार में दी गयी दवाओं का विवरण, उपचार से पहले, उपचार के बीच में तथा उपचार के बाद की फोटो जैसी जानकारियां दी गयी हैं। यह पुस्तक पूरी तरह रंगीन तथा आर्ट पेपर पर तैयार की गयी है।
उन्होंने बताया कि ये सभी केस वे हैं जो जर्नल्स में छप चुके हैं। ज्ञात हो जर्नल में केस छपने का अर्थ यह होता है कि उसकी प्रामाणिकता पर कोई सवाल नहीं है। उन्होंने कहा कि पहले भी लोग पूछते थे कि फलां केस के बारे में दिखाइये, फलां केस के बारे में बताइये, तो उन्हें उपलब्ध कराया जाता था, अब यह है कि पुस्तक में एक ही जगह सभी जानकारियां मिल जायेंगी। ज्ञात हो डॉ गिरीश गुप्त पहले भी ‘एवीडेन्स बेस्ड रिसर्च ऑफ होम्योपैथी इन गाइनीकोलॉजी’ पुस्तक लिख चुके हैं।
यह पूछने पर कि सफेद दाग, सोरियासिस जैसे रोगों के बारे अनेक लोगों का कहना होता है कि इलाज की कोई भी पैथी हो यह सही नहीं होता है। उन्होंने कहा कि यही तो दिक्कत है, दरअसल होम्योपैथी से इलाज में पर्सन ऐज ए होल यानी पूरे शरीर को एक मानते हुए मानसिक एवं शारीरिक लक्षणों के अनुसार दवा का चुनाव किया जाता है। इसलिए रोग का खात्मा जड़ से हो जाता है। उन्होंने बताया कि त्वचा के ये रोग ऑटो इम्यून डिजीज की श्रेणी में आते हैं, यह वह स्थिति होती है जिसमें शरीर के अंदर एंटीबॉडीज बनने लगते हैं और हमें रोगों से बचाने वाला हमारा अपना इम्यून सिस्टम हमारे ही शरीर के विरुद्ध काम करने लगता है।
क्यों होता है इम्यून सिस्टम खराब
डॉ गिरीश गुप्त ने बताया कि हमारे इम्यून सिस्टम को कंट्रोल करता है नर्वस सिस्टम और नर्वस सिस्टम को कंट्रोल मस्तिष्क करता है। इसीलिए त्वचा की बीमारियों के पीछे भी अनेक प्रकार के मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं, इन कारणों को पहचानने के लिए रोगी की हिस्ट्री जानना महत्वपूर्ण हो जाती है। इन कारणों में किसी घटना से आघात (शॉक) लगना, किसी प्रियजन की मृत्यु, आर्थिक हानि, प्यार में धोखा जैसे इमोशनल आउटब्रेक के चलते नर्वस सिस्टम गड़बड़ा जाता है जो सीधा प्रतिरक्षण तंत्र यानी इम्यूनिटी पर प्रभाव डालता है, और ऑटो इम्यून बीमारियों को जन्म देता है।
इन परिस्थितियों में नहीं होता है दवा से लाभ
डॉ गिरीश गुप्त बताते हैं कि इन त्वचा रोगों के लिए कोई एक दवा निर्धारित नहीं है, कुछ दवायें रोग विशेष के लिए उपलब्ध जरूर हैं लेकिन उनका कोई लाभ नहीं है, इसकी वजह यही है कि इलाज रोग का नहीं बल्कि रोगी के मानसिक और शारीरिक लक्षणों का किया जाता है, तभी रोग दूर होता है। उन्होंने कहा कि इसीलिए लोग भ्रमित होते हैं कि होम्योपैथी में भी ऐसे रोग ठीक नहीं होते हैं, क्योंकि अगर रोगी की मानसिक स्थिति को सही तरह समझ कर रोग के मूल कारण तक डॉक्टर नहीं पहुंचा तो दवा का लाभ नहीं होगा, इसीलिए इसका फेल्योर रेट ज्यादा है। उन्होंने कहा कि अनेक बार ऐसा होता है कि मरीज अपनी हिस्ट्री बताते समय बहुत सी बातें या तो जानबूझकर या फिर उन बातों को महत्वहीन समझकर डॉक्टर को नहीं बताता है, जबकि वह बात उसकी बीमारी का मूल कारण हो सकती है। ऐसे में चिकित्सक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है कि वह मरीज से पूछताछ इस तरह करे कि मरीज बात बता सके।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि एक युवती सोरियासिस की शिकायत लेकर आयी थी, उसने बताया कि उसने ऐलोपैथी इलाज बहुत कराया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। युवती एक्सरे टेक्नीशियन है। उस युवती की जब हिस्ट्री ली गयी तो पता चला कि उसकी बचपन से ही इच्छा थी कि वह डॉक्टर बने, लेकिन घर वालों का सहयोग नहीं मिला एक बार पीएमटी में असफल होने पर घर वालों ने दबाव डालकर उससे टेक्नीशियन का कोर्स करने को कहा। वह युवती एक्स रे टेक्निशियन बन तो गई, लेकिन उसके अंदर डॉक्टर ना बन पाने का अफसोस गहरे बैठ गया। वह रात-रात भर रोती थी। उसने बताया कि वह जब चिकित्सकों को ऐप्रेन पहने देखते तो सोचती कि मैं भी इनकी जगह हो सकती थी। यानी इस युवती को सोरियासिस होने का कारण उसकी महत्वाकांक्षा का पूर्ण न हो पाना रहा। इस कारण को समझ कर दवा का चुनाव किया गया तो उसे लाभ मिलना शुरू हो गया।
अनोखे अंदाज में हुआ पुस्तक का विमोचन
डॉक्टर गिरीश गुप्त की लिखी इस पुस्तक का विमोचन बड़े ही अनोखे अंदाज में हुआ। डॉ गुप्त ने बताया कि इस कोरोना काल में किसी प्रकार का फंक्शन किया नहीं जा सकता था, ऐसे में मन में विचार आया कि बच्चे तो भगवानस्वरूप होते हैं क्यों न बच्चे से विमोचन करा लिया जाये। उन्होंने बताया कि इसके बाद उनके पौत्र गर्विश गुप्त की प्रथम वर्षगांठ के मौके पर पौत्र गर्विश द्वारा पुस्तक का विमोचन करा लिया गया था। तथा आज 2 अक्टूबर, 2020 से यह उपलब्ध हो गयी है।आपको बता दें कि 38 वर्ष पूर्व 2 अक्टूबर, 1982 को डॉ गिरीश गुप्त ने अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी, इसलिए इस पुस्तक को रिलीज करने का दिन आज चुना गया।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि मैं चाहता हूं कि जैसे मैंने होम्योपैथी चिकित्सा को चुना, फिर मेरे पुत्र डॉ गौरांग ने होम्योपैथिक चिकित्सक बनकर इस विधा को अपनाया, मेरी बेटी सावनी गुप्त क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक के रूप में कार्य कर रही है, आगे चलकर मेरा पौत्र भी होम्योपैथी को अपना कॅरियर बनाये, ऐसी इच्छा है, हालांकि भविष्य में क्या होगा, इस बारे में सिर्फ आशा लगायी जा सकती है। होम्योपैथी के प्रति लगाव के कारणों के बारे में उन्होंने बताया कि यह एक ऐसी पैथी है जिसकी दवा सस्ती, गरीब-अमीर सभी को सुलभ, पैदा हुए बच्चे से लेकर बूढ़ों तक को देने में आसान है, और साथ ही यह रोग का इलाज जड़ से करती है।