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इस तरह होना चाहिये गुर्दे के रोगी का प्रबंधन जिससे शरीर की जरूरतें पूरी होती रहें

-छठा एडवांस कोर्स इन रीनल न्‍यूट्रीशन एंड मेटाबॉलिज्‍म सम्‍पन्‍न

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। किडनी रोग होने पर सामान्‍यत: मरीज सबसे पहले विशेषज्ञ के पास न जाकर फि‍जीशियन के पास जाता है, और सामान्‍यत: चिकित्‍सक मरीज का प्रोटीन बंद कर देते हैं, जबकि यह करना गलत है, मरीज की सेहत को बनाये रखने भर का प्रोटीन उसे दिया जाना आवश्‍यक है।

यह बात संजय गांधी पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग की प्रोफेसर प्रो अनिता सक्‍सेना ने फि‍जीशियंस और डायटीशियंस के लिए यहां गोमती नगर स्थित होटल हयात रीजेन्‍सी में संजय गांधी पीजीआई के गुर्दा रोग विभाग और सोसाइटी ऑफ रीनल न्‍यूट्रीशन एंड मेटाबॉलिज्‍म के संयुक्‍त तत्‍वावधान में आयोजित छठे एडवांस कोर्स इन रीनल न्‍यूट्रीशन एंड मेटाबॉलिज्‍म के सम्‍पन्‍न होने पर कही।

समारोह की आयोजक डॉ सक्‍सेना ने बताया कि इस सेमिनार में पूरे भारत वर्ष से नेफ्रोलॉजिस्‍ट्स आये थे और उन्‍होंने यहां वर्कशॉप में शामिल प्रतिभागी फि‍जीशियंस व डायटीशियंस को यह बताया कि गुर्दे की बीमारी वाले मरीज का समुचित प्रबंध कैसे किया जाये। प्रॉपर मैनेजमेंट होगा तो मरीज का सर्वाइवल बढ़ेगा और अगर मैनेजमेंट प्रॉपर नहीं हुआ तो सर्वाइवल नहीं होगा और मरीज की मौत जल्‍दी होगी।

किडनी की बीमारी के मरीजों को भूख लगनी बंद हो जाती है क्‍योंकि उसके खून में जहरीले तत्‍व जमा होने शुरू हो जाते हैं, इसकी वजह गुर्दे का ठीक से काम न करना होता है, गुर्दा जब गंदगी को ठीक से नहीं छान पाता है तो वह गंदगी खून में बढ़ती जाती है, जो जहरीली होती है, उसी जहर से सभी चीजें शुरू हो जाती हैं, जैसे भूख न लगना, उल्‍टी आना, मतली आना जैसी कई चीजें शुरू हो जाती है, इसी वजह से मरीज खाना छोड़ देता है, जिससे मरीज कुपोषण का शिकार हो जाता है। इस प्रकार एक तरफ तो मरीज को इस तरह से कमजोरी आनी शुरू हो जाती है, ऊपर से अगर डॉक्‍टर को नहीं मालूम है कि उसे प्रोटीन देना है कि नहीं देना, या कितना देना है। सामान्‍यत: चिकित्‍सक प्रोटीन दाल नहीं खानी है, दूध नहीं पीना है जैसे परहेज बताकर प्रोटीन जीरो कर देते हैं, इससे होता यह है कि कमजोरी और बढ़ जाती है। इंटरनेशनल गाइडलाइन्‍स कहती हैं कि आप शरीर को उतना प्रोटीन दीजिये तो शरीर को मेन्‍टेन रखने के लिए जरूरी होता है। इन सभी भ्रांन्तियों को दूर किया गया है।

दरअसल सबसे पहले मरीज नेफ्रोलॉजिस्‍ट के पास नहीं पहुंचता है, पहले वह फि‍जीशियन के पास जाता है, और अगर उसने मरीज की देखभाल का प्रबंधन खराब कर दिया और फि‍र हमारे पास भेजा तो करने के लिए बहुत कुछ नहीं रह जाता है, इसलिए जरूरी है कि पहली स्‍टेज यानी फि‍जीशियन के स्‍तर पर ही यह जानकारी होनी चाहिये कि मरीज का प्रबंधन कैसे किया जाये कि वह कुपोषण का शिकार न हो। इसके लिए डायटीशियन को भी इसके बारे में समझना जरूरी है, क्‍योंकि जब उन्‍हें ही इस बारे में पता नहीं होगा तो वह मरीज को कैसे समझायेंगी। इसलिए इस सम्‍मेलन में फि‍जीशियंस के साथ ही डायटीशियन्‍स को भी भाग लेने के लिए बुलाया गया है।

प्रो अनिता सक्‍सेना

गुर्दें की बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती ही है, इसलिए हर स्‍टेज पर खानपान का तरीका अलग-अलग होता है। शुरुआत में यूरिन का आउटपुट अच्‍छा हो रहा है तो मरीज को कोई दिक्‍कत ही नहीं होती है तो वह खाता रहता है लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्‍हें रोकना चाहिये ताकि हड्डी को कमजोर करने वाली बीमारी न हो जाये, दरअसल गुर्दे की बीमारी ऐसी होती है जो पूरे शरीर पर असर करती है, वजह चाहें डायबिटीज हो, ब्‍लड प्रेशर हो या गलत दवायें खाने से हुई हो, वह पूरे शरीर को अपनी चपेट में ले लेती है।

डॉ अनिता ने बताया कि एक पदार्थ होता है फॉस्‍फेट्स जो खाने में ही आते हैं अगर उनकी मात्रा निर्धारित मात्रा से बढ़ गया तो उन्‍हें पैरा थायरायड ग्‍लैण्‍ड्स बढ़ जाता है इसके अलावा एक और दिक्‍कत शुरू हो जाती है जिसमें हड्डियों का नुकसान शुरू हो जाता है क्‍योंकि हड्डी बनना बंद हो जाती है बल्कि नष्‍ट होना शुरू हो जाती है, खून बनना भी बंद हो जाता है, धीरे-धीरे एक स्थिति ऐसी बन जाती है कि मरीज डायलिसिस पर पहुंच जाता है और उस स्‍टेज पर उसे कई और परहेज रखने पड़ते हैं यानी मरीज बहुत ही कमजोर हो जाता है। बस ऐसी स्थिति को ही बचाने के लिए मरीज को शुरू से ही ऐसे प्रबंधन में रखा जाना चाहिये कि मरीज भी खुश रहे और उसे कमजोरी भी न आये।