Sunday , November 24 2024

स्टेम सेल थेरेपी से व्हील चेयर से वापस पांव पर आ गयी जिंदगी

पत्रकारों को जानकारी देते डॉ. आलोक शर्मा।

लखनऊ। पैरालिसिस हो गया हो या फिर पैराप्लीजिया, स्पाइनल कॉर्ड डैमेज हो गयी है तो अब जीवन व्हील चेयर पर गुजारना मजबूरी नहीं है, स्टेम सेल से इलाज सम्भव है, इस इलाज से स्वस्थ होकर मरीज फिर से पहले की तरह खड़ा हो सकता है, चल सकता है। इसकी सफलता का प्रतिशत 91 है। यह बात आज यहां रॉयल कैफे में न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ आलोक शर्मा ने पत्रकारों से बातचीत में कही। उन्होंने स्टेम सेल से इलाज किये हुए अपने एक मरीज से भी पत्रकारों को रूबरू करवाया।  16 वर्षीय इस किशोर को बुखार के बाद स्पाइनल कॉर्ड में टीबी का संक्रमण हो गया था। जिस वजह से खड़ा होना तो दूर वह पेशाब और स्टूल पास करने के लिए भी अपने पर काबू नहीं रख पा रहा था।

स्पाइनल कॉर्ड डैमेज होने से हो जाता है पैरालिसिस-पैराप्लीजिया

डॉ शर्मा ने बताया कि दरअसल स्पाइनल कॉर्ड स्नायुतंत्रिकाओं का एक गठ्ठर है जो पीठ के मध्य भाग में होता है। इसी रास्ते से ही शरीर के अंगों को चलाने के लिए  ब्रेन द्वारा सिगनल दिया जाता है चूंकि चोट या संक्रमण की वजह से जब स्पाइनल कॉर्ड क्षतिग्रस्त हो जाती है तो सिगनल का आना-जाना नहीं हो पाता है, नतीजा यह होता है कि शरीर के अंगों और मस्तिष्क के बीच का तालमेल समाप्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि सडक़ दुर्घटना, रेल दुर्घटना, ऊंचाई से गिरने पर, खेल के दौरान गहरी चोट लगने पर स्पाइन कॉर्ड के क्षतिग्रस्त होने की संभावना रहती है। इससे पैरालिसिस या पैराप्लीजिया हो जाता है।

बोन मैरो से निकालते हैं स्टेम सेल

डॉ शर्मा ने बताया कि स्टेम सेल से इलाज करने के लिए हम लोग मरीज की पेलविक बोन से करीब 100 मिलीलीटर बोन मैरो निकाल कर उसे प्रयोगशाला में छानकर उसमें से करीब 2 मिलीलीटर स्टेम सेल करीब पांच करोड़ अलग कर लेते हैंं। उन्होंने बताया कि एक पतली सी सुई से ही बोन मैरो निकाला जाता है तथा फिर छानकर निकाले गये स्टेम सेल को मरीज की स्पाइनल कॉर्ड में दूसरी सुई से डाल दिया जाता है। ये स्टेम सेल मरीज की स्पाइनल कॉर्ड को रिपेयर कर के उसे फिर से पहले जैसी बना देता है। उन्होंने बताया कि इसमें एक्सरसाइज की बहुत बड़ी भूमिका है।

सैनिकों का मुफ्त इलाज कर रहे डॉ आलोक शर्मा

उन्होंने बताया कि बोन मैरो से स्टेम सेल निकालने में प्रयोगशाला में करीब छह घंटे का समय लग जाता है। उन्होंने बताया कि स्टेम सेल को सुई से स्पाइनल कॉर्ड में एक से तीन बार डाला जा सकता है। कुछ मरीज एक बार स्टेम सेल डालने से ठीक हो जाते हैं जबकि कुछ में दो या तीन बार डालने पड़ते हैं। उन्होंने बताया कि सैनिकों का इलाज वह नि:शुल्क करते हैं, उनका मानना है कि सैनिक सीमा पर हमारी सुरक्षा के लिए तैनात है इसलिए उसे नि:शुल्क इलाज देना उसका सम्मान करने जैसा होता है।

मरीज इशु गुप्ता

इलाज करा चुके 16 वर्षीय किशोर ने बतायी आपबीती

पत्रकार वार्ता में स्टेम सेल से इलाज करा चुके महमूदाबाद, सीतापुर के रहने वाले मरीज इशु गुप्ता ने बताया कि जून 2013 में उसे बुखार आया था, बुखार ठीक होने के बाद एक दिन उसे महसूस हुआ कि उसके पैरों में जान नहीं है। इशु के पिता समरेन्द्र गुप्ता ने बताया कि इसके बाद हम लोगों ने बच्चे को यहां केजीएमयू में न्यूरो सर्जन को दिखाया जहां पर उन्होंने इसका ऑपरेशन किया गया लेकिन बेटा ठीक नहीं हुआ। इसके बाद बीते नवम्बर माह में मुम्बई के डॉ आलोक शर्मा के बारे में पता चला तो वहां दिखाया जहां इसका स्टेम सेल से इलाज हुआ है। मरीज इशु गुप्ता ने बताया कि स्टेम सेल से इलाज के बाद से वह लगातार एक्सरसाइज कर रहा है और अब बहुत आराम है, उसने खड़े होकर भी दिखलाया।

जल्दी इलाज तो जल्दी फायदा

डॉ शर्मा ने दावा किया कि लगभग दो-तीन साल में इशु बिल्कुल सामान्य तरीके से चलने लगेगा, उन्होंने कहा कि इस बीच एक्सरसाइज करना जरूरी है। उन्होंने बताया कि इस इलाज में करीब दो लाख रुपये का खर्च आता है। एक सवाल के जवाब में डॉ शर्मा ने बताया कि पैरालिसिस या पैराप्लीजिया के पुराने मरीजों का भी स्टेम सेल से इलाज किया जा सकता है। जहां तक लाभ की बात है तो देखा गया है कि जितनी जल्दी इलाज कर लिया जाता है उतनी ही जल्दी फायदा होने की संभावना रहती है इसी प्रकार कम उम्र से ज्यादा उम्र के अनुसार ही उपचार होने में क्रमश: कम से ज्यादा समय लगता है। उन्होंने बताया कि इसी प्रकार पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में इसका लाभ जल्दी देखा गया है। इस मौके पर इंस्टीट्यूट की उप निदेशक और चिकित्सा सेवा प्रमुख डॉ नंदिनी गोकुलचंद्रन भी उपस्थित थीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.