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अस्थमा के नियंत्रण में दवाओं के साथ योग का भी है बड़ा योगदान

-एलर्जी अस्थमा की राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में डॉ0 सूर्यकान्त ने दिया डॉ आरके मोदी मेमोरियल व्याख्यान

-दुनिया में अस्थमा और योग पर सर्वाधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं डॉ सूर्यकान्त के

सेहत टाइम्स

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) में आयोजित इण्डियन कॉलेज ऑफ एलर्जी, अस्थमा एंड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी की राष्ट्रीय संगोष्ठी में केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष, डॉ0 सूर्यकान्त ने डा0 आर. के. मोदी मेमोरियल व्याख्यान दिया। व्याख्यान के उपरान्त संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा0 सुरेश कूलवाल व सचिव डा0 ए. बी. सिंह ने डा0 आर. के. मोदी मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित कर सार्टिफिकेट व स्मृति चिन्ह प्रदान किया।

इंडियन जर्नल ऑफ एलर्जी, अस्थमा एंड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी के प्रधान संपादक डॉ0 सूर्यकान्त ने बताया कि अस्थमा के प्रबंधन में केवल दवाओं और इन्हेलरों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। इन्हेलर और अन्य सावधानियों के साथ गैर-औषधीय उपाय अपनाना भी उतना ही आवश्यक है। उन्होंने बताया कि स्वस्थ जीवनशैली, योग, आहार नियंत्रण और तनाव प्रबंधन अस्थमा के नियंत्रण में अत्यंत प्रभावी हैं। उन्होने कहा कि अस्थमा के मरीजों को धूम्रपान का पूर्णतः त्याग करना चाहिए, नियमित शारीरिक गतिविधि करनी चाहिए, संतुलित आहार लेना चाहिए और अपने वजन को नियंत्रित रखना चाहिए। कार्यस्थल पर धूल, धुआं और रासायनिक प्रदूषणों से बचाव आवश्यक है। उन्होंने समझाया कि इनडोर और आउटडोर एलर्जन, धूल, धुआं, मौसम में बदलाव, पालतू पशु व पंक्षी, रसायन और तनाव जैसे कारक अस्थमा को बढ़ा सकते हैं। इनसे यथासंभव दूरी बनाना ही सबसे अच्छा बचाव है। उन्होंने कहा, “घर को घर रहने दें, चिड़ियाघर न बनाएं।”

इस अवसर पर इण्डियन कॉलेज ऑफ एलर्जी, अस्थमा एंड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी के पूर्व अध्यक्ष डॉ0 सूर्यकान्त ने योग से होने वाले स्वास्थ्य लाभों पर विस्तार से चर्चा की और अस्थमा से पीड़ित रोगियों के लिए योग के लाभ बताए। उन्होंने बताया कि योग एवं नेचुरोपैथी के क्षेत्र में केजीएमयू का रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग अग्रणी भूमिका निभा रहा है। विभाग में अब तक योग से संबंधित कई अनुसंधान कार्य किए जा चुके हैं और विश्व में अग्रिम 25 से अधिक शोधपत्र राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित हो चुके हैं। दुनिया में अस्थमा और योग पर सर्वाधिक शोधपत्र प्रकाशित करने पर केजीएमयू कुलपति डा0 सोनिया नित्यानन्द ने डॉ0 सूर्यकान्त को बधाई देते हुये कहा कि यह केजीएमयू के लिए गर्व की बात है।

इसके अलावा अस्थमा, एलर्जी एवं योग पर तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है तथा अस्थमा में योग की भूमिका पुस्तक का विमोचन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किया जा चुका है। डॉ0 सूर्यकान्त के दिशा-निर्देशन में विश्व का प्रथम अनुसंधान कार्य भी किया गया, जिसके लिए शोधार्थी को उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए चार्ल्स रिकी प्राइज़ से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार इंडियन कॉलेज ऑफ एलर्जी, अस्थमा एंड इम्यूनोलॉजी द्वारा प्रदान किया गया। वर्तमान में विभाग में ‘जलनेति’ पर अनुसंधान कार्य किया जा रहा है, जिसे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा अनुदान प्राप्त है।

रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष, डॉ0 सूर्यकान्त ने योग और प्राणायाम के लाभों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनसे फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार होता है, वायुमार्ग की अतिसंवेदनशीलता कम होती है, तनाव घटता है, नींद की गुणवत्ता में सुधार आता है और स्वायत्त तंत्रिका तंत्र का संतुलन बेहतर होता है। गोमुखासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, भुजंगासन, पश्चिमोत्तानासन, धनुरासन, पर्वतासन, नौकासन, ताड़ासन और शवासन जैसे योगासन अस्थमा रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी हैं। वहीं प्राणायाम में अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, भ्रामरी और कपालभाति से श्वसन क्रिया में सुधार होता है, तनाव घटता है और फेफड़े शुद्ध रहते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि योगिक शुद्धिकरण क्रिया ‘जलनेति’ नाक की सफाई, अतिरिक्त श्लेष्मा की निकासी और वायुमार्ग की सूजन कम करने में सहायक होती है।

उन्होंने ने कहा कि अस्थमा के साथ अन्य बीमारियों का उचित प्रबंधन भी जरूरी है। मधुमेह के रोगियों को इनहेलेड कॉर्टिकोस्टेरॉयड का प्रयोग प्राथमिकता से करना चाहिए जबकि उच्च रक्तचाप वाले मरीजों को बीटा-ब्लॉकर से बचना चाहिए। हृदय रोगियों के लिए हृदय-सुरक्षित ब्रोंकोडायलेटर अधिक उपयुक्त होते हैं। थायरॉइड विकारों को नियंत्रित रखना चाहिए और मोटापा, तनाव तथा गैस्ट्रो-इसोफेजियल रिफ्लक्स जैसी समस्याओं से बचने के लिए जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाने चाहिए। फास्टफूड और पैकेट बन्द खाने पीने की वस्तुओं से जितना हो सके बचें। उन्होंने अस्वास्थ्यकर खानपान से बचने और संतुलित आहार अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि भारतीय व्यंजन की बात की जाये तो सैकड़ों व्यंजन है जो महिनो तक शु़द्ध बिना प्रिजरवेटिव के स्वादिष्ट और स्वास्थवर्धक रहते थे।

“आंटी के चिप्स तो ठीक थे, लेकिन अंकल चिप्स हैं ख़तरनाक:— डॉ. सूर्यकान्त”

उन्होंने बताया कि अस्थमा रोगियों को अपने आहार में एंटीऑक्सिडेंट्स जैसे विटामिन सी, ई और बीटा-कैरोटीन से भरपूर फल-सब्जियाँ, ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त खाद्य पदार्थ जैसे मछली और अलसी के बीज शामिल करने चाहिए। पर्याप्त मात्रा में जल का सेवन, मेडिटेरेनियन डाइट पैटर्न अपनाना, तथा प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों, ठंडे पेयों और अधिक कैफीन से बचना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है।

अस्थमा नियंत्रण के महत्व पर बल देते हुए डॉ0 सूर्यकान्त ने कहा कि अस्थमा नियंत्रण का सबसे बड़ा साधन है- जागरूकता। उन्होंने बताया कि मरीजों को अस्थमा की प्रकृति, उपचार की प्रक्रिया और अपने ट्रिगर्स की पहचान अवश्य करनी चाहिए। इन्हेलर का सही उपयोग सीखना, लक्षणों की नियमित निगरानी करना और चिकित्सक द्वारा दिए गए लिखित “एक्शन प्लान” का पालन करना आवश्यक है। उन्होंने मरीजों को सलाह दी कि वे हर तीन से छह महीने में डॉक्टर से फॉलो-अप अवश्य करें, फ्लू और न्यूमोकोकल टीकाकरण कराएं और अपनी जीवनशैली में नियमितता बनाए रखें। अंत में डॉ सूर्य कान्त ने कहा कि इन्हेलर न छोड़ें क्योंकि इससे अस्थमा अटैक की सम्भावना भी हो सकती है।

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