Thursday , October 12 2023

फेफड़ों की सटीक जांच के साथ ही सांस नली की बाधा भी दूर करेगी क्रायो मशीन

केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में जांच व उपचार का नया अध्‍याय शुरू

फेफड़े के कैंसर, टीबी तथा आईएलडी बीमारी की सटीक डायग्‍नोसिस हो सकेगी

सांस नली में फंसी किसी भी चीज को निकालना भी संभव होगा इस मशीन से

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में क्रायो मशीन की शुरुआत होने से फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों की बायोप्‍सी के जरिये सटीक जांच से लेकर सांस नली के इलाज तक में आज एक नया अध्‍याय जुड़ गया है। नयी मशीन से फेफड़े के कैंसर, टीबी तथा आई.एल.डी. (फेफड़ों के सिकुड़ने की बीमारी) की सटीक जांच के साथ ही सांस नली में फंसी कोई भी चीज निकाली जा सकेगी तथा सांस नली की सिकुड़न को भी ठीक किया जा सकेगा। इसकी शुरुआत विभागाध्‍यक्ष प्रो सूर्यकांत ने विभाग के चिकित्‍सकों के साथ की, इस विषय पर एक कार्यशाला का भी आयोजन किया गया।

 

प्रो सूर्यकांत ने इस अवसर पर कहा कि आज का दिन रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के लिए एक नया अध्याय लेकर आया है वैसे तो इस विभाग में ब्रान्कोस्कोपी की शुरुआत 1986 में ही हो गयी थी। तत्पश्चात प्रगति के क्रम में वर्ष 2002 में वीडियो ब्रॉन्कोस्कोपी एवं 2007 में थोरैकोस्कोपी की सुविधा प्रारम्भ हुयी।

आज शुरू हुई क्रायोबायोप्‍सी के बारे में प्रो सूर्यकांत ने बताया कि इसमें रिजिड अथवा फ्लेक्सिबल ब्रान्कोस्कोप का प्रयोग किया जाता है। क्रायोबायोप्सी में इस्तेमाल होने वाले क्रायोप्रोब को अति ठण्डा (शून्‍य से 50 से 75 डिग्री सेल्सियस कम) करने के लिए कार्बनडाईआक्साइड एवं नाइट्रस आक्साइड गैसों का प्रयोग किया जाता है। जैसे ही क्रायोप्रोब ऊतकों के सम्पर्क में आता है, ऊतक क्रायोप्रोब से चिपक जाते है। इसके बाद प्रोब को ब्रान्कोस्कोप सहित फेफडे़ से बाहर निकाल लिया जाता है और निकाले गये बायोप्सी के टुकडे़ को उचित माध्यम में जांच के लिए रख लिया जाता है।

 

उन्‍होंने बताया कि क्रायोबायोप्सी मशीन के आ जाने से फेफड़े के कैंसर, टीबी तथा आई.एल.डी. जैसी गम्भीर बीमारियों की सटीक जांच हो सकेगी इसके द्वारा बायोप्सी की जांच करने में कम रक्त स्राव व कम जटिलता होती है। प्रो सूर्यकांत ने बताया कि इस मशीन के द्वारा सिर्फ जांच ही नही बल्कि जटिल रोगों के उपचार में भी मदद मिलेगी। इस मशीन से सांस की नली मे फंसी फॉरेन बाडी को निकालने में मदद मिलेगी तथा सांस की नलियों की सिकुड़न (स्टेनोसिस) को भी सही करने में मदद मिलेगी। इस मशीन से फेफड़े के ट्यूमर की बायोप्सी भी आसानी से हो जायेगी।

 

इस मौके पर क्रायोबायोप्सी के उपकरण तथा इसके प्रयोग के बारे में एक सफल कार्यशाला का भी आयोजन किया गया। जिसमें सभी चिकित्सकों एवं जूनियर डाक्टर्स को इस मशीन के उपयोग के बारे में प्रशिक्षण दिया गया।

 

इस मौके पर रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के चिकित्सक प्रो0 एस. के. वर्मा,  प्रो0 राजीव गर्ग,  डा0 अजय कुमार वर्मा,  डा0 आनन्द श्रीवास्तव,  डा0 दर्शन कुमार बजाज व समस्त सीनियर एवं जूनियर रेजिडेन्टस तथा ब्रॉन्कोस्कोपी यूनिट के सभी टेक्निशियन व सहयोगी स्टाफ मौजूद रहें। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ  ज्योति बाजपेई ने किया।