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तीन माह की जगह हो रहे हैं तीन साल, कर्मचारी रोष न जतायें तो क्‍या करें

-आउटसोर्सिंग/संविदा कर्मचारियों की सेवानियमावली प्रख्यापन को लेकर राज्‍य कर्मचारी संयुक्‍त परिषद ने दी आंदोलन की चेतावनी

सेहत टाइम्‍स
लखनऊ।
तीन वर्ष पूर्व सरकार को भेजे जा चुके आउटसोर्सिंग/संविदा कर्मचारियों की सेवानियमावली प्रख्यापन संबंधी प्रस्‍ताव का निस्‍तारण करने में शिथिलता बरतने पर राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्‍तर प्रदेश ने नाराजगी जताते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है।

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उ0प्र0 के महामंत्री अतुल मिश्र ने बताया कि परिषद के अथक प्रयासों से कार्मिक विभाग द्वारा मसौदा तैयार किया गया जिसकी एक प्रति दिनांक 13 फरवरी 2019 को परिषद को उपलब्ध कराई गई और परिषद का मत चाहा। जिसपर परिषद द्वारा समयक परीक्षणोपरांत दिनांक 22 फरवरी 2019 को कुछ सुविधाओं को जोड़ने का प्रस्ताव देते हुए पत्र प्रेषित कर दिया गया। फरवरी 2019 में संविदा/आउटसोर्सिंग, केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित योजनाओं में कार्यरत कर्मचारियों को विनियमित करने तथा न्यूनतम वेतन, भत्ते देने व मृतक आश्रित नियमावली की सुविधाएं दिये जाने संबंधी भेजे गये प्रस्ताव पर सरकार द्वारा अब तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया है।

ज्ञा तो हो तत्कालीन मुख्य सचिव डॉ अनूप चंद्र पांडे की अध्यक्षता में दिनांक 09 अक्टूबर 2018 को हुई बैठक में सहमति व्यक्त करते हुए तत्कालीन अपर मुख्य सचिव नियुक्ति एवं कार्मिक मुकुल सिंघल को निर्देश दिया था कि विभागों में भारी संख्या में एजेंसी के माध्यम से रखे गए कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा, विनियमितीकरण, न्यूनतम वेतन व भत्ते देने के लिए सेवा नियमावली 03 माह में तैयार कर मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत कर प्रख्यापित कर लिया जाए क्योंकि ऐसे कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं मिलता तथा एजेंसी जब चाहती है उन्हें हटा देती है। उनका भविष्य अंधकार में है।
परिषद के अध्यक्ष सुरेश रावत एवं महामंत्री अतुल मिश्रा ने अनुरोध किया था कि ऐसे नियुक्ति कर्मियों को सेवा सुरक्षा, न्यूनतम वेतन, भत्ते, बोनस, बीमा, पेंशन, मृतक आश्रित नियमावली का लाभ आदि सभी सुविधाएं अनुमान की जाएं तथा विभागों में उनकी वरिष्ठता सूची बनाई जाए।
अतुल मिश्रा ने बताया कि इस प्रस्‍ताव के बिन्‍दु इस प्रकार हैं-

  1. आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु सेवायोजन कार्यालय में अपना रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा।
  2. सेवा प्रदाता को भी रजिस्ट्रेशन कराना होगा।
  3. ऐसे कर्मचारियों को एजेंसी सेवा से पृथक नहीं कर पाएगी। यदि किसी को अनुशासनात्मक कारणों से सेवा मुक्त करना होगा तो उसके लिए नियुक्ति अधिकारी की अध्यक्षता में समिति दोनों पक्षों को सुनकर निर्णय करेगी।
  4. कर्मचारियों के न्यूनतम वेतनध्भत्ते अनुमन्य किए जाएं साथ ही वार्षिक वेतन वृद्धि दी जाए।
  5. सिलेक्शन कमेटी द्वारा यह सुनिश्चित किया जाए कि जिन संवर्गों की सेवा नियमावली प्रसख्यापित है उन संवर्गों के लिए आउटसोर्सिंग पर नियुक्ति प्रदान करने में सेवा नियमावली में प्रदत्त अर्हता के अनुसार नियुक्ति की जाए।
  6. संतोषजनक कार्य करने पर कार्मिकों का नवीनीकरण सुनिश्चित किया जाए।
  7. नियमित नियुक्तियों में आउटसोर्सिंग कार्मिकों है तो स्टाफ नर्स व एएनएम की भांति वरीयता कोटा निर्धारित किया जाए।
    8-वर्तमान समय में प्रायःयह देखा जा रहा है कि आउट सोर्स कार्मिकों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक की धनराशि जितनी निश्चित की जाती है वास्तविक रूप से कार्मिकों को भुगतान उससे काफी कम किया जाता है चर्चा करने पर यह स्थिति सामने आती है कि कार्मिक की निर्धारित मजदूरी से ही इपीएफ के दोनों शेयर ईएसआई का शेयर तथा सर्विस प्रोवाइडर का कमीशन काट लिया जाता है उदाहरण स्वरूप यदि सरकार किसी आउट सोर्स कार्मिकों के नाम पर रुपया 15000 प्रतिमा सर्विस प्रोवाइडर को भुगतान करती है तो उस कार्मिक को वास्तविक रूप से 9 या ₹10000 ही मिलते हैं यह स्थिति उचित नहीं है क्योंकि प्रस्ताव में इसका उल्लेख किया गया है इसे स्पष्ट किया जाए तथा आउट सोर्स कार्मिक को वास्तविक रूप से भुगतान की जाने वाली धनराशि को ही उसके पारिश्रमिक के रूप में दर्शाया जाए।
  8. इन कर्मचारियों के नियुक्ति के आदेश जारी किए जाएंगे तथा उनकी उपस्थिति रजिस्टर में दर्ज होगी।
  9. ऐसे कर्मचारियों को साप्ताहिक तथा आकस्मिक अवकाश, मेडिकल लीव, मातृत्व अवकाश छुट्टियां भी मिलेंगी।
  10. ऐसे कर्मचारियों के परिवार को सेवाकाल में मृत्यु पर मृतक आश्रित नियमावली के तहत सभी सुविधाएं देने का प्राविधान किया जाए।
  11. आउटसोर्सिंग/संविदा कर्मचारी नियमित रिक्त पदों पर नहीं रखे जाएंगे उन पर नियमित नियुक्तियां की जाएंगी।
    श्री मिश्रा ने खेद प्रकट किया कि मुख्य सचिव द्वारा तीन महीने का समय इस नियमावली को प्रख्यापित कर शासनादेश करने हेतु निर्धारित किया था पर ढाई वर्ष व्यतीत हो जाने के उपरांत भी अभी तक निर्णय नहीं हो पाया जिससे कर्मचारियों में आक्रोश व्याप्त होना स्वाभाविक है । यदि सरकार व शासन कर्मचारियों के हितार्थ उनकी समस्याओं के निस्तारण में गति नही दी जाएगी तो निश्चित रूप से कर्मचारियों की भावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए एक बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा ।
    परिषद के प्रमुख उपाध्यक्ष सुनील यादव ने बताया कि इसके सम्बन्ध में दिनांक 09 नवम्बर 2021 को कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा की मुख्य सचिव के साथ सम्पन्न हुयी बैठक में पुनः स्मरण कराया गया था जिसपर आश्वासन के उपरान्त भी कोई सकारात्मक कार्यवाही नही हुयी।
    राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष सुरेश रावत व महामंत्री अतुल मिश्रा ने मुख्यमंत्री एवं मुख्य सचिव से मांग की है कि परिषद के साथ संपन्न हुई बैठकों में लिये गये निर्णयों की समीक्षा आवश्यक है कि समयबद्ध निर्णयों में इतना विलम्ब क्यों । उन्‍होंने मांग की है कि इस नियमावली का प्रख्यापन अवश्य करा दें जिससे कर्मचारियों के शोषण पर विराम लग सके और उनका भविष्य को अंधकारमय से बचाया जा सके ।

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