युवा विद्यार्थियों को विज्ञानोन्मुखी बनाने के लिए सीडीआरआई ने आयोजित की कार्यशाला
लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्व विद्यालय के पल्मोनरी विभाग के हेड तथा तथा प्रदूषण मुक्त लखनऊ अभियान के संयोजक डॉ सूर्यकांत ने बढ़ते वायु प्रदूषण रोकने और उसके प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए स्कूली छात्र-छात्राओं को पर्यावरण दूत के रूप में समाज सेवा के लिए प्रेरित करते हुए उनके हाथ उठाकर शपथ दिलायी।
मौका था केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान सीडीआरआई में विज्ञान की तरफ युवा विद्यार्थियों को उन्मुख करने के लिए आयोजित ‘एंटीबायोटिक्स और मानव स्वास्थ्य’ विषय पर कार्यशाला का। इस कार्यशाला में डॉ सूर्यकांत को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। शुक्रवार को संस्थान द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में शिक्षाविदों और वैज्ञानिकों ने कक्षा 9 से कक्षा 12 तक के करीब 400 विद्यार्थियों को गूढ़ बातें बहुत सरल तरीके से बतायीं। खास बात यह थी कि समारोह में सभी ने अपना प्रेजेन्टेशन हिन्दी में दिया।
डॉ सूर्यकांत ने कहा कि वायु प्रदूषण को रोकने में पेड़ों का महत्व बताते हुए कहा कि जन्म के समय पहली सांस आने से लेकर मृत्यु के समय आखिरी सांस जाने तक हमें ऑक्सीजन देते हैं। उन्होंने कहा कि हमें पेड़ों का ॠणी होना चाहिये जो हमें औसत 65 वर्ष की आयु में 5 करोड़ की ऑक्सीजन फ्री में देते हैं।
उन्होंने बच्चों को शपथ दिलायी कि अब से वे पर्यावरण दूत हैं इसलिए भविष्य में अपनी बर्थडे पर बड़ों को इस बारे में समझायेंगे और प्रेरित करेंगे कि मोमबत्ती नहीं जलायेंगे बल्कि आयु के वर्षों के बराबर पौधे लगायेंगे, इसी प्रकार माता-पिता की शादी की वर्षगांठ पर मोमबत्ती जलाने का फैशन छोड़ेंगे क्योंकि मोमबत्ती से भी धुआं निकलता है, इसकी जगह शादी की वर्षगांठ के जितने साल हो गये हों उतने पौधे लगायेंगे। उन्होंने बच्चों से यह भी कहा कि जीवन में आप लोग तो धूम्रपान कभी करेंगे नहीं बल्कि वे धूम्रपान करने वाले लोगों को धूम्रपान न करने के लिए समझायेंगे तथा उन्हें केजीएमयू के धूम्रपान क्लीनिक लाने के लिए प्रेरित करेंगें। इसी प्रकार अगर उन्हें किसी घर में लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनता हुआ देखेंगे तो उन्हें सरकार की ओर से चलायी जा रही उज्ज्वला स्कीम की जानकारी देंगे जिसमें कुकिंग गैस कनेक्शन फ्री में दिया जाता है।
टीबी के मरीज के परिजनों की भी करानी चाहिये जांच
इस कार्यक्रम में केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की हेड डॉ अमिता जैन ने बताया कि किस प्रकार टीबी के इलाज के समय गलत दवा लेना और इलाज बीच में छोड़ देना किस तरह से मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस में बदल जाता है जो कि जानलेवा हो सकता है। उन्होंने इससे बचने के लिए भी टिप्स दिये। उन्होंने कहा कि टीबी से बचाव के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिये। उन्होंने कहा कि खांसते-छींकते समय मुंह और नाक बंद करने के लिए टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करें तथा बाद में उसे सील कर मेडिकल कूड़ा वाले डस्ट बिन में डाल सकते हैं। इसके अलावा टीबी के मरीजों के साथ इलाज शुरू होने के चार माह तक बंद कमरे में अधिक समय न बितायें। नवजात शिशु को बीसीजी का टीका लगवायें तथा टीबी के मरीज के परिजनों को अपनी जांच अवश्य करानी चाहिये जिससे पता लग जाये कि उन्हें भी दवा की जरूरत है अथवा नहीं।
भारत में 64 फीसदी एंटीबायोटिक्स अवैध रूप से बिक रहीं
कार्यक्रम में आरवीआरआई के भूतपूर्व निदेशक डॉ ॠषीन्द्र वर्मा ने ऐंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग के सम्बन्ध में जारी गाइडलाइन के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि भारत में 64 प्रतिशत दवायें मानकों के अनुसार नहीं हैं। उन्होंने बताया कि यह रिसर्च क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में की गयी है। इस रिसर्च के अनुासर 2007 से 2012 तक के बीच में 118 प्रकार की विभिन्न एंटीबायोटिक दवायें बनायी गयी इनमें से 64 प्रतिशत दवायें ऐसी हैं जिन्हें सेंट्रल ड्रग्स कंट्रोल स्टैन्डर्ड से मंजूरी नहीं मिली हैं। इस प्रकार भारत में बिकने वाली ये दवायें अवैध हैं।
जवाहर लाल नेहरू सेंटर ऑफ एडवांस साइंटिफिक रिसर्च के पीएचडी विद्यार्थी आदित्य भट्टाचार्य ने बताया कि मैरीन एंटीबायोटिक्स पर अनुसंधान चल रहा है। जवाहर लाल नेहरू सेंटर ऑफ एडवांस साइंटिफिक रिसर्च बंगलौर की सुश्री मौमिता बासु ने संक्रामक बीमारियों के कारण और निदान पर चर्चा की। समारोह में सीडीआरआई के निदेशक तपस कुंडू ने भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ डीएस उपाध्याय तथा संचालन डॉ नीति कुमार ने किया।
