Wednesday , October 11 2023

शोध : एक चौथाई कोविड मरीजों में पायी गयी पेट की समस्‍या

-मरीजों का इलाज करने वाले चिकित्‍सकों को सलाह, पेट के लक्षण को नजरंदाज न करें

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। कोविड से ग्रस्‍त मरीजों में पेट सम्‍बन्‍धी समस्‍या भी एक लक्षण हो सकती है, इसलिए फि‍जीशियंस को चाहिये जब मरीज की कोविड के लिए हिस्‍ट्री लें तो अगर उसे पेट सम्‍बन्‍धी समस्‍या है, तो उसे कोविड का लक्षण मानते हुए समाधान की दिशा में बढ़ना चाहिये, क्‍योंकि इसे इग्‍नोर करना घातक हो सकता है। यह निष्‍कर्ष संजय गांधी पीजीआई में हुए एक शोध में पाया गया है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि सिम्प्टोमैटिक मरीज़ों में से एक चौथाई मरीजों में सिर्फ पेट से सम्बंधित लक्षण ही थे। यह शोध यह शोध हाल ही में अमेरिकन कॉलेज ऑफ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के प्रतिष्ठित जर्नल ‘क्लीनिकल एंड ट्रांसलेशनल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है ।

इस शोध को संस्‍थान के निदेशक प्रो आरके धीमन के नेतृत्‍व में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के डॉ. उदय घोषाल, माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. उज्‍ज्‍वला घोषाल, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग के डॉ. आकाश माथुर एवं उनकी टीम द्वारा चिकित्‍सकों द्वारा किया गया है।

इस बारे में रिसर्च में शामिल चिकित्‍सकों ने बताया कि अप्रैल से मई माह तक कोविड जाँच कराने वाले करीब 16 हज़ार मरीज़ों को इस शोध में शामिल किया गया, जिसमें से 252 मरीज़ों की जाँच पॉजिटिव पाई गई। इन 252 में से 208 (82.5%) मरीज़ पूर्णतः लक्षणरहित (असिम्प्टोमैटिक) थे वहीं 44 मरीज़ों में पेट से संबंधित या अन्य लक्षण पाए गए। इनमें से 40% मरीज़ों में सिर्फ अन्य (साँस में तकलीफ, बुखार, जुकाम, खाँसी, गला खराब, कमज़ोरी आदि), 35% में अन्य एवं पेट संबंधित लक्षण दोनों तथा 25% मरीज़ों में सिर्फ पेट से संबंधित लक्षण पाए गए।

शोध के अनुसार 5% से भी कम मरीज़ों में गम्भीर बीमारी हुई एवं लगभग 2% मरीज़ों की मृत्यु हुई। एक और महत्वपूर्ण तथ्य जो इस शोध में उभर कर आया वह यह था कि जिन मरीज़ों में पेट से संबंधित लक्षण थे वह ज़्यादा गंभीर बीमारी से ग्रस्त हुए एवं उनमें मृत्यु दर भी अधिक पाई गई।

शोधकर्ताओं ने बताया कि यह शोध सिर्फ मरीज़ों ही नहीं, बल्कि उन चिकित्सकों के लिए भी ज़रूरी है जो प्रतिदिन कई मरीज़ देखते हैं, ऐसे में इस तथ्य के प्रति सजग होना ज़रूरी है कि सिर्फ पेट संबंधित लक्षण के साथ भी कोरोना के मरीज़ आ सकते हैं। इस शोध में अन्य देशों की तुलना में हमारे यहाँ मृत्यु दर एवं बीमारी की गंभीरता भी कम पाई गई, शोधकर्ताओं द्वारा संक्रामक बीमारियों के आम होने के कारण भारतीयों में बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता (टी सेल रिस्पांस), आँतो में अच्छे सूक्ष्म जीवों का बाहुल्य (बेहतर गट माइक्रोबायोटा) तथा संभवतः कोरोना वायरस के कम आक्रामक प्रकार (जीनोटाइप) का होना पाया गया।