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दिन में नींद तो है मजबूरी, असली नींद रात में ही जरूरी, जानिये क्‍यों…

दिन में नींद तो है मजबूरी, असली नींद रात में ही जरूरी, जानिये क्‍यों…

-शरीर के अंदर प्रकृति से जुड़ी जैविक घड़ी का सही रहना आवश्‍यक

जब-जब हम प्रकृति के विरुद्ध कार्य करते हैं तो इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है, इसलिए आवश्‍यक है कि प्रकृति के अनुरूप चला जाये। प्रकृति ने इस खूबसूरत जिंदगी में हमें जीवन को जीने का सलीका बता रखा है, लेकिन लापरवाही और ज्ञान न होने के कारण हम इसकी अनदेखी करते हैं। शरीर के अंदर पायी जाने वाली जैविक घड़ी के बारे में अपने लेख में बता रही हैं अम्‍बाह पीजी कॉलेज, मुरैना (मध्‍य प्रदेश) की माइक्रोबायलॉजी विभाग की असिस्‍टेंट प्रोफेसर लक्ष्‍मी सैनी

असिस्‍टेंट प्रोफेसर लक्ष्‍मी सैनी

हमारे बुजुर्गों द्वारा हमें हमेशा यह समझाया जाता है, कि इस शरीर को जैसा बनाओ यह वैसा ही बनता है और इसे जैसे चलाओ वैसे ही चलता है। इस बात को कभी-किसी ने गहराई से नहीं सोचा,कि ऐसा क्यों होता है। इसका एक वैज्ञानिक कारण है जिसका सीधा संबंध हमारे मस्तिष्क से होता है।

सभी मनुष्य यहां तक कि जीवों में भी एक घड़ी पाई जाती है। हमारा शरीर इसी घड़ी के अनुसार एक लय में चलता है जिसे ‘जैविक घड़ी’ या ‘बायोलॉजिकल क्लॉक’ कहते हैं । यह एक लय में चलती है, इसीलिए इसे ‘Circadian rytham’ (एक चक्र में चलना) कहते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इस घड़ी का सीधा संबंध प्रकृति की परिक्रमा से होता है जिसकी वजह से इस घड़ी को दिन-रात रात का पता चलता है।

क्या है जैविक घड़ी (biological clock) 

जैविक घड़ी सभी जीव धारियों  के शरीर में पाई जाने वाली, समय का निर्धारण करने के लिए समुन्नत व्यवस्था है। जिसके अनुसार ही मनुष्य का शरीर कार्य करता है जैस- सोना, भोजन,विश्राम,आदि अन्य कार्य । जैविक घड़ी का  मूल स्थान  हमारा मस्तिष्क है, जिसकी कोशिकाएं पूरे शरीर  की गतिविधियों को नियंत्रित और निर्धारित करती हैं। शरीर में पाई जाने वाली घड़ी का  पता Jeffrey C hall,Michael Ross Bass and Michael W young  के द्वारा लगाया था, जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था। 

कहने का अर्थ यह है कि,हमारी जीवन प्रणाली सभी मनुष्यों में एक जैसी है। यह कार्य प्रणाली 24 घंटे (किसी-किसी  में 22 घंटे) में एक चक्र के रूप में पूरी होती है जिसमें हम कई प्रकार के कार्य और गतिविधियां जैव घड़ी के अनुसार ही करते हैं और यदि यह घड़ी गड़बड़ा जाती है  तो पूरा तंत्र भी  गड़बड़ा जाता है। यदि यह तंत्र  अच्छे से लंबे समय तक कार्य न करें तो व्यक्ति की आयु तक भी कम होने लगती है।

इस घड़ी के आधार पर  ही हमारी दिनचर्या एक चक्र के रूप में पूरी होती है । जिसके दौरान हमारे शरीर अलग-अलग कार्यों को करता है और प्रत्येक कार्य शरीर के एक विशेष अंग द्वारा ही संपन्न होता है। तभी हमारा शरीर स्वस्थ रहता है अन्यथा कई बीमारियों का घर बन जाता है। 

चौबीस घंटे काम करने वाली इस घड़ी की  प्रक्रिया के बारे में धरती पर मिल रहे प्राचीन काल के शैवाल से जानकारी मिलती है।भारतीय मूल के युवा अभिषेक रेडी (यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज) द्वारा दैनिक कार्य प्रणाली सभी जीवों  में चौबीस  घंटों में एक जैसी होने को बताया गया। यदि दिनचर्या नियमित न हो तो जैविक घड़ी अव्यवस्थित हो जाती है। हजारों सालों से मनुष्य की दिनचर्या एक जैसी होने का कारण जैविक घड़ी है।  इस घड़ी के अनुसार ही शरीर के सभी संस्थानों को नियमित रूप से कार्य करने का आदेश मस्तिष्क की पीनियल ग्रंथि द्वारा स्रावित हार्मोन के माध्यम से दिए जाते हैं जिनमें मेलाटोनिन और सेरोटोनिन मुख्य है। क्योंकि इनका स्त्रावण शरीर में दिन-रात के कालचक्र के आधार पर होता है। जैसे मेलाटोनिन हार्मोन का स्रावण रात्रि में ही प्रकाश की अनुपस्थिति में होता है जिससे नींद आती है। जो स्वस्थ मस्तिष्क और शरीर के लिए आवश्यक है, जबकि दिन में ली हुई निद्रा इतनी फायदेमंद नहीं होती क्योंकि उस समय मेलाटोनिन स्रावित नहीं होता। इसलिए कहा भी जाता है कि रात को ड्यूटी करने वाले व्यक्ति जब दिन में नींद लेते हैं तो उस समय कमरे में अंधकार होना चाहिए। यदि किसी कारणवश इस प्राकृतिक कालचक्र में विक्षेप होता है तो शरीर में कई प्रकार के भयंकर रोग जैसे सिर दर्द व सर्दी से लेकर कैंसर जैसी भयंकर रोग भी हो सकते हैं। अवसाद, अनिद्रा जैसे मानसिक रोग, मूत्र संस्थान के रोग, उच्च रक्तचाप,  मधुमेह,  मोटापा, हृदय रोग आदि भी जैविक घड़ी के सुचारू रूप से न करने के कारण होते हैं। इसके कारण व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता भी कम होने लगती है। 

अंततः यह कहा जा सकता है और हमारे बुजुर्ग और डॉक्टर कहते आ रहे हैं कि व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए एक नियमित दिनचर्या को अपनाना चाहिए और यह नियमित दिनचर्या हमारे शरीर में पाई जाने वाली जैविक घड़ी के द्वारा ही निर्धारित होती है। यदि एक व्यक्ति शरीर और मस्तिष्क से स्वस्थ होता है तो वहअपने कार्य को तथा बच्चे पढ़ाई को बहुत अच्छे से कर सकते हैं जिससे खुद के विकास के साथ-साथ समाज और देश के विकास में भी सहायक होते हैं।