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एक माह में तीन राज्यों में डॉ गिरीश गुप्ता की होम्योपैथिक रिसर्च का प्रेजेंटेशन

-गुजरात, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में आयोजित कांफ्रेंस में साक्ष्य आधारित शोध कार्य प्रस्तुत करने के लिए किया गया आमंत्रित

सेहत टाइम्स

लखनऊ। होम्योपैथिक दवाओं से फायदा होने के वैज्ञानिक साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए होम्योपैथी को इलाज की मुख्यधारा में लाने के प्रयास जारी हैं। होम्योपैथी की ताकत साबित करने के लिए रिसर्च को जीवन का उद्देश्य बनाने वाले गौरांग क्लिनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च के संस्थापक एवं मुख्य परामर्शदाता डॉ गिरीश गुप्ता का विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया गया रिसर्च वर्क देश-विदेश में अपनी छाप छोड़ रहा है। सिर्फ अक्टूबर माह में ही तीन प्रदेशों में डॉ गिरीश गुप्त को उनके रिसर्च वर्क के प्रेसेंटेशन के लिए आमंत्रित किया गया। अहमदाबाद, गुजरात (1 अक्टूबर), नैनीताल, उत्तराखंड (19-20 अक्टूबर) के बाद अब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ होम्योपैथिक फिजिशियन्स आई आई एच पी के मध्य प्रदेश चैप्टर द्वारा 29 अक्टूबर को कांफ्रेंस आयोजित की गयी, कांफ्रेंस का विषय homyopathy as main stream medicine था। इसमें डॉ गिरीश गुप्ता को स्पीकर के रूप में आमंत्रित किया गया। डॉ गुप्ता ने सम्मेलन में त्वचा रोगों के साक्ष्य आधारित सफल इलाज की रिसर्च प्रस्तुत की।

होटल अम्बर ग्रीन्स में आयोजित स्टेट कांफ्रेंस को सम्बोधित करते हुए डॉ गुप्ता ने कहा कि जैसा कि आप सभी जानते हैं कि होम्योपैथी में इलाज रोग का नहीं बल्कि मरीज का होता है ऐसे में शारीरिक और मानसिक दोनों स्थितियों का आकलन कर दवा का चुनाव किया जाता है। उन्होंने बताया कि रिसर्च में त्वचा में होने वाले रोगों का कारण मनः स्थिति में पाया गया। उन्होंने बताया कि विभिन्न प्रकार के सपने आना, डर लगना, घबराहट, चिंता, आघात, इच्छा-आकांक्षा का पूरी ना होना, आर्थिक हानि, गुस्सा, भ्रम की स्थिति होना, अत्यधिक दुखी होना जैसे कारणों के चलते पैदा हुई मन की स्थिति से होने वाले त्वचा रोगों के उपचार के लिए मानसिक स्थिति को केंद्र में रखकर दवा दी गई तो जहां उसकी मनः स्थिति सामान्य हुई वहीं शारीरिक व्याधियां भी दूर हो गईं। उन्होंने कुछ मॉडल केसेज प्रस्तुत करते हुए उसके बारे में विस्‍तार से जानकारी भी दी। डॉ गुप्‍ता ने बताया कि किस तरह मन में आये विचार का असर दिमाग पर, उसके बाद हार्मोन्‍स पर और फि‍र शरीर के विभिन्‍न अंगों पर पड़ता है, जिससे उस अंग में रोग पनपता है। उन्‍होंने बताया कि होम्‍योपैथी के जनक डॉ सैमुअल हैनिमैन का कहना था कि मरीज के लिए दवा का चुनाव करते समय होलिस्टिक अप्रोच रखनी चाहिये। डॉ गुप्‍ता ने बताया कि होम्‍योपैथी के इसी क्‍लासिक सिद्धांत को अपना कर ही उन्‍होंने अपने सफल कार्य को अंजाम दिया।

डॉ. गुप्ता ने डर्मेटोलॉजी पर किए गए अपने शोधों का जिक्र करते हुए विटिलिगो यानी ल्‍यूकोडर्मा (सफेद दाग), सोरियासिस, एलोपीशिया एरियटा (इसमें बाल झड़ने लगते हैं), लाइकिन प्‍लेनस (इसमें त्‍वचा पर बैंगनी कलर के दाने हो जाते हैं), वार्ट (वायरल इन्‍फेक्‍शन), मोलस्‍कम कॉन्‍टेजियोसम (वायरल इन्‍फेक्‍शन) तथा माइकोसेस ऑफ नेल (नाखूनों में फंगस इन्‍फेक्‍शन) रोगों के होम्योपैथिक दवाओं से किए गए उपचार वाले शोधों की प्रस्तुति दी। डॉ गुप्ता ने इस मौके पर अपनी लिखी पुस्तक Evidence based research of Homoeopathy in Dermatogy के बारे में भी जानकारी दी। सम्मेलन में लुधियाना के प्रो डॉ मुक्तिन्दर सिंह और डॉ जूही गुप्ता ने भी अपने व्याख्यान दिए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में मध्य प्रदेश सरकार के आयुष विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी पंकज शर्मा शामिल हुए। इस मौके पर आई आई एच पी के राष्ट्रीय सलाहकार डॉ एके गुप्ता, आई आई एच पी मध्य प्रदेश स्टेट ब्रांच के प्रेसिडेंट डॉक्टर नरेंद्र पाठक आई आई एच पी मध्य प्रदेश स्टेट ब्रांच के वाइस प्रेसिडेंट डॉ वीके जैन, आई आई एच पी मध्य प्रदेश स्टेट ब्रांच के सचिव डॉ अतुल गुप्ता सहित अन्य पदाधिकारी भी शामिल रहे।

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