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ऑक्‍सीजन रहित ब्‍लड के जमाव से हो जाती है पैरों में वैरीकोज वेन बीमारी

आधुनिक तकनीक से इस बीमारी के इलाज में लगते हैं मात्र 20 मिनट

लखनऊ। वैरीकोज वेन बहुत ही सामान्य बीमारी हो गई है। इस बीमारी में पैर की नसों के वॉल्व और नस की दीवारें दोनों कमजोर हो जाती हैं, जिसकी वजह से ऑक्सीजन रहित खून पैर से ऊपर दिल की तरफ नहीं जा पाता है, परिणामस्‍वरूप पैर में ऑक्सीजन रहित खून इकट्ठा होने लगता है जो कि वैरीकोज वेन बीमारी का कारण बन जाता है। इस बीमारी का पता डॉपलर अल्‍ट्रासाउण्ड से किया जाता है।

 

यह जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर जितेन्‍द्र कुशवाहा ने यहां चल रहे सर्जरी विभाग के स्‍थापना सप्‍ताह समारोह में एक व्‍याख्‍यान में दी। उन्‍होंने बताया कि लगभग 40 से 60 प्रतिशत लोगों में होने वाली वैरीकोज वेन बीमारी में पैर की नसें मोटी-मोटी नीले रंग की बाहंर से ही दीखने लगती हैं। इस वैरीकोज वेन के द्वारा लगभग 40 से 60 प्रतिशत जनसंख्या प्रभावित है। इस बीमारी की वजह से मरीज को पैर में दर्द, पैर में सूजन, पैर में काले रंग के चकत्‍ते बने रहते है और बाद में घाव बन जाता है और यह घाव सामान्य ड्रेसिंग से नहीं भरते है। मरीज को इतना दर्द होता है कि उसका खड़ा होना और चलना भी मुश्किल हो जाता है।

 

क्यों होती है वैरीकोज वेन बीमारी

 

डॉ कुशवाहा ने बताया कि वैरीकोज वेन बीमारी का कारण है मोटापा होना, अधिक देर तक खड़े या अधिक देर तक बैठे रह कर काम करने वाले लोगों में देखा गया है। इसके अलावा औरतों में प्रेग्नेंसी में हार्मोन्स का स्तर बढ़ने से, पैर में चोट लगने से या जो मरीज बहुत लम्बे समय तक बिस्तर में पडे रहते हैं, उनमें भी देखा जाता है।

 

डॉ जितेन्द्र कुशवाहा ने बताया कि वर्तमान में इसका इलाज चीरा लगाने से होता है और लेजर या रेडियो फ्रिकवैन्सी से होता है।  लेजर या फ्रिकवैन्सी में चीरे लगाने की जरूरत नहीं पडती। लेकिन लेजर मशीन और रेडियो फ्रिकवैन्सी की मशीन की कीमत 25 लाख रूपये की आती है लेजर फाइबर से इलाज में कीमत 19 हजार रूपये होती है। इसमें लेजर फाइबर को पैर की खराब नस में डालकर उसको लेजर मशीन से जोड़कर इलाज किया जाता है और उसी दिन मरीज की छुट्टी हो जाती है। यह लेजर विधि द्वारा इलाज जनरल सर्जरी विभाग में की जाती है। लेजर फाइबर और लेजर फ्रिकवैन्सी का तापमान बहुत ज्यादा होता है।

 

नई तकनीक से वैरीकोज वेन का इलाज  

उन्‍होंने बताया कि अब जो नई तकनीकियां आई है, उसमें मोका ( MOCA) जिसका पूरा नाम (Machnical obliteration and chemical ablation) है। इस विधि में एक विशेष तरह की फाइबर बीमारी वाले नस में डाल देते है और इसमें जो तार होते है। उसके एक तरफ काँटें जैसे होते है। जिससे बीमारी वाली नस को क्षति कर दिया जाता है और उसी समय उसी फाइबर के द्वारा रासायनिक दवा भी डाली जाती है। जिससे खराब नस बंद हो जाती है।

 

दूसरी जो नई विधि है वो नस के अंदर एक विशेष गोंद डाली जाती है। जिसको (CAVA) Cyanoacrylate vain Ablation बोलते है। इस विधि में एक विशेष फाइबर के द्वारा बीमारी वाली नस में Cyanoacrylate के नाम की गोंद डाली जाती है। इन दोनों विधियों (MOCA AND CAVA) से इलाज में कोई विशेष मशीन की जरूरत नहीं पडती हैं और इसका तापमान भी सामान्य रहता है। इससे इलाज में किसी विशेष बेहोशी की भी जरूरत नहीं पडती। लगभग प्रति मरीज 8 हजार रूपये का खर्च पड़ता है और 20 मिनट का समय लगता है। इस विधि से इलाज में मरीज की छुट्टी भी उसी दिन हो जाती है। इन दोनों विधि से वैरीकोज वेन का इलाज अगले सप्ताह में विश्वविद्यलाय में शुरू होने वाला है।

 

ऐसे कर सकते हैं बचाव

डॉ कुशवाहा ने बताया कि वैरीकोज वेन बीमारी से बचने के लिए लोगों को चाहिये कि मोटापे से बचें, टहलने की आदत बनाये रखें, लगातार पांच से छह घंटे न तो खड़े रहें और न ही पांच से छह घंटे लगातार बैठे रहें।

 

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