-कर्मचारी-शिक्षक संयुक्त मोर्चा का आरोप, न दिव्यांगों की चिंता न इंसेफ्लाइटिस के मरीजों की
-दी चेतावनी, परिषद को न चाहते हुए भी आंदोलन के लिए विचार करना होगा
लखनऊ। बहुत जल्दबाजी में लिम्ब सेंटर को इधर उधर स्थानांतरित किये जाने का विरोध करते हुए कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा ने दिव्यांगों और आम जनता के हित में लिंब सेंटर की जगह कहीं और कोविड हॉस्पिटल बनाने का अनुरोध किया है।
मोर्चे के अध्यक्ष वी पी मिश्रा ने बताया कि लिम्ब सेंटर को जो कोविड अस्पताल बनाने का निर्णय, एक समिति ने लिया है, आज एक पत्र जारी कर कृत्रिम अवयव कार्यशाला को जिस स्थान पर स्थानांतरित करने को कहा है, वह स्थान लिंब सेन्टर के लिए अनुपयुक्त है ।
श्री मिश्रा ने कहा है कि केजीएमयू प्रशासन जल्दबाजी में फैसले ले रहा है। प्रशासन ने पहले कहा कि वर्कशॉप रहेगा, अब 24 घंटे में वर्कशॉप हटाओ ये आखिर क्या तमाशा है। कोर्ट में एफिडेविट दिया कि वर्कशॉप रहेगा, शासन को भी प्रस्ताव दिया कि वर्कशॉप रहेगा अब वर्कशॉप हटाने का निर्देश आ गया, वो भी शताब्दी की ग्राउंड फ्लोर में जहाँ हमेशा पानी भरा रहता है। अभी वर्तमान वर्कशॉप 8000 स्क्वायर फुट में है, शताब्दी में केवल 2000 फुट जगह फिर मशीनें उखाड़ने में सब बेकार हो जाएंगी।
उन्होंने कहा कि लिम्ब सेंटर परिसर पूरी तरह इधर उधर हटाया जाना तकनीकी एवं चिकित्सीय आधार पर भी गलत है, साथ ही साथ, यदि इस लिम्ब सेंटर को कोविड अस्पताल में परिवर्तित कर दिया गया तो प्रदेश के लाखों दिव्यांगजन, कृत्रिम अंग एवं सहायक उपकरण तथा पुनर्वास से वंचित हो जाएंगे साथ ही साथ प्रदेश के एक मात्र जेई एवं एक्यूट इंसेफ्लाइटिस के इलाज वाले केंद्र, जिसको शासन ने 5 करोड़ की लागत से स्थापित किया है उसके बंद हो जाने से, जापानी इंसेफेलाइटिस मरीजों का इलाज भी नहीं हो सकेगा।
केजीएमयू की एक समिति द्वारा प्रस्तावित कोविड अस्पताल को कोई अन्य सुरक्षित परिसर में निर्मित किया जाये और इस दिव्यांगजन केंद्र को दिव्यांगजनों के लिए संरक्षित रखा जाए। शासन द्वारा बार-बार कहा गया था कि लिंब सेंटर की जगह कोई और जगह देखकर पुनः प्रस्ताव भेजा जाए लेकिन समिति ने पुनः लिंब सेंटर का ही प्रस्ताव भेजा, जो जनहित में नहीं है।
श्री मिश्र ने कहा कि इसके बाद एक जनहित याचिका भी उच्च न्यायालय में लंबित है, जिसमें केजीएमयू प्रशासन से जवाब वांछित है। न्यायालय के निर्णय के बगैर जल्दबाजी में लिम्ब सेन्टर हटाया जाना न्यायालय की भी अवमानना है। उन्होंने कहा कि दिव्यांग मरीजों की चिंता एवं जनहित को देखते हुए इस संबंध में कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा द्वारा चिकित्सा शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर पूरी समस्या से अवगत कराया गया था।
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उत्तर प्रदेश के प्रांतीय अध्यक्ष सुरेश रावत ने भी लिंब सेंटर को अलग-अलग जगहों पर स्थानांतरित किए जाने से दिव्यांग जनों और विशेष तौर पर प्रदेश में दिव्यांग कर्मचारियों के इलाज में आने वाली समस्याओं की तरफ भी सरकार का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया है। सुरेश रावत ने कहा कि सरकार द्वारा दिव्यांग जनों को अनेक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं प्रदेश में राजकीय सेवाओं में दिव्यांगों का स्थान आरक्षित है और पूरे प्रदेश में दिव्यांगों के चिकित्सा के लिए एकमात्र संस्थान लिंब सेंटर है। अब लिम्ब सेंटर के विभिन्न विभागों को अलग-अलग स्थानों पर दूर-दूर पर स्थानांतरित किए जाने से दिव्यांगजनों का इलाज अत्यंत मुश्किल हो जाएगा इसलिए यदि जल्दबाजी में केजीएमयू प्रशासन द्वारा स्थानांतरण किया जाता है तो परिषद को न चाहते हुए भी आंदोलन के लिए विचार करना होगा।
लिम्ब सेंटर का इतिहास
उत्तर प्रदेश के दिव्यांगों का एकमात्र विशिष्ट पुनर्वास केंद्र लिंब सेंटरके संबंध में मोर्चे के उपाध्यक्ष सुनील यादव का कहना है कि डिपार्टमेंट ऑफ आर्थोपेडिक के.जी.एम.सी. के अंतर्गत वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश वार के समय लॉटरी फंड से 9 करोड़ रुपये दिये थे, इसका नाम आर्टिफिशियल लिंब सेंटर एवं प्रोस्थेटिक वर्कशॉप रखा गया। उस समय वर्कशॉप, फिजियोथेरेपी, आकुपेशनल थेरेपी, वोकेशनल सेक्शन तथा ओपीडी की स्थापना एवं संचालन शुरू हुआ। फिर 1974 से 76 के पूर्व बिल्डिंग का निर्माण हुआ और सौ बेड का अस्पताल पैराप्लीजिया सेंटर, ऑपरेशन थिएटर वगैरह शुरू हुए। उसी समय दिव्यांगों के लिए लकड़ी का हाल और रीक्रिएशनल यूनिट शुरू हुई जहां पर विकलांगों को शारीरिक रूप से सक्षम बनाए जाने के लिए खेलकूद सिखाए जाते थे, जिसके माध्यम से पैरा ओलंपिक 1976-1981 में यहां के दिव्यांगों ने 6 गोल्ड मेडल जीते तभी वोकेशनल यूनिट की स्थापना हुई तथा आजीविका के लिए आत्मनिर्भर बनाने के लिए रोजगारपरक कार्य भी सिखाए जाते थे।
स्थापना काल के समय 154 पदों का सृजन किया गया था, संचालन के लिए यह हड्डी विभाग के अधीन था पर इसका पूर्ण रूप से पृथक बजट शासन द्वारा आवंटित होता था। वर्ष 1976 में इस विभाग का नाम आर.ए.एल.सी. रखा गया तब इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने किया था, उस समय के.जी.एम.सी. लखनऊ विश्वविद्यालय का अंग था। वर्ष 1980 में इस विभाग को स्वतंत्र सोसाइटी में परिवर्तित किया गया था जिसको बाद में शासन द्वारा 1986 में भंग करके राज्य सरकार के अधीन एक पूर्णकालिक निदेशालय बना दिया गया और तब इसका पृथक निदेशक बनाया गया जिसका नियंत्रण शासन द्वारा नामित 11 सदस्य समिति के पास था तथा जिसके अध्यक्ष मुख्य सचिव होते थे और आज भी हैं, वह शासनादेश आज भी यथावत है।
वर्ष 1992 में के.जी.एम.यू. लखनऊ विश्वविद्यालय के अधीन फिर चला गया पर लिंब सेंटर के कर्मचारियों ने उच्च न्यायालय में याचिका संख्या 5809-92 के माध्यम से स्टे ले लिया जिसमें लिंब सेंटर पूर्ण रूप से शासन का अंग ही रहा। बाद में शासन द्वारा वर्ष 1994 में एक शासनादेश के माध्यम से इस विभाग को केवल शैक्षणिक उद्देश्य के लिए के.जी.एम.सी. में संबद्ध किया गया बाकी पूरा विभाग वर्ष 2002 तक शासन के नियंत्रण में ही रहा।
के.जी.एम.यू. एक्ट 2002 का उल्लंघन होगा लिम्ब सेंटर को हटाना
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1986-1994 निर्गत शासनादेश एवं के.जी.एम.यू. एक्ट 2002 अध्याय 2 के कॉलम 04 के तहत उक्त लिंब सेंटर का प्रयोग केवल दिव्यांगों के पुनर्वास कार्य के लिए करना निर्धारित है तथा इसको कोई अन्य अस्पताल बनाने से इसका उल्लंघन होगा एवं दिव्यांगों का पुनर्वास कार्य बाधित होगा। इस केंद्र में दिव्यांगों के कृत्रिम उपकरण निर्माण एवं मरम्मत करने के लिए एकमात्र वृहद कार्यशाला है, जो पूर्णतः बंद हो जाएगी।
लिंब सेंटर के भवन में प्रमुख पांच विभाग आर्थोपेडिक सर्जरी, फिजिकल मेडिसिन एवं पुनर्वास गठिया रोग विभाग, पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक सर्जरी तथा स्पोर्ट्स मेडिसिन विभागों की ओपीडी तथा वार्ड संचालित हो रहे हैं, जो कि प्रदेश में केवल एकमात्र जगह ही उपलब्ध हैं, साथ ही पी॰एम॰आर॰ विभाग प्रदेश में एकमात्र ऐसा जगह है जो जापानी इंसेफेलाइटिस के मरीजों का समुचित इलाज मुहैया करा रहा है।
अतः दिव्यांगों के पुनर्वास कार्य को महत्व देते हुए उन पर मानवीय आधार पर विचार कर पुरवत बनाये रखे जाने का अनुरोध किया गया। मोर्चे का कहना है कि चोट लगे हुए मरीजों में 30 से 40% मरीजों को आर्थोपेडिक इंटरवेंशन की जरूरत होती है, जो मेडिकल कॉलेज के इसी डिपार्टमेंट से दिया जाता है ।
* यहां केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं अगर बगल के राज्यों से भी मरीज आकर सेवाएं प्राप्त करते हैं ।
*यह सेंटर रीढ़ की हड्डी की चोट, आर्थ्रोप्लास्टी और आर्थ्रोस्कॉपी का एकमात्र सेंटर है ।
इस भवन के निकट एसएसनी दफ्तर है। घनी बस्ती जवाहर नगर, रिवरबैंक कॉलोनी है, इसलिए यहां संक्रमण के प्रसार का खतरा ज्यादा है। मोर्चे का कहना है कि कंवेंशन सेंटर को कोविड हॉस्पिटल में आसानी से तब्दील किया जा सकता है। इसके अलावा परिसर में कई अन्य भवन हैं जो बनकर लगभग तैयार हैं, फिलहाल के तौर पर उनका भी इस्तेमाल किया जा सकता है।