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केजीएमयू ने रचा इतिहास, दिल की अति दुर्लभ बीमारी ईसेनमेंगर सिंड्रोम से ग्रस्‍त तीन महिलाओं की बचायी जान

-तीन महिलाओं की जान बचाने वाला देश का अकेला संस्‍थान बना केजीएमयू

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। ईसेनमेंगर सिंड्रोम महिलाओं को होने वाली दिल की एक बहुत ही दुर्लभ और घातक बीमारी है जो .003 प्रतिशत मरीजों में पाई जाती है इससे पीड़ित 70% महिलाओं की मृत्यु हो जाती है, ऐसी घातक बीमारी से अब तक तीन गर्भवती महिलाओं को बचाकर किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के एनेस्‍थीसिया व क्रिटि‍कल केयर विभाग व स्‍त्री एवं प्रसूति रोग विभाग ने संयुक्‍त रूप से इतिहास रचा है। 3 महिलाओं की इस दुर्लभ बीमारी से जान बचाने वाला केजीएमयू संस्थान देश का पहला संस्थान बन गया है। इस बीमारी के कारण श्‍वास की धमनी में बदलाव आ जाते हैं, जिससे हार्ट फेल हो जाता है और मरीज की अचानक मौत हो जाती है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की गाइडलाइंस में इस बीमारी से पीडि़त महिलाओं को गर्भधारण न करने की सलाह दी गयी है।

सीजेरियन की स्थिति में किसी भी रूप में एनेस्थीसिया देने से बीमारी के बिगड़ने का डर बन जाता है, जिससे हाइपोक्सिया और अचानक मृत्यु हो जाती है। मामले की रिपोर्टों के अनुसार चीन से अब तक केवल 2 लोगों के जीवित बचने की सूचना मिली है।
प्रो जीपी सिंह के नेतृत्व में एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर विभाग ने पिछले दो वर्षों में लगातार 3 जीवित रहने की सफलतापूर्वक रिपोर्ट करके एक अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क स्थापित किया है, जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच में रिकॉर्ड में सबसे बड़ी संख्या है।
पिछले दो रोगियों को कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ करण कौशिक और टीम द्वारा एक विशिष्ट तकनीक द्वारा सफलतापूर्वक प्रबंधित किया गया था। तीसरे मरीज को डॉ. शशांक कनौजिया और उनकी टीम ने इसी तकनीक से सफलतापूर्वक संभाला।
गोरखपुर की रहने वाली 26 वर्षीय नीलिमा 10 सितंबर को सांस लेने में कठिनाई और धड़कन में परेशानी के साथ गर्भावस्‍था की अपनी अंतिम तिमाही में क्‍वीनमैरी हॉस्पिटल आई थी। उसे फैलोट के टेराटोलॉजी और सिर्फ 25% हृदय समारोह का निदान किया गया था, जिससे ईसेनमेंगर सिंड्रोम हुआ था और उसे प्रोफेसर एसपी जैसवार के तहत भर्ती कराया गया था। प्रसूति टीम ने तुरंत आपातकालीन एनेस्थीसिया टीम के साथ परामर्श किया, जिसका नेतृत्व प्रोफेसर जीपी सिंह और डॉ शशांक कनौजिया ने किया। डॉ. शशांक कनौजिया और उनकी टीम ने डॉ. करण कौशिक (जिन्होंने इस तरह के पिछले दो मामलों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया) के परामर्श से दिल को सहारा देने के लिए दिल तक पहुंचने वाली प्रमुख वाहिकाओं के कैनुलेशन के बाद एक क्षेत्रीय तकनीक के साथ बेहद उच्च जोखिम वाले एनेस्थीसिया को अंजाम दिया। प्रोफेसर अंजू अग्रवाल और डॉ मोना बजाज ने सर्जरी टीम का नेतृत्व करते हुए सफलतापूर्वक सीजेरियन सेक्शन किया और बच्चे को बचाया। डॉ. शशांक और टीम द्वारा स्थिर किए जाने के बाद मां को ट्रॉमा वेंटिलेटरी यूनिट (टीवीयू) में भेज दिया गया।

टीवीयू में जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर जीपी सिंह करते हैं, मे पिछले दो रोगियों की तरह, इस रोगी को भी डॉ जिया अरशद, डॉ रवि प्रकाश और डॉ रति प्रभा द्वारा सफलतापूर्वक प्रबंधित किया गया था। मां और बच्चे दोनों को 14 अगस्‍त को स्वस्थ स्थिति में छुट्टी दे दी गई।

एनेस्थीसिया और आईसीयू टीम का नेतृत्व करने वाले प्रो जीपी सिंह कहते हैं कि इस रोग में जान बचाते हुए प्रबंधन किये जाने की विशिष्ट तकनीक जल्द ही प्रकाशित की जाएगी ताकि ऐसे रोगियों की जान बचायी जा सके।

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