-आईएमए में स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स एवं एक वृहद सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) का आयोजन
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सेहत टाइम्स
लखनऊ। किशोरावस्था में बच्चों के अंदर बहुत से शारीरिक बदलावों के साथ ही मानसिक बदलाव आते हैं जो उन्हें समय-समय पर सोचने पर मजबूर कर देते हैं, जिससे उनके व्यवहार में बदलाव आता है, अनेक केस में यह स्थिति अभिभावकों की समस्या का कारण बन जाती है। शारीरिक बदलाव मानसिक तनाव और विकारों को जन्म न दे इसके लिए उन्हें समय-समय पर चिकित्सक के संपर्क में रहना चाहिए।
यह बात सीनियर कन्सल्टेंट डॉ निरुपमा पांडेय मिश्रा ने रविवार को इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन की लखनऊ शाखा द्वारा यहां आईएमए भवन में आयोजित स्टेट लेवल रिफ्रेशर कोर्स एवं एक वृहद सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में अपने व्याख्यान में कही। डॉ निरुपमा ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 10-19 वर्ष की अवस्था को किशोरावस्था कहते हैं। डा निरुपमा मिश्रा ने बताया कि आज विश्व किशोरावस्था सप्ताह पूरे विश्व में 21-27 मार्च मनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि हमें किशोर-किशोरियों की समस्याओं को समझना होगा। उन्होंने कहा कि बच्चों में हो रहे शारीरिक विकास में थोड़ा भी बदलाव या नॉर्मल से हटकर लक्षणों को लेकर कई बार अभिभावकों में चिंता हो जाती है। ऐसे में मेरी सलाह है कि उन्हें महंगी जांचों और दवाओं के बजाय सिर्फ सांत्वना देना अधिक लाभकारी है। समस्या यदि फिर भी बनी रहे तो चिकित्सक से सम्पर्क करें जिससे कि शारीरिक बदलाव मानसिक तनाव और विकारों को जन्म न दे। डॉ निरुपमा ने कहा कि आज के किशोर कल का भविष्य हैं इसलिए उन्हें सुनें और समझें, यही उनके भविष्य के अच्छा होगा।
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