Wednesday , October 11 2023

आईवीएफ से संतान : आगाज से अंजाम तक रखना होगा अलग तरीके से ध्‍यान

-बांझपन और उच्‍च जोखिम वाली गर्भावस्‍था पर चर्चा करेंगे देश भर से जुड़े विशेषज्ञ

-3 और 4 सितम्‍बर को होटल क्‍लार्क्‍स अवध में आयोजित हो रही सीएमई

डॉ गीता खन्‍ना

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। बांझपन के शिकार दम्‍पतियों के आंगन में खुशियों की सौगात देने वाली आईवीएफ टेक्निक के बारे में आज लगभग सभी जान चुके हैं। ऐसे में इंतजार के बाद माता-पिता बनने के सुख से वंचित दम्‍पतियों के मन में इस टेक्निक के जरिये संतान सुख को पाने की लालसा जन्‍म लेने लगती है। आईवीएफ के लिए चिकित्‍सक से मिलने से लेकर स्‍वस्‍थ संतान उत्‍पन्‍न होने तक का सफर बहुत ही नाजुक और चुनौतियों से भरा होता है, क्‍योंकि थोड़ी सी भी असावधानी दम्‍पति की खुशियों में ग्रहण लगा सकती है।

अजंता होप सोसाइटी ऑफ रिप्रोडक्शन एंड रिसर्च (एएचएचआर), अजंता हॉस्पिटल एंड आईवीएफ सेंटर, लखनऊ, इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी व लॉग्‍स के संयुक्‍त तत्‍वावधान में इस विषय पर एक सतत चिकित्‍सा शिक्षा (सीएमई) का आयोजन 3 एवं 4 सितम्‍बर को किया जा रहा है। यहां होटल क्‍लार्क्‍स अवध में होने वाले इस आयोजन में देशभर के लगभग 250 विशेषज्ञ चिकित्‍सक हिस्‍सा ले रहे हैं। इस सीएमई की थीम है बांझपन और उच्‍च जोखिम वाली गर्भावस्‍था में निर्णय लेने में आने वाली कठिनाइयों का समाधान कैसे करें। इस सीएमई में देश के नामचीन विशेषज्ञ इससे जुड़े पहलुओं पर विशेष और नयी जानकारियां साझा करेंगे, जिससे इस क्षेत्र में कार्य कर रहे चिकित्‍सकों को नि:संतान दम्‍पतियों को संतान सुख देने में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने के मदद मिलेगी।

उहापोह से कैसे निकलें बाहर

इस बारे में इस आयोजन की चेयरपर्सन डॉ गीता खन्‍ना बताती हैं कि हर बांझ रोगी जिसे पता चलता है कि वह गर्भ धारण करने में सक्षम नहीं है, सबसे पहले उसके सामने यह प्रश्‍न होता है कि कहां जाना है, और डॉक्टरों को भी कठिनाई होती है कि निदान कैसे करें। डॉ खन्‍ना कहते हैं कि यहां आवश्‍यकता इस बात की है कि किसी भी निर्णय को लेने में समय न बर्बाद किया जाये, साथ ही यह भी ध्‍यान रखा जाये कि पहले से ही परेशान दम्‍पति की कम से कम खर्च वाली आवश्‍यक जांचों को कराकर ही उपचार की दिशा तय की जाये।

डॉ खन्‍ना कहती हैं कि समय का महत्‍व इसलिए भी ज्‍यादा है क्‍योंकि क्‍योंकि सामान्‍यत: आजकल विवाह होने में ही देर होती है, फि‍र दम्‍पति संतान की प्‍लानिंग करने में कुछ समय लगाते हैं, इसके पश्‍चात कुछ समय संतान की प्राप्ति की उम्‍मीद में निकल चुका होता है। यानी कुल मिलाकर पहले ही काफी समय निकल चुका होता है, यहां यह ध्‍यान रखने की बात है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे गर्भ धारण करने में भी समस्‍याएं बढ़ती हैं।

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी

डॉ खन्‍ना बताती हैं कि ध्‍यान रखने वाली बात यह है कि आईवीएफ से हुई प्रेगनेंसी को साधारण गर्भधारण करने की तरह नहीं ट्रीट किया जा सकता है।  उन्‍होंने बताया कि ब्‍लड प्रेशर और ब्‍लड शुगर जैसे रोग जो आम हो चुके हैं, ये संतान प्राप्ति में बाधक बन सकते हैं। इसी प्रकार अन्‍य ऐसी बातें जो साधारण गर्भावस्‍था में आम होती हैं, लेकिन आईवीएफ गर्भावस्‍था में इन पर बारीक नजर रखनी आवश्‍यक है। उन्‍होंने कहा कि ऐसे में आवश्‍यक यह है कि गर्भधारण करने में सफलता मिलने के बाद गर्भावस्‍था के दौरान और फि‍र डिलीवरी भी आईवीएफ स्‍पेशलिस्‍ट की ही देखरेख में हो।

सिर्फ चुनिंदा टेस्‍ट ही काफी

डॉ गीता खन्‍ना कहती हैं कि डॉक्टर और मरीज दोनों के मन में भ्रम की स्थिति होती है। सीएमई में इसी उहापोह से बाहर निकलने के लिए एक आसान उत्तर खोजने के व्यवस्थित दृष्टिकोण पर चर्चा की जाएगी। उन्‍होंने कहा कि इस बारे में सर गंगा राम अस्पताल दिल्ली की अनुभवी विशेषज्ञ डॉ आभा मजूमदार द्वारा जानकारी दी जायेगी जिसमें बताया जायेगा कि अनावश्‍यक टेस्‍ट न कराकर कुछ चुनिंदा टेस्‍ट करवाये जायें ताकि पहले से ही संतान न होने के कारण अवसाद से ग्रस्‍त रोगी के समय और पैसे की बचत की जा सके।

हार्मोन का चुनाव

उन्‍होंने बताया‍ कि इसी प्रकार इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी की सचिव डॉ सुरवीन घूमन द्वारा बताया जायेगा कि अगर अंडाशय ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, या अंडे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं, तो अंडे बनाने के लिए या अंडाशय को उत्तेजित करने के लिए किस प्रकार की महिला को कौन से हार्मोन दिये जायें।  

कैसे होगा दवा का खर्च आधा

उन्‍होंने बताया‍ कि इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी के अध्‍यक्ष डॉ केडी नायर की नोट स्‍पीकर हैं यह एक महत्वपूर्ण हार्मोन प्रोजेस्टेरोन की भूमिका के बारे में बतायेंगे जिससे दवाओं का खर्च आधा हो जायेगा।  डॉ खन्‍ना ने बताया कि पुरुषों में शुक्राणुओं की पर्याप्‍त संख्‍या, अच्‍छे शुक्राणुओं का आसानी से चुनाव, उनकी गुणवत्‍ता, प्रक्रिया के दौरान उनका डीएनए किस प्रकार बरकरार रखा जाये जैसी महत्‍वपूर्ण जानकारी इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी के पूर्व अध्‍यक्ष व अंतर्राष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त बांझपन विशेषज्ञ डॉ कुलदीप जैन देंगे।

डॉ गीता ने बताया कि कानपुर की प्रो मीरा अग्निहोत्री बतायेंगी कि नौ महीने तक गर्भावस्था को बनाए रखने के लिए हार्मोन प्रोजेस्टेरोन भी बहुत महत्वपूर्ण हार्मोन है, लेकिन इसके उपयोग की सही विधि क्‍या है। इसी प्रकार बांझपन विशेषज्ञ दिल्ली की प्रो सोनिया मलिक बतायेंगी कि अगर किसी महिला का बार-बार गर्भपात हो रहा है तो पहले उसकी इम्यूनोलॉजी की जांच करनी चाहिये। यह देखना चाहिये कि कहीं महिला किसी एलर्जी की शिकार तो नहीं है।  

आईयूआई सबके लिए नहीं

उन्‍होंने बताया कि इसके अतिरिक्‍त सेना के विशिष्ट सेवा पदक से सम्‍मानित दिल्ली के डॉ. पंकज तलवार बतायेंगे कि आईयूआई तकनी‍क, जिसे गरीबों का आईवीएफ भी कहा जाता है, का इस्‍तेमाल किन मरीज में करें और किन मरीजों में नहीं। ज्ञात हो अनावश्‍यक रूप प्रत्‍येक मरीज में आईयूआई करने से जहां समय की बर्बादी होती है, वहीं मरीज पर भी खर्च का भार बढ़ता है।

डॉ गीता खन्‍ना बताती हैं कि एडिनोमायोसिस गर्भाशय की एक बहुत ही गंभीर बीमारी है जो बांझपन के लिए जिम्मेदार है, हार्मोन्‍स के कारण होने वाली इस बीमारी को कैसे डायग्‍नोस करें,  कैसे इलाज करें इसके बारे में डॉ टी रमानी देवी जानकारी देंगी। आईवीएफ गर्भावस्था का प्रबंधन कैसे किया जाए, इसकी जानकारी पुणे की डॉ गिरिजा वाघ द्वारा दी जाएगी।

उन्‍होंने बताया कि साइंटिफि‍क कमेटी की चेयरपर्सन डॉ प्रीति कुमार बतायेंगी कि गर्भावस्‍था में मधुमेह से कैसे निपटें, क्‍योंकि मधुमेह आजकल एक बहुत ही आम बीमारी है और यह गर्भावस्था को प्रभावित करती है। डॉ प्रीति कुमार बतायेंगी कि रक्‍त में उच्‍च शर्करा का स्‍तर गर्भाशय में बढ़ते बच्चे को कैसे प्रभावित करता है।

इसी प्रकार दिल्‍ली के डॉ कुलदीप बतायेंगे कि गर्भावस्‍था में अल्ट्रासाउंड से बीमारियों का निदान किस प्रकार किया जाये,  किस प्रकार उसका सही प्रयोग किया जाये, विशेष रूप से गर्भावस्था के पहले तीन महीनों में जब बच्चे के अंग बन रहे हैं, यह केवल अल्ट्रासाउंड द्वारा देखा जा सकता है।

उन्‍होंने कहा कि उड़ीसा के डॉ पीएल त्रिपाठी बतायेंगे कि गर्भावस्‍था में उच्‍च रक्‍तचाप बढ़ते बच्‍चे में किन प्रकार की समस्‍याएं पैदा करता है। इसके अलावा एक पैनल चर्चा की जायेगी जिसमें मधुमेह, रक्तचाप, जुड़वाँ, बार-बार गर्भपात का इतिहास, उम्र बढ़ने वाली महिलाओं से जुड़ी उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था पर विचार-विमर्श होगा। इस चर्चा में नागपुर की डॉ सुषमा देशमुख और केजीएमयू की डॉ स्‍मृति अग्रवाल भाग लेंगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.