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महिलाओं में सांस संबंधी रोगों में शारीरिक संरचना व परिस्थितियों की भी विशेष भूमिका

-अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस पर केजएमयू के पल्‍मोनरी विभाग ने दी महत्‍वपूर्ण जानकारियां
-जानिये पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में कितनी भिन्‍न हैं श्‍वसन संबंधी बीमारियां
प्रो सूर्यकांत

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। सांस संबंधी बीमारियां पुरुष और महिलाओं में किस प्रकार से भिन्‍न हैं, वे कौन से विशेष कारण हैं जिनसे ये बीमारियां महिलाओं में होती है, इन रोगों के लिए महिलाओें की शारीरिक संरचना से लेकर कारणों तक का विश्‍लेषण करने के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस पर यह जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍व विद्यालय के पल्‍मोनरी विभाग की ओर से दी गयी है।

किंग जॉर्ज चिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय के पल्‍मोनरी विभाग के विभागाध्‍यक्ष प्रो सूर्यकांत के साथ डॉ कंचन श्रीवास्‍तव, डॉ ज्‍योति बाजपेयी तथा अपूर्वा नारायण द्वारा श्‍वसन सम्‍बन्‍धी बीमारियों पर महिलाओं में होने वाले असर के बारे में दुनिया भर में प्रकाशित अनेक लेखों के संकलन और उनके तुलनात्‍मक अध्‍ययन का निचोड़ एक लेख में समेटा गया था जो कि 2018 में प्रकाशन के लिए स्‍वीकृत हुआ था तथा इसका प्रकाशन जर्नल ऑफ एसोसिएशन ऑफ चेस्ट फिजिशियन्स 2019 में किया गया है।

डॉ कंचन श्रीवास्‍तव

संकलित लेखों का अध्‍ययन बताता है कि श्वसन संबंधी बीमारियां जैसे अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), ऑब्सट्रक्टिव स्लीप डिसऑर्डर, लंग कैंसर, इंटरस्टीशियल लंग डिजीज और ट्यूबरकुलोसिस धूम्रपान और बायोमास ईंधन से प्रभावित होती हैं। सात व्यक्तियों में से लगभग एक व्यक्ति फेफड़े की पुरानी बीमारी से प्रभावित होता है, सबसे आमतौर पर सीओपीडी, पुरानी ब्रोंकाइटिस, टीबी और लंग कैंसर है। सांस के रोग सांस नली को प्रभावित करते हैं, जिसमें नाक मार्ग, ब्रोन्काई और फेफड़े शामिल हैं। महिलाओं में लक्षणों की अभिव्यक्ति, रोग की प्रगति, और अवसाद में अंतर हो सकता है। यद्यपि महिलाओं के फेफड़े पुरुषों की तुलना में छोटे होते हैं, वे पूरे जीवनकाल के दौरान उच्च प्रवाह दर का प्रदर्शन करते हैं। फेफड़ों के कार्य की तथा जैविक संरचना में अन्तर होता है जिसके कारण महिलाएं सांस के रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

डॉ ज्‍योति बाजपेयी

अस्थमा युवा वयस्कों व महिलाओं को प्रभावित करने वाली सबसे आम पुरानी बीमारियों में से एक है। किशोरावस्था के बाद लड़कियों में अस्थमा का पैटर्न बढ़ रहा है, जिसकी मुख्य वजह इसके हार्मोन के प्रभाव पर आधारित है। 35 साल से अधिक उम्र के पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अस्थमा 20 प्रतिशत अधिक होता है। महिलाओं में घरेलू, व्यावसायिक, बायोमास ईंधन, खुशबू, और कॉस्मेटिक से संबंधित रासायनिक पदार्थों के साथ मनोवैज्ञानिक जोखिम भी हो सकते हैं। अवसाद और मोटापा अस्थमा के लक्षणों या गंभीरता को बढ़ाने में योगदान कर सकते हैं। संवेदी पदार्थों और कणों के पर्यावरणीय जोखिम के साथ आनुवांशिक प्रवृत्ति के संयोजन के लिए सबसे मजबूत जोखिम कारक एलर्जी प्रतिक्रियाओं को उत्तेजित कर सकते हैं या वायुमार्ग को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे कि घर के अन्दर व बाहर की एलर्जी (घर की धूल व बिस्तर की कालीन, फर्नीचर, प्रदूषण, पालतू जानवर, पराग), तंबाकू का धुआँ, कार्यस्थल पर वायु प्रदूषण आदि। अन्य कारणों में ठंडी हवा, क्रोध या भय और अधिक शारीरिक व्यायाम शामिल हो सकते हैं।

महिलाओं ने पिछले 2 दशकों में सीओपीडी और फेफड़ों के कैंसर की मृत्युदर में तेजी से वृद्धि आयी है, बायोमास ईंधन पौधों या जानवरों से प्राप्त कोई भी सामग्री है जो मनुष्यों द्वारा जान-बूझकर जलाया जाता है। धूम्रपान करने वाली महिलाओं में सीओपीडी बायोमास ईंधन का उपयोग करने के कारण होती है।

अपूर्वा नारायण

लकड़ी और अन्य बायोमास ईंधन के जलने से उत्पन्न होने वाले इनडोर वायु प्रदूषण के कारण हर साल महिलाओं की मौत अधिक हो रही है। बायोमास के धुएं में कई पदार्थ मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण कण, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड (मुख्य रूप से कोयले से), फॉर्मलाडेहाइड और पॉलीसाइक्लिक कार्बनिक पदार्थ हैं, जिनमें बेंजोपाइरीन जैसे कैंसर बढ़ाने वाले रासायनिक पदार्थ शामिल हैं। बायोमास के संपर्क में आने वाले रोगियों में लगातार फेफड़ों में कार्बन का जमाव होता है। पीएम10 कण फेफड़ों में गहराई से प्रवेश करते हैं और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। महिलाओं में बढ़ता धूम्रपान, बायोमास और एल्कोहल का प्रयोग सांस की बीमारियों को बढ़ावा दे रहा है। लकड़ी, कोयला व धुआं उनकी सेहत को बदरंग कर रहा है। बढ़ते हुए धूम्रपान के कारण एक दिन में कई सिगरेटों का धुआं उनके फेफड़ों को प्रभावित कर रहा है। आजकल स्मोकर कटेगरी में 75 प्रतिशत पुरुष व 25 प्रतिशत महिलाएं पायी जाती है।

टीबी दुनिया में महिलाओं की मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है, हर साल 1 मिलियन से अधिक महिलाओं की मृत्यु 15 से 44 वर्ष तक की आयु में होती है। हालाँकि कई सारे कारणों की वजह से महिलाओं में बीमारी की रिपोर्टिंग सोशियो-इकोनॉमिक और कल्चरल फैक्टर के कारण देर से होती हैं। अध्ययनों से पता चला है कि यह बीमारी उन महिलाओं को प्रभावित करती है जिनके घरों में महिलाओं को कई प्रकार की मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना व उनकी उपस्थिति को अधिक महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता है।

टीबी से पीड़ित महिला रोगियों में अवसाद, चिंता, मनोविकृति जैसे मनोरोग संबंधी विकार होने की संभावना होती है, साथ ही कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं जैसे धूम्रपान, शराब का सेवन, तलाक और परिवार से अलगाव आदि है। शोध कार्यों के अनुसार बताते हैं कि धूम्रपान करने के कारण महिलाओं की श्वसन प्रणाली को बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को कमजोर कर सकते हैं। बीमारी को बढ़ावा देने के लिए संस्कृति, जातीयता, शिक्षा स्तर, पारिवारिक संरचना, सामाजिक और आर्थिक वातावरण अलग-अलग पायी गई है। भीड़भाड़ और खराब वेंटिलेशन से टीबी बैक्टीरिया के प्रसार की सम्भावनाएं बढ़ जाती है। यह गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चों के लिए काफी जोखिम भरा होता है। टीबी को दोमुही धार वाली तलवार के रूप में जाना जाता है, एक ओर गर्भावस्था पर टीबी का प्रभाव और नवजात शिशु के विकास को दर्शाता है, जबकि दूसरा टीबी की प्रगति पर वार करता है। अन्य सामाजिक कारक भी पुरुषों और महिलाओं में असमानता को बढ़ावा देते हैं। अविवाहित महिलाएं अक्सर दूर के स्वास्थ्य केंद्र से आने-जाने में असर्मथ होती हैं।

निदान के प्रकटीकरण से उन्हें शादी के लिए एक साथी खोजने में समस्या हो सकती है। महिलाओं में व्यावसायिक फेफड़ों के रोगों में वृद्धि की पहचान कई अध्ययनों में की गई है, विशेष रूप से व्यावसायिक अस्थमा, वायुमार्ग की बीमारियों से संबंधित है। इस बात के भी प्रमाण हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में एयरवे में एयरोसोल का जमाव अधिक होता है। व्यावसायिक अस्थमा के लिए एक्सपोजर मुख्य रूप से प्रयोगशाला पशु कार्यकर्ता, कालीन, बीड़ी, और अगरबत्ती उद्योग, घरेलू सफाई, कपड़ा मिल श्रमिक और पेस्ट्री निर्माता शामिल हैं।सेकंड-हैंड एक्सपोजर महिलाओं में फेफड़े के कैंसर के विकास के लिए भी कारक हो सकता है और वे अक्सर केसिनो, बार और दूसरे क्षेत्रों में अप्रत्यक्ष तंबाकू के धुएँ के संपर्क में आते हैं जिसके कारण 62.7 प्रतिशत वयस्क धुएं के संपर्क में होने से एवं सार्वजनिक स्थानों पर 29.1 प्रतिशत वयस्क धुएं के संपर्क से प्रभावित होते हैं। महिलाएं निष्क्रिय धूम्रपान के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। तम्बाकू धूम्रपान अभी भी मुख्य रूप से एक प्रथा और पुरुषों का एक लत रहा है, जो महिलाओं और बच्चों को दुनिया के अधिकांश या अनैच्छिक धूम्रपान करने वालों के रूप में छोड़ देता है। कई मायनों में महिलाओं के लिए घर पर धूम्रपान की समस्या से निजात पाना कठिन है। सार्वजनिक कार्य स्थानों पर धूम्रपान पर व्यापक प्रतिबंध तथा महिलाओं को कम से कम अपने घर में पर्यावरण को तंबाकू के धुएं के संपर्क से मुक्त के लिए सशक्त बनाना आवश्यक है।