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फार्मेसी एक्‍ट के अनुसार पशु चिकित्‍सालयों में भी एलोपैथी फार्मासिस्‍ट भर्ती हों

-पैरा वेटरनरी कौंसिल के गठन पर रोक लगाने की भी मांग उठायी
-पशु चिकित्सा फार्मासिस्ट संघ का प्रतिनिधिमंडल मिला पशुधन मंत्री से

 

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। उत्तराखंड की भांति उत्तर प्रदेश में भी सभी पशु चिकित्सालयों में औषधियों के रखरखाव एवं वितरण के लिए फार्मेसी एक्ट के अनुसार पंजीकृत एलोपैथी फार्मेसिस्ट की नियुक्ति किए जाने तथा अवैधानिक रूप से प्राविधानित पैरा वेटरनरी कौंसिल, जिसमें फार्मेसिस्ट के पंजीकरण का भी प्रावधान किया जा रहा है, उसे रोकने की मांग को लेकर आज पशु चिकित्सा फार्मासिस्ट संघ पशुधन मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी से उनके कार्यालय कक्ष में वार्ता की और उन्हें फार्मेसी काउंसिल आफ इंडिया द्वारा लिखे गए पत्र की जानकारी दी। संघ के अध्यक्ष पंकज शर्मा, वरिष्ठ उपाध्यक्ष शारिक हसन, और महामंत्री अशोक कुमार प्रतिनिधि मंडल में शामिल थे।

महामंत्री अशोक कुमार ने वार्ता की जानकारी देते हुए अवगत कराया कि देश में एलोपैथी औषधियां चाहे वह मानव के उपयोग में हों अथवा पशुओं के, उनकी रखरखाव और वितरण फार्मेसी एक्ट 1948 की धारा 42 और फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशन 2015 के अंतर्गत केवल स्टेट फार्मेसी कौंसिल में पंजीकृत फार्मेसिस्ट द्वारा ही किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पूर्व में न्यूनतम शौक्षिक योग्यता का निर्धारण भी किया जा चुका है, लेकिन उसका पालन न करते हुए प्रदेश में अवैधानिक रूप से एक पैरा वेटनरी कौंसिल का गठन किया जा रहा है, और मथुरा में एक कोर्स संचालित किया जा रहा है जो फार्मेसी कॉउंसिल से मान्यता प्राप्त नहीं है। उन बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए उनका पंजीकरण स्टेट फार्मेसी कौंसिल में करवाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

अगर न्यूनतम योग्यता इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार निर्धारित होती है तो पशु चिकित्सालयों में अगले 25-30 सालों से अधिक समय तक फार्मेसिस्ट के पद खाली बने रहेंगे क्योंकि इस संस्थान से प्रतिवर्ष 50 से 60 छात्र उत्तीर्ण होंगे, और लगभग 1000 पद अभी खाली है । लगातार कार्मिक सेवानिवृत्त भी हो रहे हैं।

पशुधन मंत्री ने संघ को आश्वस्त किया कि संघ की मांग पर तत्काल बैठक कर निर्णय लेंगे। इसके साथ ही संवर्ग में पदोन्नति ना होने पर भी मंत्री ने आश्चर्य व्यक्त किया। निदेशक पशुधन से वार्ता के पश्चात संघ के महामंत्री अशोक कुमार ने बताया कि संघ के संचालन के लिए एक संघ भवन भी जल्द आवंटित हो जाएगा ।

इसके पूर्व राजकीय फार्मेसिस्ट महासंघ के अध्यक्ष सुनील यादव के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल कल प्रमुख सचिव पशुधन से भी मिला था और उन्हें संघ की मांग से लिखित रूप से अवगत कराया था। सुनील यादव ने बताया कि प्रदेश में योग्य फार्मेसिस्टों की कमी नहीं है, उत्तराखंड में इसे अपनाया जा चुका है, अन्य राज्यों में भी इसे अपनाये जाने की कार्यवाही हो रही है तो प्रदेश के अधिकारी नई व्यवस्था कर वेटनरी फार्मेसिस्टों की नियुक्तियों को बाधित क्यों करना चाहते हैं, साथ ही अगले 25- 30 वर्षों तक पदों का खाली बने रहना प्रदेश की जनता के हितों के प्रतिकूल है। उन्होंने बताया कि वेटरनरी अस्पतालों में प्रयोग होने वाली औषधियां एलोपैथी होती हैं, ऐसी सभी औषधियों का भंडारण एवं वितरण केवल पंजीकृत फार्मासिस्ट एलोपैथी द्वारा ही किया जाना विधि के अनुकूल है, अतः देश के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को अपने सभी वेटरनरी अस्पतालों में एलोपैथी फार्मेसिस्ट जो स्टेट फार्मेसी काउंसिल में पंजीकृत हो को तैनाती देकर नियमों का पालन करना चाहिए।

उन्‍होंने बताया कि इस आशय का एक पत्र फार्मेसी काउंसिल आफ इंडिया द्वारा सभी राज्यों को भेजा गया है। फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया की 107 वी सेंट्रल काउंसिल की बैठक जो अगस्त माह में नई दिल्ली में संपन्न हुई थी उसमें निर्णय लिया गया था कि कुछ प्रदेशों में अभी भी वेटरनरी अस्पतालों में पंजीकृत फार्मासिस्ट तैनात नहीं है जिससे फार्मेसी एक्ट 1948 की धारा 42 का उल्लंघन हो रहा है ।  देश में उक्त एक्ट का पालन कराने हेतु सभी राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखा जाय। बीती 11 अक्टूबर को काउंसिल ने पत्र भेजते हुए सभी राज्य सरकारों को एक्ट का पालन करने के कहा ।

उत्तर प्रदेश में राजकीय फार्मासिस्ट महासंघ ने पूर्व से ही प्रमुख सचिव पशुधन एवं अपर मुख्य सचिव कार्मिक से वार्ता की थी और तत्काल सभी वेटरनरी फार्मेसी के रिक्त पदों को पंजीकृत एलोपैथ फार्मेसिस्ट से भरने की मांग की । महासंघ की मांग पर फार्मेसी काउंसिल आफ इंडिया ने फरवरी 2019 में उत्तर प्रदेश शासन के चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव को इस संबंध में पत्र भेजा था । उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी शासनादेश दिनांक 22 मार्च 2018 द्वारा पशु चिकित्सा फार्मेसिस्ट की न्यूनतम शैक्षिक योग्यता डिप्लोमा फार्मेसी एवं स्टेट फार्मेसी काउंसिल में पंजीकरण निर्धारित कर दिया लेकिन नियमावली में प्रख्यापन ना होने के कारण अभी तक पशु चिकित्सालय में नियुक्तियां नहीं हो सकी ।

फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने पत्र में  स्पष्ट किया है कि फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशन 2015 तथा फार्मेसी एक्ट के अनुसार देश में फार्मेसी की प्रैक्टिस  दवा की कंपाउंडिंग,  निर्माण,  मिक्सिंग,  भंडारण  या डिस्पेंसिंग  जो  मानव अथवा  पशु के  इलाज में प्रयुक्त होती है के लिए केवल पंजीकृत फार्मासिस्ट ही विधिक रुप से अधिकारी है । किसी अन्य द्वारा फार्मेसी की प्रैक्टिस करने पर दंडनीय अपराध माना गया है, जिसमें छह माह की कैद या 1000 रु जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान  है।

फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशन 2015 जो फार्मेसी एक्ट की धारा 10 और 18 के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा अधिसूचित की गई है, में ‘प्रिसक्रिप्शन’ को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि ‘किसी भी पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर अथवा अन्य लाइसेंस्ड प्रैक्टिशनर जैसे डेंटिस्ट, पशु चिकित्सक आदि के नुस्खे को केवल पंजीकृत फार्मासिस्ट द्वारा ही वितरित किया जा सकता है । ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 की धारा 3b में औषधि की परिभाषा के अंतर्गत स्पष्ट है कि वह सभी औषधियां जो मानव अथवा पशुओं के डायग्नोसिस,इलाज, बचाव आदि में बाहरी या आंतरिक रूप से प्रयुक्त होती है, उनके वितरण के लिए केवल पंजीकृत फार्मेसिस्ट विधिक रुप से अधिकारी है ।

संघ ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की सरकार पशुओं के संरक्षण पर विशेष रुप से ध्यान दे रही है। संघ ने उम्‍मीद जतायी है कि मंत्री तत्काल पशु चिकित्सालयों में डिप्लोमा फार्मेसिस्टों की तैनाती करके रिक्त पदों को भरने के निर्देश जारी कराएंगे।