इन्हेलर के इस्तेमाल से अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी को हावी नहीं होने देते ये सितारे
इन्हेलर के बारे फैली भ्रांतियां दूर करने और अस्थमा के प्रति जागरूकता के लिए यात्रा शुरू
लखनऊ। अमिताभ बच्चन हों या फिर सौरव गांगुली, प्रियंका चोपड़ा हों या फिर शोएब अख्तर ये सब अपने-अपने क्षेत्र में अपने जबरदस्त कार्य से अपना नाम रौशन कर चुके हैं। फिल्मों और क्रिकेट अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े इन चारों में एक बात कॉमन है और वह है ये चारों अस्थमा के शिकार हैं। लेकिन कभी इन लोगों के कार्यों से आपको यह महसूस हुआ कि इनके कार्य में अस्थमा बाधक बन रहा है, ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि ये लोग अस्थमा का पता चलते ही इन्हेलर का प्रयोग करने लगे। इसलिए लोगों को अपने मन से इन्हेलर को लेकर फैली भ्रांति दूर करने की जरूरत है, यह बात किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पल्मोनरी विभाग के हेड प्रो सूर्यकांत ने आज बुधवार को एक पत्रकार वार्ता में कही।
प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता का आयोजन दवा कम्पनी सिप्ला द्वारा निकाली जाने वाली बेरोक जिन्दगी एक राष्ट्रीय अभियान यात्रा को रवाना करने के मौके पर किया गया था। डॉ सूर्यकांत ने बताया कि यह बहुत अच्छी बात है कि नामी हस्तियां अगर आपबीती को शेयर करके लोगों को जागरूक कर रही हैं, उन्होंने बताया कि फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने स्वयं आगे आकर यह बताया है कि वह पांच वर्ष की उम्र से अस्थमा की शिकार हैं और इन्हेलर से दवा ले रही हैं, उन्हें रूटीन लाइफ में इसके चलते कोई दिक्कत नहीं हुई। उन्होंने बताया कि यह यात्रा अलग-अलग क्षेत्रों से यात्रा निकाली जा रही है, यहां से पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए निकाली जाने वाली यात्रा लखनऊ, बाराबंकी, कानपुर प्रयागराज, वाराणसी और गोरखपुर जायेगी। इस यात्रा का उद्देश्य अस्थमा और अस्थमा होने पर इन्हेलर लेने के बारे में जागरूक करना हैं।
उन्होंने बताया कि इन्हेलर आपका दोस्त है दुश्मन नहीं। उन्होंने बताया कि इसे ऐसे समझिये कि इन्हेलर से दवा लेने पर दवा सीधे फेफड़े में जाती है और तुरंत असर करती है। उन्होंने कहा कि लोगों में यह भ्रांति है कि इन्हेलर लेने से साइड इफेक्ट होता है। उन्होंने कहा कि इन्हेलर से दवा चूंकि सीधी फेफड़ों में पहुंचती है इसलिए इसमें 20 गुना कम डोज का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि लोगों को चाहिये कि इन्हेलर लेने के बाद गरम पानी से गरारा कर लें ताकि अगर कहीं दवा चिपकी रह गयी हो वह बाहर निकल जाये।
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उन्होंने बताया कि ग्लोबल डिजीज बर्डन 2018 के अनुसार उत्तर प्रदेश का स्थान अस्थमा प्रसार व मृत्यु दर सबसे खराब राज्यों में सबसे ऊपर है। उन्होंने कहा कि हम अक्सर मानते हैं कि अगर हृदय स्वस्थ है तो शरीर भी सेहतमंद होगा लेकिन यह एकमात्र कारण ही सम्पूर्ण सेहत का प्रतीक नहीं है। फेफड़ों की कार्यक्षमता हमारे पूरे शरीर को प्रभावित करती है, जिसकी आमतौर पर अनदेखी की जाती है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से हाई ब्लड प्रेशर वाला मरीज बीपी, डायबिटीज वाला व्यक्ति शुगर चेक करता रहता है उसी प्रकार अस्थमा से ग्रस्त व्यक्ति को फेफड़ों की क्षमता की जांच करते रहना चाहिये। नियमित रूप से चेकअप करने आपको अपने फेफड़ों का नम्बर यानी कि नो यूअर लंग नंबर पता चलेगा। इस नम्बर को बेहद ही किफायती और साधारण टेस्ट जैसे स्पाइरोमीट्री टेस्ट या पल्मोनरी टेस्ट से पाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि अस्थमा एक लम्बी चलने वाली बीमारी है, जिसका कोई इलाज नहीं है लेकिन यह इन्हेलर की मदद से सही तरीके से मैनेज की जा सकती है।