-76 वर्षीय मरीज को डिवाइन हार्ट हॉस्पिटल में मिली नयी जिन्दगी
-ट्रिपल वेसल कोरोनरी आर्टरी डिजीज की आपात स्थिति में भर्ती हुआ था मरीज
सेहत टाइम्स
लखनऊ। मधुमेह यानी डायबिटीज जो कि आज काफी कॉमन हो गया है, इसका अनियंत्रित रहना कैसी विषम स्थितियां पैदा कर सकता है, इसका भयावह अनुभव 76 वर्षीय मरीज को करना पड़ा है। चिकित्सकों के अनुसार ईश्वर की कृपा थी और मरीज की किस्मत अच्छी थी कि उनकी सांसों की डोर नहीं टूटी। मरीज के बचने आशा लगभग छोड़ चुके उपचार के प्रति पूर्ण समर्पित चिकित्सकों की टीम ने अपनी पूरी जान लगाकर मरीज को मौत के मुंह से खींचकर वापस ले आये।
यह मामला है यहां गोमती नगर स्थित डिवाइन हार्ट एंड मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल का जहां हॉस्पिटल के संस्थापक अध्यक्ष कार्डियक सर्जन डॉ एके श्रीवास्तव और उनकी टीम के अथक प्रयासों से लखीमपुर के रहने वाले 76 वर्षीय मरीज ने कोरोनरी आर्टरी बायपास ग्राफ्टिंग CABG सर्जरी के बाद पैदा हुए स्टर्नम घाव की जटिलताओं को पार कर विजय प्राप्त की। फिलहाल मरीज की हालत ठीक है, एक दो दिनों में उनकी अस्पताल से छुट्टी किये जाने की तैयारी है। मरीज को 21 अप्रैल को आयोजित पत्रकार वार्ता में पत्रकारों से भी मिलवाया गया। पत्रकार वार्ता में डॉ एके श्रीवास्तव के साथ शामिल टीम के डॉ वीएस नारायन, रेस्पिरेटरी मेडिसिन के डॉ ज्ञानेन्द्र शुक्ला, डॉ जयश शर्मा सहित अन्य चिकित्सक भी उपस्थित रहे। डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि यह उपलब्धि कितनी बड़ी है इसका अंदाज इससे ही लगाया जा सकता है कि इस तरह की जटिलताओं के पैदा होने के बाद 99 फीसदी केसेज में मरीज बच नहीं पाता है।
केस के बारे में जानकारी देते हुए डॉ एके श्रीवास्तव ने बताया कि गंभीर सीने में दर्द और अत्यधिक उच्च रक्त शर्करा (फास्टिंग > 400 mg/dl) के साथ भर्ती श्री गुप्ता को ट्रिपल वेसल कोरोनरी आर्टरी डिजीज का पता चला। डॉ. विवेक अग्रवाल डायबिटोलॉजिस्ट के मार्गदर्शन में इंसुलिन देकर ब्लड शुगर कंट्रोल कर उनकी स्थिति स्थिर की गई, और 31 जनवरी 2025 को सफल सर्जरी की गई। सर्जरी के बाद उन्हें आईसीयू में सफलतापूर्वक प्रबंधित किया गया और अगले दिन वे वेंटिलेटर से हटा दिए गए। 24 घंटे आईसीयू में रहने के बाद उन्हें जनरल वार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ उनकी स्थिति स्थिर थी। यहां तक सब ठीक रहा।
उन्होंने बताया कि छठे पोस्ट-ऑपरेटिव दिन के बाद स्टर्नम घाव में जटिलताएँ आईं, जिसकी वजह संभवतः उनके लंबे समय से अनियंत्रित मधुमेह के कारण, सर्जिकल तारों का ‘कट-थ्रू होने से घाव में गैप आ गया, और घाव में सुधार नहीं हुआ। वह गंभीर संक्रमण का शिकार हुए, जिसमें Klebsiella pneumoniae बैक्टीरिया की पहचान हुई। इन चुनौतियों के बावजूद, क्रिटिकल केयर और रेस्पिरेटरी मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. ज्ञानेंद्र शुक्ला के नेतृत्व में मेडिकल टीम ने लगातार प्रयास किए और उनकी स्थिति को स्थिर किया। उन्होंने कहा कि परिवार ने भी बहुत सहयोग किया, इसके लिए मैं सराहना करता हूं।


डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि मार्च 2025 (29 वें पोस्ट-ऑपरेटिव दिन) को उनका खुला छाती का घाव फिर से सिल दिया गया और उन्हें आईसीयू में स्थानांतरित किया गया। 7 दिनों तक वेंटिलेटर से हटाने में सफलता नहीं मिलने के बाद, 8 मार्च 2025 (36वें पोस्ट-ऑपरेटिव दिन) को ट्रेकियोस्टॉमी की गई। इसके बाद श्री गुप्ता ने बिना किसी जटिलता के ठीक होना शुरू किया। 86 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद, जिसमें 78 दिन पोस्ट-सर्जरी शामिल हैं, श्री गुप्ता को अब डिस्चार्ज किया जायेगा।
यह पूछने पर कि जब इतनी हाई ब्लड शुगर लेवल के साथ मरीज आया था तो सर्जरी करने के लिए इंतजार क्यों नहीं किया गया, इस पर डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि ट्रिपल वेसल कोरोनरी आर्टरी डिजीज के साथ आये मरीज की जान को खतरा था, ऐसे में तुरंत ही इंसुलिन से डायबिटीज को कंट्रोल किया गया तथा एक दिन तक निगरानी करने के बाद सर्जरी का फैसला लिया गया यदि ज्यादा इंतजार किया जाता तो हार्ट की डिजीज से मौत हो सकती थी।
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि हम लोगों ने जितना भी संभव हुआ मरीज के इलाज के खर्च को सीमित करने की कोशिश की। कुल मिलाकर देखा जाये तो अस्पताल में 78-80 दिन के उपचार में कुल 16 लाख रुपये खर्च हुए, जो कि इस तरह की सर्जरी को देखते हुए काफी कम हैं। उन्होंने बताया कि डॉ शुक्ला ने दवा कम्पनी से व्यक्तिगत अनुरोध कर मरीज को दी जाने वाली एंटीबायोटिक को थोक के रेट पर देने को राजी किया।
डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि यह बहुत दुर्लभ केस था, उन्होंने कहा कि मैं 13 वर्ष संजय गांधी पीजीआई में रहा और इस अवधि में चार या पांच ऐसे केस आये थे। उन्होंने कहा कि कहा जा सकता है कि इस तरह के केसेज जो बच जाते हैं, उनकी संख्या 500-1000 मरीजों में एक है।
पत्रकार वार्ता में डॉ वीएस नारायण, डॉ ज्ञानेन्द्र शुक्ला ने भी अपने अनुभवों को साझा किया। डॉ वीएस नारायण ने कहा कि मैं तो कार्डियोलॉजिस्ट हूं हमेशा दवाओं से इलाज करता रहा, ज्यादा से ज्यादा स्टंट डालना पड़ा लेकिन यहां कॉम्प्लीकेश के बाद इस मरीज का सीना जब हनुमान जी की तरह खुला हुआ था, दोनों हड्डियां अलग-अलग थीं, अंदर से हार्ट धड़कता हुआ दीख रहा था, इसे देखकर मैं भी घबरा गया था लेकिन सर्जन कभी घबराता नहीं है, और उन्होंने अपना काम पूरी तन्मयता के साथ किया।
डॉ जयश ने बताया कि यह सर्जरी टीम वर्क से हो सकी, उन्होंने बताया कि ओपीडी में 60 से 70 मरीज डायबिटीज से ग्रस्त आते हैं, हार्ट की दिक्कत होना भी बहुत ताज्जुब की बात नहीं है लेकिन जब हम मरीज की एंजियोग्राफी करते हैं तो देखते हैं कि इनकी तीनों नसों में ब्लॉकेज आते हैं, और नसें बहुत सूखी-सूखी सी होती हैं, जिससे कई बार ऐसी स्थिति आती है कि न तो मरीज की एंजियोप्लास्टी हो सकती है और न ही बायपास सर्जरी ऐसे केसेज बहुत बढ़ रहे हैं, ऐसा होने के कारणों की बात करें तो सबसे बड़ा कारण यह होता है कि मरीज दिक्कत बढ़ जाने पर बहुत देर से अस्पताल आते हैं, इसके साथ ही ऐसा डायबिटीज के नियंत्रण में न होने के कारण भी होता है। ऐसे में कोशिश यह होनी चाहिये कि डायबिटीज रोग न हो तो ज्यादा अच्छा है, अगर है तो उसे नियंत्रित रखने पर पूरा ध्यान देना होगा।
