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मेसोथेलियोमा से बचने के लिए एस्बेस्टस के उपयोग पर सख्त नियम जरूरी

-विश्व मेसोथेलियोमा दिवस (26 सितम्बर) पर मेसोथेलियोमा को लेकर जागरूकता पर बहुत कार्य करने की जरूरत बतायी डॉ सूर्यकान्त ने

प्रो सूर्यकांत

सेहत टाइम्स

लखनऊ। मेसोथेलियोमा एक दुर्लभ ट्यूमर है, जिसका मुख्य कारण एस्बेस्टस के संपर्क में आना है। यह फेफड़ों, छाती की गुहा, पेट और वृषण की झिल्ली में उत्पन्न होता है, यह जानकारी डॉ. सूर्यकांत, प्रमुख, श्वसन चिकित्सा विभाग, केजीएमयू ने इस दिन पर जागरूकता फैलाने के तहत दी।

मेसोथेलियोमा जागरूकता दिवस हर साल 26 सितंबर को मनाया जाता है। यह दिन जागरूकता फैलाने, प्रभावित लोगों का समर्थन करने और एस्बेस्टस के उपयोग पर सख्त नियमों की मांग के लिए एक मंच के रूप में काम करता है। भारत में मेसोथेलियोमा लगभग 0.05-0.08 प्रति 1 लाख पुरुषों और 0.05-0.1 प्रति 1 लाख महिलाओं में होता है।

उन्होंने बताया कि मेसोथेलियोमा के चार प्रकार होते हैं: प्लूरल (75%), पेरिटोनियल (10%), पेरिकार्डियल (1%), और वृषणीय (1% से कम)। इसके सामान्य लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, छाती की दीवार में दर्द, खांसी, थकान, छाती की त्वचा के नीचे गांठें, वजन में कमी, और हाइड्रोसील (अंडकोश में तरल भरना) शामिल हैं। एस्बेस्टस के संपर्क और लक्षणों के प्रकट होने के बीच सामान्यतः 40 वर्षों का अंतराल होता है।

गो ब्लू फॉर मेसो एक राष्ट्रीय अभियान है जिसका उद्देश्य एस्बेस्टस कैंसर, मेसोथेलियोमा और एस्बेस्टस के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इस दिन का उद्देश्य जनता को शिक्षित करना, प्रभावित लोगों का समर्थन करना और बेहतर उपचार विकल्पों के लिए शोध को बढ़ावा देना है, ताकि अंततः इसका इलाज खोजा जा सके।

डॉ. सूर्यकांत ने जानकारी दी कि केजीएमयू के श्वसन चिकित्सा विभाग ने मेसोथेलियोमा से संबंधित कई महत्वपूर्ण शोध प्रकाशन किए हैं। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि ऐसे घातक कैंसर को रोकने के लिए एस्बेस्टस के संपर्क से बचना, कार्यस्थल की सुरक्षा सुनिश्चित करना, कार्यस्थल के नियमों और विनियमों का पालन करना, एस्बेस्टस के द्वितीयक संपर्क से बचना और नियमित स्वास्थ्य जांच कराना बहुत महत्वपूर्ण है।

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