बीमा कम्पनियों ने नहीं शामिल कर रखा है बीमारियों में, सरकार भी उदासीन
लखनऊ। राजधानी लखनऊ के होटल क्लार्क्स अवध में रविवार को अजंता होप सोसाइटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन एंड रिसर्च के तत्वावधान में महिलाओं में ओवरी यानी अंडाशय की खराबी होने के कारणों और उस पर नियंत्रण पाने के विषय पर आयोजित सतत चिकित्सा शिक्षा (सीएमई) में देश भर से आये विशेषज्ञों ने अनेक सुझाव तो दिये ही हैं, प्रश्न भी उठाये हैं।
इंडियन फर्टिलिटी सोसाइटी की अध्यक्ष और दिल्ली की बांझपन विशेषज्ञ डॉ गौरीदेवी ने कहा कि बीमा कम्पनियां भी बांझपन के लिए इन्श्योरेंस नहीं करती हैं। उन्होंने कहा कि जबकि देखा जाये तो बांझपन अपने आप में एक बड़ी बीमारी और समस्या है। लेकिन बीमा कम्पनियां न तो प्रसव के लिए और न ही बांझपन के इलाज के लिए धनराशि उपलब्ध कराती हैं। उन्होंने कहा कि आईवीएफ विधि से गर्भधारण करने तक में लगभग सवा लाख से डेढ़ लाख रुपये का खर्च आता है। उन्होंने कहा कि सरकार भी बांझपन को बड़ी समस्या नहीं मानती है, इसीलिए इसके लिए सरकारी योजनायें भी नहीं दिखती हैं। अस्पतालों में भी इसकी सुविधाएं न के बराबर हैं।
40 के ऊपर बीएमआई हुआ तो शुक्राणु और अंडे दोनों कम होंगे
डॉ एम गौरीदेवी ने बताया कि मोटापा एक ऐसी समस्या है जिसमें पुरुष हो या महिला दोनों को संतानोत्पत्ति में नुकसान पहुंचाता है। उन्होंने बताया कि बॉडी मास इन्डेक्स सामान्य रूप से 23 से 25 होना चाहिये लेकिन अगर यह बढ़कर 40 से पार चला जाता है तो इसका असर पुरुष के शुक्राणुओं और महिला के अंडों पर भी पड़ता है। मोटापे के कारण शुक्राणुओं और अंडों की संख्या कम हो जाती है। संतान न होने के लिए उन्होंने बांझपन का शिकार महिलाओं और पुरुषों को बराबर-बराबर बताया। उन्होंने कहा कि देश में बांझपन के शिकार लोगों में मात्र एक फीसदी लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं। इसके कारणों के बारे में उनका कहना था कि कुछ लोग तो इसे सीरियस नहीं लेते हैं जबकि बहुत से लोगों के घरों के पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है जहां जाकर वे बांझपन का इलाज करा सकें।
ओवरी में गांठ बांझपन का एक बड़ा कारण : डॉ प्रताप कुमार
मणिपाल यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ डॉ प्रताप कुमार ने बताया कि संतान न होने के कारणों में देखा गया है कि 40 प्रतिशत बांझपन स्त्री में, 40 प्रतिशत पुरुष में तथा 20 प्रतिशत दोनों में पाया जाता है। उन्होंने बताया कि 35 वर्ष से ऊपर की महिलाओं में बांझपन होने की एक वजह ओवरी में गांठ या सिस्ट होना है जिसे पीसीओएस कहते हैं। डॉ प्रताप ने बताया कि कुछ महिलाओं के माहवारी के समय निकलने वाला रक्त वापस जाने से भी गांठ की समस्या हो जाती है। इसके लक्षणों में अनियमित माहवारी, माहवारी कम होना, शरीर में अतिरिक्त बाल होना, मोटापा शामिल है।उन्होंने बताया कि लोग सेक्सुअल डिस्ऑर्डर के बारे में बात नहीं करते हैं इसलिए भी समस्यायें और बढ़ रही हैं। उन्होंने कहा कि शादी के एक-दो साल के अंदर संतान पैदा करने की प्लानिंग कर लेनी चाहिये।
फास्ट फूड भी बना रहा बांझ : डॉ सुधा प्रसाद
दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की डाइरेक्टर डॉ सुधा प्रसाद ने बताया कि 25 साल के आसपास की उम्र वाली लड़कियों में भी पुअर ओवेरियन की शिकायत पायी जा रही है। इनका प्रतिशत 5 से 10 है। इसके कारणों में रहन-सहन, मोटापा, फास्ट फूड का सेवन, खराब जीवन शैली पाया गया है। उन्होंने बताया कि लड्कियों में ओवरी का साइज छोटा होना देखा गया है। एक और महत्वपूर्ण बात बताते हुए उन्होंने कहा कि एक स्टडी में देखा गया था कि 15 .5 प्रतिशत महिलाओं की ओवरी में टीबी पायी गयी। जांच में टीबी की पुष्टि होने पर छह माह का दवाओं का कोर्स है जिसे भारत सरकार फ्री देती है।