लखनऊ। कभी-कभी महिलाओं में सबकुछ ठीकठाक होने के बावजूद महिलाएं गर्भधारण नहीं कर पाती हैं, इस स्थिति को हम लोग अज्ञात बांझपन कहते हैं। कभी-कभी सर्वाइकल फैक्टर में प्रॉब्लम होती है या पति का वीर्य अवसामान्य होता है, चूंकि सभी के लिए टेस्ट ट्यूब बेबी के लिए प्रयास करना तो मुश्किल होता है, तो ऐसी स्थिति का बहुत साधारण और किफायती उपचार इंट्रा यूटेराइन इन्सर्शन (आईयूआई) मौजूद है। जिससे पत्नी के गर्भधारण करने की संभावना बढ़ जाती है।
इस तरह से करते हैं इलाज
यह जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की प्रो.अमिता पाण्डेय ने दी। वह यहां लखनऊ की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों की शाखा द्वारा आयोजित नॉर्थ जोन युवा फॉग्सी के अंतर्गत आयोजित वर्कशॉप में सम्बोधित कर रही थीं। उन्होंने उपचार के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस विधि के तहत हम पति के वीर्य से सारी डेब्रीज और प्लास्मा को कन्सन्ट्रेट कर देते हैं और उसको महिला के गर्भाशय में उस समय प्रवेश कराते हैं जब उसका अंडा फूट रहा होता है या फूटने की स्थिति में होता है जिसमें सारे फर्टीलाइजर स्पर्म होते हैं, जिससे गर्भधारण करने के चांसेज बढ़ जाते हैं। उन्होंने बताया कि 100 महिलाओं को प्रेग्नेंसी की दवा के साथ यह आईयूआई करने पर गर्भधारण करने का प्रतिशत 17 से 20 प्रतिशत होता है।
पूरे देश में प्रसार करने की जरूरत
प्रो अंजू अग्रवाल ने कहा कि हम लोग चाहते हैं कि इस विधि से इलाज पूरे देश में प्रसार हो। यह बहुत साधारण तरीका है तथा इसे छोटी क्लीनिक में भी किया जा सकता है। उन्होंने बताया इस कार्यशाला में हम लोग इसे व्यवहारिक रूप से कर के दिखायेंगे कि किस तरह हम वीर्य तैयार करते हैं और कैसे आईयूआई सम्पन्न कराते हैं। कार्यशाला में प्रशिक्षण भी देंगे जिससे स्त्री रोग विशेषज्ञों को विश्वास आये और वे अपने क्लीनिक में इसे शुरू कर सकती हैं। इस कार्यशाला का उद्घाटन केजीएमयू के कुलपति प्रो. एलएलबी भट्ट ने करते हुए इस तरह के कार्यक्रम होने की सराहना की।
उपमुख्यमंत्री ने किया नॉर्थ जोन युवा फॉग्सी का उद्घाटन
इससे पूर्व आज सुबह नॉर्थ जोन युवा फॉग्सी का उद्घाटन प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने किया। उन्होंने अपने उद्बोधन मेंं कहा कि चिकित्सकों की मरीजों के प्रति मानवीयता होनी जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि चिकित्सकों को नये-नये इलाज मालूम होने चाहिये इसके लिए उन्हें अपडेट रहना जरूरी है। तीन दिवसीय सम्मेलन में देश-विदेश के करीब एक हजार चिकित्सक इसमें भाग ले रहे हैं। आज हुए कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ अंशुमाला रस्तोगी ने बताया कि आज सुबह किशोरावस्था में होने वाले रोग व अन्य समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए केजीएमयू से कार्यक्रम स्थल साइंटिफिक कन्वेन्शन सेंटर तक करीब 500 छात्र-छात्राओं की एक रैली निकाली गयी। उन्होंने बताया कि किशोरावस्था की मुख्य दो दिक्कतें हैं इनमें लडक़ों में पेट में कीड़े की समस्या होना तथा लड़कियों में माहवारी शुरू होने के बाद आने वाले बदलाव के चलते मनोवैज्ञानिक समस्या आती है।
10 फीसदी लड़कियों में 9 वर्ष की उम्र में शुरू हो जाती है माहवारी
डॉ अंशुमाला रस्तोगी ने बताया कि आज कल लड़कियों में 9 वर्ष की आयु में ही पीरियड आना शुरू हो गया है। उन्होंने बताया कि लगभग 10 फीसदी बच्चियों में जल्दी पीरियड शुरू हो जाता है। इसके कारणों के बारे में उन्होंने बताया कि आजकल फास्ट फूड आदि खाकर लड़किया मोटी हो जाती है उनका शरीर उम्र के हिसाब से जल्दी बढ़ जाता है, इसी वजह से पीरियड भी जल्दी शुरू हो जाता है। ऐसी स्थिति में उनकी मानसिक स्थिति बच्चों वाली होने की वजह से उनमें मनोवैज्ञानिक समस्याएं आ जाती हैं। उन्होंने बताया कि बच्चे को बैलेंस्ड डाइट देना जरूरी है।
गर्भवती का ब्लड प्रेशर चेक कराते रहना जरूरी
गोरखपुर से आयीं डॉ साधना गुप्ता ने बताया कि गर्भवती महिलाओं में ऐक्लैम्शिया की बीमारी हो जाती है जिसमें उसे झटके आने लगते हैं, इस बचने के लिए आवश्यक है कि गर्भवती की लगातार ब्लड प्रेशर की जांच होनी चाहिये क्योंकि यह बीमारी हाई ब्लड प्रेशर से होती है। उन्होंने जोर दिया कि ऐसी महिलाओं के लिए अलग ऑब्सेटिकल आईसीयू की व्यवस्था होनी चाहिये क्योंकि सामान्य आईसीयू में उसे संक्रमण होने की संभावना रहेगी साथ ही गर्भवती होने के कारण यदि आवश्यक होता है तो वहीं डिलीवरी कराने की प्रक्रिया भी की जानी होती है।
लक्षणों से ओवरी कैंसर पहचानना आसान नहीं
केजीएमयू की डॉ उमा सिंह ने महिलाओं में होने वाले अंडाशय के कैंसर की जानकारी देते हुए बताया कि महिलाओं में होने वाले कैंसर में ओवरी कैंसर का स्थान दूसरा है। ओवरी यानी अंडाशय के कैंसर को सिर्फ लक्षण के आधार पर शुरुआती स्टेज में पहचानना काफी मुश्किल होता है क्योंकि इसके लक्षण ऐसे होते हैं जो दूसरी बीमारियों में भी होते हैं जैसे भूख न लगना, पेट भरा-भरा सा महसूस होना, पेट फूलना, हल्का दर्द, इसलिए आवश्यक यह है कि ये लक्षण यदि बार-बार उत्पन्न हों तो चिकित्सक की सलाह जरूर लेनी चाहिये। इसकी डायग्नोसिस बहुत सरल है इसके लिए अल्ट्रासाउंड और ट्यूमर मार्कर ब्लड जांच कराकर पता लगा लिया जाता है कि महिला को ओवरी कैंसर है या नहीं। उन्होंने बताया कि सामान्यत: यह 50 वर्ष से ऊपर की आयु में होता है। ओवरी कैंसर होने का एक कारण पारिवारिक या अनुवांशिक देखा गया है इसलिए महिला की मां, बहन, मौसी आदि किसी को ब्रेस्ट कैंसर या कोलन कैंसर रहा हो भी इसके होने की संभावना रहती है।
केजीएमयू में हो रहा नि:शुल्क इलाज
डॉ. उमा ने बताया कि गरीबी रेखा से नीचे वाली महिलाओं को इस कैंसर का इलाज केजीएमयू में नि:शुल्क दिया जा रहा है। इसके लिए जरूरी यह है कि 35000 सालाना तक आय हो, इसके बाद कैंसर वाला कार्ड बन जाता है और मरीज का पूरा इलाज नि:शुल्क किया जाता है।