-बेटी के जन्म के ऐन वक्त तक अपनी प्रसव पीड़ा को भूलकर मरीज की पीड़ा दूर की डॉ पल्लवी ने
सेहत टाइम्स ब्यूरो

लखनऊ। कोरोना महामारी की कहर ढाती दूसरी लहर में जहां लोग दहशत में हैं, वहीं डॉक्टरों के लिए अग्नि परीक्षा का दौर है। यूं तो किसी भी डॉक्टर के लिए कोविड काल में मरीजों की देखभाल करना सलाम करने योग्य है, लेकिन एक महिला चिकित्सक ऐसी भी है जो न सिर्फ गर्भावस्था के दौरान बल्कि ऐन प्रसव के समय तक मरीजों की सेवा में लगी रहीं ताकि उनकी उपस्थिति भर से अस्पताल में भर्ती महिला मरीजों को हौसला मिलता रहे।
यहां हम बात कर रहे हैं सीतापुर रोड स्थित वागा अस्पताल का संचालन करने वाली डॉ पल्लवी सिंह की। कुछ समय पूर्व ही डॉ पल्लवी सिंह ने अपने पति डॉ वैभव सिंह के साथ मिलकर अस्पताल शुरू किया था। कोरोना महामारी के इस काल में प्रशासन के द्वारा वागा अस्पताल को भी कोविड अस्पताल में सूचीबद्ध किया गया है। अस्पताल में कोविड और नॉन कोविड दोनों प्रकार के मरीज भर्ती हो रहे हैं। पति के साथ मिलकर डॉ पल्लवी भी मरीजों की सेवा में लगी रहीं।
बताया गया कि चार दिन पूर्व डॉ पल्लवी को प्रसव पीड़ा हुई, सारी जांचों के बाद तय हुआ कि दो दिन बाद ही सिजेरियन होगा। इसके बाद डॉ पल्लवी घर की ओर रुख न कर अस्पताल को ही अपना घर बनाकर मरीजों की सेवा में लगी रहीं, इलाज, सलाह के साथ ही बाकायदा तीन समय अस्पताल में राउन्ड भी लेती रहीं। उनकी मौजूदगी भर से महिला मरीजों के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती, तो डॉ पल्लवी अपनी पीड़ा को भूल जाती थीं, ज्यादा पीड़ा होने पर अपने केबिन में जाकर आराम कर लेती थीं।
डॉ पल्लवी के पिता पवन सिंह चौहान बताते हैं कि उनकी पत्नी यानी डॉ पल्लवी की मां को जरूर चिन्ता होती थी तो कहती थीं कि पल्लवी घर जाकर आराम कर लो, लेकिन डॉ पल्लवी अपनी मां को अस्पताल में अपने होने का महत्व बता कर समझा देती थीं। पवन सिंह बताते हैं कि मैंने अपने बच्चों को हमेशा कर्तव्य को ऊपर रखने के संस्कार दिये हैं, तो भला मैं कैसे उसे अपने कर्तव्य से विमुख होने के लिए कह सकता था, मैं उसे यही कहता रहा हूं कि बेटा बहुत कठिन समय है लेकिन ऐसे ही समय में व्यक्ति की परीक्षा होती है, उसके संस्कारों का पता चलता है।
पवन सिंह बताते हैं कि ईश्वर की कृपा रही, बेटी डॉ पल्लवी ने अपनी एक नन्ही बेटी को जन्म दिया। वे कहते हैं कि मुझे गर्व है अपने बच्चों पर कि श्री रामचरित मानस के सिद्धांत को जीवन में उतारते हुए मेरे बच्चे हमेशा अपने हितों को पीछे रखकर परोपकार को प्राथमिकता देते हैं। पवन सिंह कहते हैं कि महामारी के जिस दौर में लोग घरों से निकलने में डरते हैं, उसमें मेरी बेटी डॉ पल्लवी सिंह के द्वारा प्रसव के कुछ मिनट पहले तक मरीज की सेवा एवं उन्हें हिम्मत देने का कार्य मेरे लिए नोबेल पुरस्कार पाने जैसा है। उनका कहना है कि प्रभु सभी को ऐसे संस्कारवान बच्चे प्रदान करें।

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