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भारत में लॉकडाउन के सन्‍नाटे का असर कुछ यूं पड़ा कोवैक्‍सीन की रिसर्च पर

-आईसीएमआर के निदेशक ने वैक्‍सीन बनाने के अनुभवों को किया साझा

-केजीएमयू में रिसर्च शोकेस-2021 अनेक शोधकर्ताओं को किया गया सम्‍मानित

सेहत टाइम्‍स

लखनऊ। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान कर तैयार की गयी कोविड की वैक्‍सीन कोवैक्‍सीन को तैयार करने में भी कोविड काल का सन्‍नाटा आड़े आया। यह जानकारी शनिवार को यहां केजीएमयू के अटल बिहारी वाजपेयी कन्‍वेंशन सेंटर में आयोजित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के वार्षिक अनुसंधान शोकेस 2021 में मुख्‍य अतिथि के रूप में शामिल हुए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के महानिदेशक प्रो बलराम भार्गव ने अपने व्‍याख्‍यान में दी।  

प्रो भार्गव ने प्रथम प्रोफ़ेसर देवेंद्र गुप्ता अनुसंधान व्‍याख्‍यान के विषय “गोइंग वायरल, द इनसाइड स्टोरी ऑफ कोवैक्सिन”  पर दिये अपने सम्‍बोधन में भारतीय कोविड वैक्सीन के विकास में आई बाधा और सफलता पर चर्चा की। को‍विड काल में लॉकडाउन के दौरान हुए सन्‍नाटे का वैक्‍सीन के अनुसंधान कार्य के बारे में हुए असर के बारे में उन्‍होंने बताया कि हुआ यूं कि वैक्‍सीन के ट्रायल के लिए खरगोश, चूहे पर ट्रायल के बाद जब बंदर पर ट्रायल करने की बारी आयी तो बंदर मिल ही नहीं रहे थे, पता चला कि लॉकडाउन की वजह से बंदरों के सामने जब भोजन की समस्‍या आयी तो वे जंगल की ओर चले गये। इसके बाद वन विभाग से मदद मांगी गयी, वन विभाग ने काफी खोजबीन की तब जाकर कर्नाटक, महाराष्‍ट्र और तेलंगाना के जंगलों से लाकर 20 बंदर उपलब्‍ध कराये तब जाकर ट्रायल की प्रक्रिया आगे बढ़ायी गयी।

प्रो भार्गव ने बताया कि कैसे भारत दुनिया में ‘सबसे बड़ा और सबसे तेज़’ टीकाकरण होने वाला देश बना, जिसमें 40% वयस्क आबादी पूरी तरह से टीकाकरण करा चुकी है और 80% का केवल एक इंजेक्शन बाकी है। इस लड़ाई में आईसीएमआर  ने अपने 23 बहादुरों को खो दिया।

आज हुए शोकेस कार्यक्रम में पिछले एक साल में केजीएमयू के शिक्षकों और छात्रों के शोध योगदान और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया। आज का यह कार्यक्रम कोविड महामारी के संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण था।

प्रोफेसर बलराम भार्गव को प्रथम प्रोफ़ेसर देवेंद्र गुप्ता अनुसंधान व्याख्यान पुरस्कार से भी सम्‍मानित किया गया। प्रो भार्गव केजीएमयू के पूर्व छात्र हैं। प्रो. भार्गव ने अब तक कोविड महामारी के अपने सक्रिय प्रबंधन, और प्रीमियर कार्डियोलॉजिस्ट के रूप में, देश को उनके योगदान के लिए बहुत प्रशंसा प्राप्त की है। उन्होंने 3 स्वदेशी स्टेंट विकसित करने, ग्लोबल अफोर्डेबल नीड ड्रिवेन हेल्थकेयर इनोवेशन (गांधी) और भारत-स्टैनफोर्ड बायोडिजाइन कार्यक्रम सहित कम संपन्न भारतीय आबादी को लाभान्वित करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं।

कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन पुरी ने देश के अनुसंधान स्तर को बढ़ाने में केजीएमयू के योगदान की प्रशंसा की और कहा कि ऐसे ही शोध हैं जिनके कारण कोरोना वायरस जैसी महामारी का सफलतापूर्वक मुकाबला किया जा सका।

उन्होंने अपनी विशिष्टता में दुनिया के शीर्ष 2% वैज्ञानिक में शामिल (स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी यूएसए रैंकिंग) के.जी. एम. यू. के प्रो0 यू सी चतुर्वेदी (माइक्रोबायोलॉजी), प्रो0 शैली अवस्थी (बाल रोग), प्रो0आरके गर्ग (न्यूरोलॉजी), प्रो0अमिता जैन (माइक्रोबायोलॉजी), प्रो0संतोष कुमार (ऑर्थोपेडिक्स) और डॉ सुजीता के कर (मनोचिकित्सा) को सम्मानित किया।

प्रो. शैली अवस्थी, डीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट ने केजीएमयू की वार्षिक शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमे मुख्यतः रिसर्च एंड डेवलपमेंट  पहल जैसे एसआईबी शाइन (बायो-इनक्यूबेटर पहल आईआईटी कानपुर के साथ डीबीटी   द्वारा वित्त पोषित- 10 करोड़), केजीएमयू में एक कोक्रेन सेंटर की स्थापना,  एक उच्च माइकोलॉजी और डायग्नोस्टिक्स सेंटर,  एक जेनेटिक डायग्नोस्टिक यूनिट और एक जल्द ही शुरू होने वाला प्रेसिजन मेडिसिन यूनिट जो कि विदेशी एलुमि‍नी द्वारा वित्त पोषित है, की विवेचना की।

उन्होंने बताया कि केजीएमयू को 21.62 करोड़ का बाहरी संस्थाओं  द्वारा संयुक्त वित्त पोषण मिला है जिससे 237 एक्स्ट्राम्युरल परियोजनाएं चल रही हैं। इनमे 9 कोविड अनुसंधान पर केंद्रित हैं।

युवा अन्वेषकों के लिए प्रतिष्ठित प्रो धवेंद्र कुमार स्वर्ण पदक (2019) स्त्री रोग विभाग की प्रो स्मृति अग्रवाल और नेत्र विज्ञान विभाग (2020) के डॉ सिद्धार्थ अग्रवाल को उनकी नई खोज और अनुसंधान के लिए दिया गया।

सर्वश्रेष्ठ पीएचडी थीसिस का पुरस्कार डॉ. शिल्पा त्रिवेदी को, प्रो. दिव्या मेहरोत्रा के मार्गदर्शन में दंत ऊतकों से स्टेम कोशिकाओं को अलग करने और उनकी विशेषता बताने के लिए मिला।

उच्च प्रभाव वाली प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में संकाय सदस्यों द्वारा किए गए सर्वश्रेष्ठ प्रकाशनों के लिए एक पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमे 8 विजेता रहे।

बेस्ट प्रीक्लिनिकल पेपर : प्रो बलराम भार्गव ने प्रो शैलेंद्र सक्सेना एवं उनके शोध समूह को अमेरिकन केमिकल सोसाइटी यू.एस.ए. की प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ए.सी.एस. केमिकल न्यूरोसाइंस में प्रकाशित जापानी इंसेफेलाइटिस के दौरान एक नवीन एंटीवायरल की खोज एवं व्याख्या के लिए प्रो. डी.के. गुप्ता, पूर्व कुलपति, के.जी.म.यू.; लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. बिपिन पुरी, वर्तमान कुलपति, के.जी.म.यू. एवं विभिन्न अधिष्ठाताओं की उपस्थिति में सर्वश्रेष्ठ शोध-पत्र पुरस्कार (पूर्व-नैदानिक) से सम्मानित किया।

सबसे उच्च पैरा-क्लिनिकल पेपर : प्रो गीता यादव, पैथोलॉजी विभाग : हेमोफैगोसाइटिक हिस्टियोसाइटोसिस हो सकता है गंभीर या बिगड़ते सार्स-कोव2 SARS-CoV-2 संक्रमण का कारण |

बेस्ट क्लिनिकल-मेडिकल पेपर : प्रो हरदीप सिंह मल्होत्रा, न्यूरोलॉजी विभाग : बाहर से नॉर्मल दिखते मरीजों के नर्वस सिस्टम में भी हो सकता है टी. बी. का संक्रमण।

बेस्ट क्लिनिकल- सर्जिकल पेपर : प्रो. अभिजीत चंद्रा, सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग : नोवेल एंडोल्यूमिनल प्रक्रिया रेक्टल प्रोलैप्स के उपचार में एक नया आयाम है |

बेस्ट डेंटल फैकल्टी पेपर : डॉ भास्कर अग्रवाल, प्रोस्थोडॉन्टिक्स विभाग : ओजोन थेरेपी बढ़ाते है  डेंटल इम्प्लांट की सफलता।

पीजी छात्रों, पीएचडी और एमएससी नर्सिंग छात्रों की श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ पेपर डॉ दीप चक्रवर्ती,  रेडियोथेरेपी विभाग को रेक्टल कैंसर पर रेडियोथेरेपी इलाज के असर पर  काम के लिए दिया गया।

यूजी छात्र श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ पेपर अहमद ओजैर एमबीबीएस 2016 बैच को : इरिटेबल बाउल सिंड्रोम में एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभाव की समीक्षा के लिए।

पिछले 3 वर्षों में स्वीकृत केजीएमयू इंट्राम्यूरल प्रोजेक्ट ग्रांट्स से प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ पेपर डॉ प्रज्ञा पांडे, कंज़र्वेटिव डेंटिस्ट्री विभाग  : कलर कोडेड जियोमैपिंग से दंत क्षय रोग प्रभावित क्षेत्रों में कम की जा सकती है ये बीमारी|

वर्ष 2021-22 के लिए  सबसे उच्चतम युवा इंट्रा म्यूरल शोध अनुदान प्रस्ताव अवॉर्ड     डॉ पारुल जैन, डॉ सुरुचि शुक्ला, डॉ अर्पिता भृगुवंशी, डॉ सुरेश चंद, डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह और डॉ आयुष शुक्ला को दिया गया।

प्रसिद्ध आईसीएमआर छात्रवृति पुरस्कार के लिए चयनित तीन चिकित्सा छात्रों को सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर प्रो. डीके गुप्ता, पूर्व कुलपति केजीएमयू और प्रो. उमा सिंह, डीन एकेडमिक्स, उपस्थित थे |

सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन एवं आयोजन प्रो सौमेंद्र वि. सिंह सह-संकाय प्रभारी, और डॉ निशा मणि पांडे द्वारा किया गया।

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