-मन:स्थिति को केंद्र में रखकर दी गयी दवा, पूरी तरह ठीक हो गया सोरियासिस
-वर्ल्ड सोरियासिस डे (29 अक्टूबर) पर डॉ गिरीश गुप्ता से विशेष वार्ता
सेहत टाइम्स
लखनऊ। आज वर्ल्ड सोरियासिस डे world psoriasis day (29 अक्टूबर) है। सोरियासिस एक प्रकार का त्वचा रोग है और यह ऑटो इम्यून रोगों की श्रेणी में आता है, ज्ञात हो ऑटो इम्यून रोग वे होते हैं जो मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता के डिस्टर्ब होने पर होते हैं। अनेक असाध्य रोगों के इलाज पर सफल रिसर्च के साथ ही होम्योपैथिक दवाओं की वैज्ञानिकता सिद्ध कर दुनिया को लोहा मनवाने वाले डॉ गिरीश गुप्ता ने जिन त्वचा रोगों के सफल इलाज पर शोध किया है, उनमें सोरियासिस भी शामिल है। विश्व सोरियासिस डे पर ‘सेहत टाइम्स’ ने गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) के संस्थापक व चीफ कन्सल्टेंट डॉ गिरीश गुप्ता से इस रोग को लेकर बात की।
डॉ गुप्ता ने बताया कि सोरियासिस एक ऑटो इम्यून डिजीज है इसमें शरीर पर चकत्ते, पपडि़यां पड़ जाती हैं जो कि बहुत कष्टकारक होती हैं। ऑटो इम्यून डिजीज का मतलब समझाते हुए वे कहते हैं कि जैसा कि सभी जानते हैं कि शरीर में रोगों से लड़ने का काम रोग प्रतिरोधक शक्ति करती है, लेकिन जब यही शक्ति रोगों से लड़ने के बजाय शरीर के खिलाफ काम करने लगती है तो इससे पैदा होने वाली बीमारियां ऑटो इम्यून डिजीज कहलाती हैं। सोरियासिस इसी प्रकार की एक बीमारी है जो त्वचा को प्रभावित करती है।
सोरियासिस का कारण
यह पूछने पर कि सोरियासिस होने का कारण क्या है, इस बारे में डॉ गुप्ता ने बताया कि जीवन में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, कई प्रकार की घटनाएं होती रहती हैं, जिनका प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है। विभिन्न प्रकार के सपने आना, डर लगना, दुखी रहना, मूड अच्छा न रहना, गुस्सा आना, एकाकीपन, घबराहट होना आदि-आदि। इन मन:स्थितियों के चलते रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर पड़ता है और सोरियासिस जैसे विभिन्न प्रकार के शारीरिक रोग हो जाते हैं।
कैसे करते हैं इलाज
डॉ गुप्ता बताते हैं कि सोरियासिस से ग्रस्त मरीज जब अपनी शिकायत लेकर उनके पास पहुंचता है तो सबसे पहले उसकी हिस्ट्री ली जाती है, जिसमें व्यक्ति की पसंद, नापसंद, स्वभाव, उसके साथ घटी घटनाओं आदि के बारे में पूछा जाता है, जिसमें कहीं न कहीं सोरियासिस होने का कारण नजर आ जाता है, और फिर उसके द्वारा दी गयी जानकारियों के मद्देनजर उस मरीज के लिए कौन सी दवा कारगर होगी, इसका चुनाव किया जाता है।
सांप के सपने, डर और भ्रम के कारण हुआ सोरियासिस
डॉ गिरीश ने बताया कि सोरियासिस के पीछे मन:स्थिति की कितनी अहम भूमिका है, इसके बारे में हाल के ही एक केस का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि करीब तीन-चार माह पूर्व 9 वर्षीय बच्ची उनके सेंटर पर आयी, उसके पूरा बदन सोरियासिस के दानों से भरा था। बच्ची के माता-पिता ने बताया कि उन्होंने कई त्वचा रोग विशेषज्ञों, आयुर्वेद-होम्योपैथिक डॉक्टरों को दिखाया लेकिन कोई आराम नहीं मिला था।
डॉ गिरीश ने बताया कि उनके सेंटर पर पहुंची बच्ची की हिस्ट्री ली गयी तो पता चला कि बच्ची सांप वाले तरह-तरह के वीडियो बहुत देखा करती थी, धीरे-धीरे उसे सांपों से बहुत डर लगने लगा, इसके बाद उसे हर जगह सांप होने का भ्रम लगने लगा, यही नहीं हालत यह हो गयी कि उसे सपने में भी सांप दिखायी देने लगे, बच्ची बताती थी कि सपने में दिखता था कि सांप ने कभी उसे लपेट लिया है, कभी काट लिया है, कभी सांप दौड़ा रहा है, सपने देखकर उसे जोर-जोर से घबराहट होती थी, रोने लगती थी।
डॉ गिरीश ने बताया कि इसके बाद सांप के डर, सांप के स्वप्न और सांप होने के भ्रम के लक्षणों को मुख्य रूप से केंद्रित करते हुए दवा का चुनाव किया गया। पहले उसे 15-15 दिनों की दवा दी गयी। उन्होंने बताया कि चूंकि पूर्व में इलाज के दौरान बच्ची ने कई प्रकार के मलहम का प्रयोग किया था, इसलिए शुरुआत में कुछ समय उसके दानों में वृद्धि हुई लेकिन फिर बाद में उसे लाभ होना शुरू हुआ और अभी वह दो दिन पूर्व 27 अक्टूबर को दवा लेने आयी थी, उसके दाने पूरी तरह से साफ हो गये हैं। यही नहीं उसे सांप के डर, सपने और भ्रम भी बहुत कम हो गया है। उन्होंने बताया कि बच्ची को अब एक-दो बार और दवा देकर दवा बंद कर दी जायेगी।
पढ़ाई में कमजोर, गुस्सा, अकेले में रहना अच्छा लगना, भीड़ में जाने में डर
उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि एक 26 वर्षीय युवक उनके रिसर्च सेंटर पर 16 अगस्त 2016 को आया उसने बताया कि उसे 2004 से पूरे शरीर में सोरियासिस की शिकायत थी। उसकी पीठ, पेट सभी जगह सोरियासिस के चलते घाव हो गये थे। जब मरीज की हिस्ट्री ली गयी तो पता चला कि मध्यम वर्गीय परिवार का यह मरीज पढ़ाई में कमजोर था और आठवीं की परीक्षा में फेल हो चुका था। जब भी उसे गुस्सा आता था तो वह उसे दबा देता था। मरीज के अनुसार जब उसे कोई उसकी बात को काट देता था तो वह गुस्सा हो जाता था। मरीज अकेला रहना ज्यादा पसंद करता था। भीड़ में, संकरी जगहों पर जाने पर तथा कोई भी काम शुरू करने से पहले उसे घबराहट होती थी।
डॉ गुप्ता ने बताया कि इसके लिए 237 दवायें उपलब्ध थीं, फिर इन 237 दवाओं में से पहले 15 दवायें छांटी गयीं, इसके बाद मरीज में लक्षणों के आधार पर इन 15 दवाओं में से एक दवा लाइकोपोडियम का चुनाव करके उसी दिन यानी 16 अगस्त 2016 को दो हफ्ते की दवा दी गयी। इसके बाद 30 अगस्त, 15 सितंबर, 29 सितंबर, 16 अक्टूबर, 2 नवंबर, 15 नवंबर, 30 नवंबर, 15 दिसंबर, 16 जनवरी 2017 और 17 फरवरी 2017 को क्लीनिक आया। इस तरह करीब छह माह में उसका सोरियासिस पूरी तरह से ठीक हो गया।
सोरियासिस पर शोध के परिणाम
गौरांग क्लीनिक एंड सेंटर फॉर होम्योपैथिक रिसर्च (जीसीसीएचआर) में सोरियासिस पर हुई रिसर्च के अनुसार वर्ष 1994 से वर्ष 2014 तक 162 डायग्नोस्ड सोरियासिस के केसेज का इलाज किया गया। इनमें 55 मरीजों यानी 33.95 फीसदी को स्पष्ट रूप से लाभ मिला जबकि 70 मरीजों यानी 43.21 फीसदी मरीजों को कुछ लाभ मिला, जबकि 37 मरीजों यानी 22.84 फीसदी मरीजों को लाभ नहीं हुआ। सोरियासिस पर रिसर्च का प्रकाशन दि होम्योपैथिक हेरिटेज, वॉल्यूम 40, संख्या 11, फरवरी 2015 में हुआ है।