-पाठ्यक्रम से गायब इस पद्धति के प्रति उदासीनता से हो रहा नुकसान
-सस्ती और सुलभ चिकित्सा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है नाड़ी परीक्षण का ज्ञान
सेहत टाइम्स ब्यूरो
नयी दिल्ली/लखनऊ। भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में रोगों का सटीक पता लगाने के लिए बनी नाड़ी परीक्षण ज्ञान लुप्त होता जा रहा है, जबकि महंगी-महंगी जांचों को मशीनों से कराये बिना रोग को पहचानने की अद्भुत शक्ति रखने वाली इस विधा का इस्तेमाल कर कम खर्च में कम समय में रोगी को ठीक किया जा सकता है।
विश्व आयुर्वेद परिषद अवध क्षेत्र एवं लखनऊ महानगर द्वारा शनिवार को नाड़ी परीक्षा विषय पर मुंशी पुलिया इंदिरा नगर स्थित महर्षि क्लीनिक में एक सतत चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रम (सीएमई) का आयोजन किया गया। इस सीएमई में मुख्य वक्ता के रूप में आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ अजय दत्त शर्मा ने कहा कि नाड़ी परीक्षण ज्ञान पुराने समय में जब जांच वाली मशीनें नहीं होती थीं, तबसे इतना कारगर रहा है कि इसका उपयोग सटीक तरीके से रोग का पता लगाने के लिए वैद्यजन करते थे। उन्होंने कहा कि दरअसल नाड़ी परीक्षण ज्ञान को आयुर्वेद के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये। उन्होंने बताया कि नाड़ी ज्ञान 1950 के दशक से पाठयक्रम से गायब है।
उन्होंने कहा कि आज चुनिंदा डॉक्टर ही नाड़ी परीक्षा का उपयोग करते मिलेंगे, लेकिन इसे आवश्यक बनाने के लिए पाठ्यक्रम में लाना जरूरी है, अन्यथा यह ज्ञान लुप्त हो जायेगा। उन्होंने अपने अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि मरीज के रोग का पता लगाने के लिए उसकी प्रकृति से वात, कफ, पित्त सम्बन्धी रोगों का पता लगाया जा सकता है जबकि शरीर की पैथोलॉजी जानने के लिए नाड़ी का परीक्षण करना चाहिये। डॉ शर्मा ने इस मौके पर नाड़ी परीक्षण कर रोग के बारे में भी बताया।
इस सीएमई में नाड़ी ज्ञान के बारे में अपने अनुभवों को अन्य चिकित्सकों ने भी साझा किया। मुम्बई के पोद्दार कॉलेज से आये प्रोफेसर अनिल शुक्ला ने औषधियो के मानकीकरण एवं गुणवत्ता सुधारने पर बल दिया। चिकित्सकोंं को नाड़ी परीक्षा एवं प्रकृति परीक्षण का प्रत्यक्षीकरण कराया गया।
इस अवसर पर विश्व आयुर्वेद परिषद अवध क्षेत्र के महासचिव डॉ बी पी सिंह, डॉ मनोज मिश्र, डॉ पदमाकर लाल, डॉ अनुराग दीक्षित, डॉ अरविंद सक्सेना, डॉ डी के द्विवेदी, डॉ आर सी वर्मा, डॉ अंशुमान राय, डॉ नीलेश, डॉ आरएन राठौर, डॉ प्रहलाद मौर्या ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
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