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ऐसी‍ स्थिति में पैथोलॉजी रिपोर्ट कहीं मौत का वारंट न बन जाये

याचिका पर दिल्‍ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार, दिल्‍ली सरकार, एनएबीएल व इरडा को जारी किये नोटिस

लखनऊ। पैथोलॉजी जांच की छोटी सी चूक मरीज के इलाज की दिशा बदल सकती है। आवश्‍यक है कि जांच रिपोर्ट योग्‍य पैथोलॉजिस्‍ट की देखरेख में तैयार की जाये और पूरी जिम्‍मेदारी के साथ वह पैथोलॉजिस्‍ट उस पर दस्तखत करे। कुछ ऐसी ही मंशा के साथ उच्‍चतम न्‍यायालय ने 12 दिसम्‍बर, 2017 को अपना फैसला दिया था। लेकिन अफसोस है कि देश भर में करीब 80 फीसदी जांच रिपोर्ट मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की गाइडलाइंस के विरुद्ध तैयार हो रही हैं। ऐसे में डर है कि ‘झोलाछाप’ के रिपोर्ट पर दस्‍तखत कहीं मरीज के मौत के वारंट पर दस्‍तखत न बन जायें। एमसीआई की गाइड लाइंस के मुताबिक एमसीआई में पंजीकृत विशेषज्ञ ही जांच रिपोर्ट पर दस्तखत कर सकता है।

 

इसी संदर्भ में बीती 22 फरवरी को दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश ने पैथोलॉजी रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत अयोग्‍य लोगों द्वारा हस्‍ताक्षर करने के विरोध में दायर याचिका पर केंद्र सरकार, दिल्‍ली सरकार, एनएबीएल (National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories) और इरडा (Insurance Regulatory and Development Authority)  को नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि भारत के 100 करोड़ से अधिक नागरिकों के स्‍वास्‍थ्‍य से खिलवाड़ करने का अधिकार आखिर कैसे दिया जा सकता है?

डॉ रोहित जैन

यह याचिका जयपुर के एक निजी अस्‍पताल में कार्यरत प्रैक्टिशसर्स पैथोलॉजिस्‍ट्स सोसाइटी राजस्‍थान के सचिव डॉ रोहित जैन की ओर से दायर की गयी है। डॉ रोहित जैन की ओर से एडवोकेट मृण्मोई चटर्जी और एडवोकेट वरुण देव मिश्रा ने दायर की थी। याचिका में नियम 2018 को असंवैधानिक, अल्ट्रा वाइरस, अवैध, मनमाना और जनता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला बताया गया है, क्योंकि याचिकाकर्ता के अनुसार भारत सरकार के इन नियमों के अनुसार पैथोलॉजी रिपोर्ट पर कोई भी दस्‍तखत कर सकता है, जबकि यह रिपोर्ट उपचार का आधार बनती है।

 

याचिका में कहा गया है यह नियम क्वैकेरी को बढ़ावा देता है। जिसके परिणामस्वरूप भारत में हजारों निर्दोष रोगियों की मृत्यु हो जाती है, जो बिना किसी कारण के होते हैं। याचिका में कहा गया है कि इस तरह का नियम सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा 12 दिसम्‍बर 2017 को मुख्‍य न्‍यायाधीश के आदेश का उल्‍लंघन भी है जिसमें साफ कहा गया है कि “सभी प्रयोगशाला रिपोर्टों को पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों द्वारा पैथोलॉजी में स्नातकोत्तर योग्यता के साथ हस्ताक्षरित करना है”।

 

डॉ जैन की याचिका में मांग की गयी है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में सभी राज्यों में देश भर में लागू किया जाए और अपेक्षित मानदंड या शासनादेश के उल्लंघन के बिना चल रही सभी अवैध पैथोलॉजिकल प्रयोगशालाओं को बंद किया जाए। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय से नमूना संग्रह केंद्रों, नमूना परिवहन, अधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा पैथोलॉजिकल रिपोर्ट पर इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर, पैथोलॉजी लैब की संख्या का निर्धारण करने के लिए पर दिशानिर्देश तैयार करने का अनुरोध किया। याचिका में यह भी अनुरोध किया गया है कि इरडा को भी आदेश दिया जाये कि बीमा कंपनियां दावों का निस्‍तारण करते समय यह सुनिश्चित करें कि जांच रिपोर्टों पर हस्‍ताक्षर योग्‍य वयक्ति के हैं अथवा नहीं।

 

टेस्‍ट रिपोर्ट तैयार करते समय पैथोलॉजिस्‍ट की भूमिका अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण

दरअसल पैथोलॉजी में होने वाले टेस्ट की रिपोर्ट का महत्व रोग की सही पहचान करना है, टेस्‍ट रिपोर्ट तैयार करते समय पैथोलॉजिस्‍ट की भूमिका अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण होती है, बहुत से केसेज में पैथोलॉजिस्‍ट को जांच वाले व्‍यक्ति का उपचार करने वाले चिकित्‍सक से डिस्‍कस भी करना पड़ता है, इसके बाद जो रिपोर्ट तैयार होती है, उस आधार पर चिकित्सक मरीज का इलाज करता है। ऐसे में अगर रिपोर्ट बनाते समय थोड़ी सी असावधानी इलाज की दिशा को गलत तरफ मोड़ देगी और मरीज की जान को खतरा पैदा हो सकता है। कुल मिलाकर सही रिपोर्ट देने में एक पैथोलोजिस्ट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अर्थात अगर रोग की पहचान सही नहीं हुई तो मरीज को लेने के देने पड़ सकते हैं। इस महत्व को समझकर ही सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिए हैं कि पैथोलॉजी जांच रिपोर्ट पर हस्ताक्षर मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया से पंजीकृत डॉक्टर को ही दस्तखत करने की इजाजत है।

 

डॉ जैन ने बताया कि नये नियम के अनुसार पैथोलॉजी को तीन कैटेगरी में बांटा गया है बेसिक कम्‍पोसिट, मीडियम और एडवांस्‍ड। इसमें बेसिक कम्‍पोसिट लैब के लिए एमबीबीएस, एमडी पैथोलॉजी की अनिवार्यता नहीं रखी गयी है, इसमें कोई भी दस्‍तखत कर सकता है। उन्‍होंने कहा कि जांच करने वाले की योग्‍यता को आधार मानते हुए कैटेगरी बनाना ही संविधान विरुद्ध है, क्‍योंकि जो बेसिक कम्‍पोसिट में जांच कराता है उसकी जान भी उतनी ही कीमती है जितनी एडवांस्‍ड लैबोरेटरी में कराने वाले की।