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ओटी हो या आईसीयू, कोविड काल में भी फ्रंट फाइटर बने हुए हैं बेहोशी के डॉक्‍टर

-बढ़ती मरीजों की संख्‍या और नयी जिम्‍मेदारियों के सापेक्ष 50 प्रतिशत कम हैं एनेस्‍थीसिया के डॉक्‍टर

डॉ संदीप साहू

धर्मेन्‍द्र सक्‍सेना

लखनऊ। सर्जरी के समय मरीज को दर्द के अहसास से दूर रखने वाले, गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में लगातार मरीज पर नजर रखने वाले निश्चेतक यानी बेहोशी के डॉक्टर की भूमिका आजकल वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौर में अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। ये निश्चेतक फ्रंट लाइन पर कोरोना से जंग लड़ रहे हैं क्योंकि कोरोना के मरीज की स्थिति थोड़ी भी गंभीर होते ही उसे आईसीयू में शिफ्ट कर दिया जाता है और आईसीयू को 24 घंटे संभालने की जिम्मेदारी एक निश्चेतक की होती है।

इस बारे में संजय गांधी पीजीआई के वरिष्ठ एनेस्थीसियोलॉजिस्ट डॉ संदीप साहू ने बताया कि हम लोग पूरी लगन के साथ कोविड-19 को हराने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्‍होंने बताया कि हमारे रेजीडेंट डॉक्‍टर 15 दिन की कोविड ड्यूटी करते हैं, फि‍र एक सप्‍ताह रेस्‍ट करके फि‍र 15 दिन की कोविड ड्यूटी कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि इसी तरह फैकल्‍टी 15 दिन आईसीयू में तथा 15 दिन बाहर ड्यूटी कर रही है।

डॉ संदीप ने बताया कि साधारण समय में भी एनेस्‍थेटिक्‍स की भूमिका बहुत महत्‍वपूर्ण है। अगर सर्जरी की ही बात करें तो सर्जरी से पहले मरीज की काउंसिलिंग करना, ऑपरेशन थियेटर में सर्जन के पहुंचने से पहले पहुंचता है और सर्जरी के बाद मरीज को होश में वापस लाने और मरीज के पोस्‍ट ऑप तक पहुंचने के बाद ही जाता है। इसके बाद यदि मरीज की स्थिति गंभीर हुई तो उसकी आईसीयू में देखभाल करने वाला ऐनेस्‍थेटिक ही होता है।

उन्‍होंने कहा कि देश में एनेस्‍थेटिक्‍स की कमी 50 प्रतिशत तक कमी है, इसकी सीटें बढ़ाये जाने की जरूरत है। इसका कारण है कि जैसे-जैसे लाइफ स्‍टाइल वाले रोग बढ़े हैं, जैसे कैंसर, हार्ट डिजीज के साथ ही ट्रांसप्‍लांट, एक्‍सीडेंट आदि के कारण भी सर्जरी बढ़ गयी हैं। इसके अलावा अब मॉनीटर्ड एनेस्‍थीसिया केयर का चलन हो गया है। यानी छोटी से छोटी सर्जरी जिसमें मरीज को सिर्फ हल्‍का सा सुलाना ही है, लेकिन वह भी एनेस्‍थेटिक की देखरेख में ही होगा। पहले या तो एनेस्‍थेटिक होते नहीं थे या अनट्रेंड होते थे तो कई बार छोटे ऑपरेशनों में केस गड़बड़ हुए तो अब सुप्रीम कोर्ट ने आदेश कर दिया है कि आंख का ऑपरेशन भी अगर होना है तो वहां भी एनेस्‍थेटिक चाहिये। इसके अलावा सीटी, एमआरआई, रेडियोथैरेपी, एंडोस्‍कोपी जैसे उपचार भी एनेस्‍थेटिक्‍स की देखरेख में कराया जाना है। महामारी बढ़ रही हैं, एक्‍सीडेंट बढ़ रहे हैं, सरकार ट्रॉमा सेंटर बना रही है, जाहिर है एनेस्‍थेटिक्‍स की जरूरत पड़ रही है। उन्‍होंने कहा कि दो साल पहले एमसीआई ने सीटें दोगुनी की थीं लेकिन अब भी स्थिति यह है कि करीब 50 फीसदी सीटें और बढ़ें तो डॉक्‍टर तैयार हों।

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