संक्रमण फैलने के बाद प्रत्यारोपित किडनी निकाली गयी
लखनऊ। यह रमेश की हिम्मत और पत्नी के प्रति प्यार व लगाव ही था कि गुर्दा फेल्योर का शिकार हो चुकी पत्नी को अपनी किडनी दान करने के लिए खुशी-खुशी तैयार हो गया था। उसे एक ही आशा की किरण दीख रही थी कि कम से कम उसकी जीवन संगिनी स्वस्थ हो जायेगी भले ही इसके लिए उसे अपनी एक किडनी देनी पड़ रही हो, लेकिन उसकी आशाओं का शीशा तब चकनाचूर हो गया जब उसकी दान की हुई किडनी में संक्रमण हो गया और उस किडनी को निकालना पड़ गया।
संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में बीती 8 जून को खुद की किडनी, पत्नी सरोज को डोनेट करने वाला रमेश रस्तोगी, आज सडक़ पर आने को मजबूर हो गया है। पत्नी को प्रत्यारोपित की गई उसकी किडनी भी खराब हो गई, जिसे डॉक्टरों ने बीते मंगलवार 13 जून को ऑपरेशन कर निकाल दिया है। भुक्तभोगी बीपीएल कार्ड धारक रमेश परेशान है क्योंकि उसकी डोनेट की हुई किडनी काम नहीं आई, पत्नी की हालत गंभीर बनी हुई है। वह भी कमजोर हो चुका है, किडनी डोनेट करने के बाद उसे सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।
कानपुर रोड स्थित, एसएस 1041, सेक्टर एच, एलडीए कॉलोनी निवासी रमेश रस्तोगी ने पत्नी सरोज रस्तोगी (26) को किडनी प्रत्यारोपण के लिए 5 जून को पीजीआई में भर्ती कराया। उसने बताया कि पत्नी को जीवन देने के लिए 8 जून को खुद की बाई किडनी डोनेट की, किडनी प्रत्यारेापण के बाद स्थित नॉर्मल नहीं हुई बल्कि गंभीर व जटिल हो गई। प्रत्यारोपण के बाद ही डोनेट किडनी में संक्रमण फैल गया, कई दिनों तक डॉक्टर्स द्वारा इलाज दिया गया। आखिरकार 13 जून मंगलवार को प्रत्यारोपित किडनी भी डॉक्टरों ने निकाल दी। किडनी निकालने के बाद से समयानुसार डायलिसिस करानी पड़ रही है। प्रत्यारोपण करने वाले डॉ.डीएस भदौरिया सें संपर्क नहीं हुआ जबकि डॉ.मानस सिंह ने उक्त सम्बन्ध में बात करने सें इनकार कर दिया। जबकि सीएमएस प्रो.अमित अग्रवाल का कहना है कि कई मरीजों में बॉडी दूसरे के अंगों को स्वीकार नहीं करती है, एेसे में रियेक्शन शुरू हो जाता है। दवाओं से रियक्शन कम करने की कोशिश की जाती है। भिन्न ब्लड ग्रुप के मरीजों में दिक्कतें ज्यादा आती हैं।
दूसरे ग्रुप के खून की किडनी हुई प्रत्यारोपित, डॉक्टरों पर आरोप
मरीज सरोज रस्तोगी का ब्लड ग्रुप है ए पॉजिटिव, जबकि डोनर पति रमेश रस्तोगी का ग्रुप एबी निगेटिव है। दो अलग अलग ग्रुप के खून कि किडनियां थीं, जिसके ेिलए समस्त जांचें व औपचारिकताएं पूर्ण करने के बाद प्रत्यारोपण की मंजूरी मिली थी। रमेश का कहना है कि डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से हमारी पत्नी की हालत खराब हुई है।
बीपीएल होने के बावजूद सवा लाख खर्च, अब डायलिसिस शुल्क माफ करवाना चाह रहा
रमेश ने बताया कि वह बीपीएल कार्ड धारक है। इसलिए ट्रांसप्लांट की सुविधा पूर्णतया मुफ्त कर दी गई है। इसके बावजूद एक लाख 12 हजार का खर्च आ चुका है। वर्तमान में हमारे पास पैसा नहीं है, हफ्ते में दो बार डायलिसिस करानी पड़ रही है, प्रत्येक डायलिसिस लगभग 2000 से अधिक का खर्च आ रहा है। अस्पताल प्रशासन को हमे स्टैंड बाई मोबाइल दिया जाना चाहिये। साथ ही उन्होंने कहा कि प्रत्यारोपित किडनी डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से खराब हुई है, लिहाजा अस्पताल प्रशासन को सरोज रस्तोगी के डायलिसिस का शुल्क नहीं लिया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि शुल्क माफ करने के लिए हम संस्थान के निदेशक से वार्ता करेंगे।
