Wednesday , November 19 2025

यदि सुबह-सुबह खांसी आती है तो सावधान, कहीं यह सीओपीडी तो नहीं ?

-विश्व सीओपीडी दिवस पर केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग ने आयोजित की सीओपीडी क्विज व जागरूकता शिविर

सेहत टाइम्स

लखनऊ। आज पूरा विश्व प्रदूषण की मार झेल रहा है। बढ़ते हुये वायुप्रदूषण के साथ-साथ सांस से संबन्धित बीमारियों के मरीजों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। ऐसे में लोगों को सांस से संबन्धित बीमारियों के प्रति जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष नवम्बर माह के तीसरे बुधवार को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व सीओपीडी दिवस 19 नवम्बर को ’’शॉर्ट ऑफ़ ब्रेथ, थिंक सीओपीडी’’ की थीम के साथ मनाया जा रहा है।

के.जी.एम.यू. के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा0 सूर्यकान्त ने बताया कि प्रथम विश्व सीओपीडी दिवस सन् 2002 में मनाया गया था। इस वर्ष 24वाँ विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जा रहा है, जिसमें दुनिया के 50 से अधिक देश मिलकर सीओपीडी के जोखिम कारक, बीमारी, निदान एवं रोकथाम के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (सीओपीडी) 21वीं सदी की सबसे तेजी से बढ़ती हुई श्वसन बीमारियों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार भारत में मौत का यह दूसरा कारण है। 2025 के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो सीओपीडी न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र पर एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रीय उत्पादकता पर व्यापक प्रभाव डाल रही है।

फेफड़े ही नहीं, दिल, गुर्दे व अन्य अंगों पर भी पड़ सकता है प्रभाव

इस उपलक्ष्य पर केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग में एक सीओपीडी क्विज़ का आयोजन किया गया तथा मधुसूदन चिकित्सा वाटिका में सी.ओ.पी.डी. जागरूकता शिविर का भी आयोजन किया गया। इंडियन चेस्ट सोसाइटी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डा0 सूर्यकान्त ने रोगियों एवं उनके परिजनों को सम्बोधित करते हुए कहा कि सी.ओ.पी.डी. (क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) सांस की एक प्रमुख बीमारी है, जिसके बारे में जागरूकता की आवश्यकता है। इस जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से भारत के आम जनमानस में सीओपीडी जैसी बीमारी को लेकर जल्द जांच, इलाज व इलाज में इस्तमाल होने वाले इन्हेलर्स से संबन्धित भ्रान्तियों एवं मिथको को दूर करने का प्रयास किया गया। इस बीमारी के लक्षण 30 वर्ष की उम्र के बाद प्रारम्भ होते हैं। सबसे पहला लक्षण सुबह-सुबह खांसी आना होता है। इसके बाद धीरे-धीरे सर्दी के मौसम में एवं फिर बाद में साल भर खांसी आती रहती है, तत्पश्चात बलगम भी आने लगता है। बीमारी बढ़ने पर रोगी की सांस भी फूलने लगती है। डा0 सूर्यकान्त ने बताया कि सी.ओ.पी.डी. सिर्फ फेफडे़ की ही बीमारी नही है, बल्कि बीमारी की तीव्रता बढ़ने पर हृदय, गुर्दा व अन्य अंग भी प्रभावित हो जाते है। शरीर कमजोर हो जाता है, भूख कम लगती है तथा हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं।

डॉ सूर्यकान्त ने जोर देते हुए कहा कि जिस तरह से हृदय रोगियों के लिए हार्ट अटैक एक प्राणघातक घटना है उसी तरह से जब सीओपीडी की गम्भीरता बढ़ जाती है तो उसे लंग अटैक कहा जाता है। जब लंग अटैक के परिणाम स्वरूप मरीज को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है तो उनकी मृत्यु की सम्भावना दिल के दौरे के समान ही बढ़ जाती है। सीओपीडी से बचने के लिए वायु प्रदूषण से बचें, धूम्रपान न करें, परोक्ष धूम्रपान से बचें, धूल धुआं व गर्दा वाले व्यवसाय न करें, लकड़ी के चूल्हे पर खाना न बनायें, साथ ही डा0 सूर्यकान्त ने फेफड़े स्वस्थ रखने के लिए बताया कि हरी सब्जियां व मौसम के फल खायें तथा प्राणायाम करें।

केजीएमयू की कुलपति डा0 सोनिया नित्यानन्द ने कहा कि सीओपीडी की जागरूकता बेहद जरूरी है और इस दिशा में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग सराहनीय कार्य कर रहा है।

इस अवसर पर विभाग के डॉ आर.एस.ए. कुशवाहा, डॉ सन्तोष कुमार, डॉ राजीव गर्ग, डॉ आनन्द श्रीवास्तव, डॉ ज्योति बाजपेई, डॉ अंकित कटियार, जूनियर डॉक्टर्स, रोगी और उनके परिजन भी उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में सी.ओ.पी.डी. के रोगियों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये।

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