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अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्‍यपाल माता प्रसाद का निधन

-96 वर्ष की उम्र में हुए दिवंगत, एसजीपीजीआई में ली अंतिम सांस

माता प्रसाद (फाइल फोटो)

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्‍यपाल माता प्रसाद का निधन हो गया है। वे 96 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्‍कार आज 20 जनवरी को अपरान्‍ह 2.30 बजे भैसाकुंड श्‍मशान घाट पर होगा।

उनके पुत्र उत्‍तर प्रदेश के स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के पूर्व संयुक्‍त निदेशक डॉ एसपी भास्‍कर ने यह सूचना देते हुए बताया है कि 19-20 जनवरी की मध्‍य रात्रि माता प्रसाद ने संजय गांधी पीजीआई में अंतिम सांस ली। ज्ञात हो मूलत: उत्‍तर प्रदेश के जौनपुर जिले के रहने वाले माता प्रसाद वर्ष 1993 से वर्ष 1999 तक अरुणाचल प्रदेश के राज्‍यपाल रहे थे। वर्तमान में वे यहां इन्दिरा नगर में सेक्‍टर-20 में रह रहे थे।

राजनीति में स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम को अपना आदर्श मानने वाले माता प्रसाद जिले के शाहगंज (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर 1957 से 1974 तक लगातार पांच बार विधायक रहे। 1980 से 1992 तक 12 वर्ष उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने इन्हें अपने मंत्रिमंडल में 1988 से 89 तक राजस्व मंत्री बनाया था।

केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने 21 अक्टूबर 1993 को इन्हें अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया और 31 मई 1999 तक यह राज्यपाल रहे।  पूर्व राज्यपाल एक साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते रहे। माता प्रसाद ने अपनी आत्‍मकथा झोपड़ी से राजभवन तक सहित कई पुस्‍तकें लिखी थीं। उन्होंने एकलव्य खंडकाव्य, भीम शतक प्रबंध काव्य, राजनीति की अर्थ सतसई, परिचय सतसई, दिग्विजयी रावण जैसी काव्य कृतियों की रचना ही नहीं की वरन अछूत का बेटा, धर्म के नाम पर धोखा, वीरांगना झलकारी बाई, वीरांगना उदा देवी पासी, तड़प मुक्ति की, धर्म परिवर्तन प्रतिशोध, जातियों का जंजाल, अंतहीन बेड़ियां, दिल्ली की गद्दी पर खुसरो भंगी जैसे नाटक भी रचे।

माता प्रसाद की मृत्‍यु पर अनेक लोगों ने अपना दुख जताया है तथा उनकी आत्‍मा की शांति और परिवार को दुख सहन करने की शक्ति देने की प्रार्थना की है। पूर्व परिवार कल्‍याण महानिदेशक डॉ बद्री विशाल ने माता प्रसाद की मृत्‍यु पर दुख व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि माता प्रसाद अपने समय की राजनीति में भी सद्चरित्र की मिसाल थे, लेखन और कवि में रूप में भी वह निपुण और कुशल थे, जौनपुर के छोटे से गांव से उठ कर उन्होंने अपने साथ-साथ समाज और परिवार को आगे बढ़ा कर बहुत बड़ा संदेश दिया, जो कि आज के राजनीतिक व्यक्तियों के लिये अनुकरण करने के लिये उदाहरण है। उन्‍हें डी.लिट की मानद उपाधि से भी विभूषित किया जा चुका है।