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विशेषज्ञों ने कहा, अगर सांप काट ले तो यह ध्यान रखना है कि…

-लोहिया संस्थान में सर्पदंश से बचाव पर स्वास्थ्य प्रशासन, डॉक्टरों और मीडिया कर्मियों के साथ तीन कार्यशालाएं आयोजित

सेहत टाइम्स

लखनऊ। अगर किसी को भी सांप काट ले तो सबसे पहली बात है कि तुरंत पीडि़त को अस्पताल ले जाना है, इस बीच जिन बातों का ध्यान रखना है, उनमें  घबराना बिल्कुल नहीं है, पीडि़त को चला कर नहीं, उठाकर अस्पताल ले जायें, काटी हुई जगह को दिल से दूर रखें, काटी हुई जगह पर कुछ भी नहीं करना है, न तो चीरा लगाना है, न ही काटी हुई जगह पर चूसना, न ही घाव को धोना है, न ही झाड़फूंक करानी है, सिर्फ उस जगह को किसी कपड़े से बहुत हल्के से बांध लेना है, काटी हुई जगह को ​ज्यादा हिलाना-डुलाना नहीं है। इन सभी बातों को करने से मना इसलिए किया जाता है कि काटे हुए स्थान से जहर शरीर के बाकी के हिस्सों में न फैले।

ये उस सलाह के अंश हैं जो 28 जुलाई को यहां लखनऊ स्थित डॉ राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में सर्पदंश से बचाव पर मीडिया कर्मियों के लिए आयोजित कार्यशाला में इस आशय से कहे गये कि जागरूकता फैलाने के लिए इस सलाह को हर आम और खास व्यक्ति तक पहुंचाया जा सके जिससे सांप से काटने से होने वाली मौतों को रोका जा सके। विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में सांप काटने से होने वाली मौतों का आंकड़ा कुत्ते आदि के काटने पर रैबीज से होने वाली मौतों से ज्यादा है। रैबीज से जहां प्रतिवर्ष 20,000 मौतें होती हैं, वहीं सांप के काटने से 58,000 लोगों की मौत हो जाती है, यह तो वह आंकड़ा है जो रिपोर्टेड है, जिन केसेज की रिपोर्टिंग नहीं होती है, उनको अगर मिला लें तो सांप से मौतों का आंकड़ा काफी ज्यादा हो जायेगा।

डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ के सामुदायिक चिकित्सा विभाग द्वारा फाउंडेशन फॉर पीपल-सेंट्रिक हेल्थ सिस्टम्स (FPHS), नई दिल्ली के सहयोग से, 28 जुलाई को उत्तर प्रदेश में सर्पदंश (सांप काटने) से बचाव पर केंद्रित तीन महत्वपूर्ण कार्यशालाओं का सफल आयोजन किया गया। इन कार्यशालाओं में स्वास्थ्य प्रशासन, डॉक्टरों और मीडिया से जुड़े प्रमुख लोगों ने भाग लिया और सर्पदंश की रोकथाम और इलाज से जुड़े चिकित्सा, नीतिगत और जागरूकता संबंधी मुद्दों पर चर्चा की। कार्यशाला में डॉ. चंद्रकांत लहरिया, FPHS के संस्थापक निदेशक और प्रसिद्ध जनस्वास्थ्य विशेषज्ञ ने राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों और राज्य स्तरीय रणनीतियों पर विस्तार से चर्चा की, जो “सर्पदंश रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPSE)” के अनुसार हैं। डॉ. पंकज सक्सेना, संयुक्त निदेशक, डीजीएमएच, उत्तर प्रदेश सरकार व राज्य नोडल अधिकारी (सर्पदंश) ने सर्पदंश से बचाव और प्रबंधन से जुड़े हालिया अपडेट साझा किए।

डॉ. लहरिया ने बताया कि यदि समय पर एंटी-स्नेक वेनम सीरम (ASVS) दिया जाए और मानकीकृत रेफरल प्रक्रिया अपनाई जाए, तो सर्पदंश से होने वाली मौतें पूरी तरह से रोकी जा सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि समाज में फैली भ्रांतियाँ और गलत प्राथमिक उपचार की जानकारी अक्सर समय पर इलाज में देरी करती है।

कार्यशाला में तीन प्रमुख समूहों पर विशेष सत्र रखे गए:

सरकारी अधिकारी : निगरानी तंत्र की कमजोरियों और विभिन्न विभागों के समन्वय पर चर्चा
चिकित्सक : WHO दिशा-निर्देश, ASVS के उपयोग और केस-आधारित प्रबंधन पर चर्चा
मीडिया कर्मी : सर्पदंश पर सही रिपोर्टिंग और जन-जागरूकता के महत्व पर जानकारी दी गई

इन सत्रों का उद्घाटन संस्थान के निदेशक प्रो. (डॉ.) सी.एम. सिंह ने किया और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों ने उन्हें संचालित किया। विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) एस.डी. कांडपाल और आयोजन सचिव डॉ. मिली सेंगर ने कार्यक्रम की थीम और संचालन की जिम्मेदारी संभाली। यह पहल विभागीय समन्वय, वैज्ञानिक आधार पर कार्यवाही, और समुदाय केंद्रित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे इस उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग से निपटने में मदद मिलेगी।

संस्थान का कहना है कि कार्यशालाओं ने उत्तर प्रदेश में सर्पदंश प्रबंधन के लिए एक मजबूत और संगठित रूपरेखा की नींव रखी है। FPHS और RMLIMS भविष्य में राज्य के अन्य प्रभावित जिलों में भी इसी तरह की कार्यशालाएँ आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।

मीडिया कर्मियों के साथ कार्यशाला प्रारम्भ करते हुए निदेशक प्रो सीएम सिंह ने कहा कि ऐसा देखा गया है कि सांप काटने की ज्यादातर घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं। सांप के काटने पर जो वैक्सीन लगायी जाती है वह भारत में पाये जाने वाले चार तरह के सांपों के काटने से होने वाले नुकसान से बचाती है, इसलिए सांप काटने पर कोशिश यह करें कि जल्दी से जल्दी व्यक्ति को नजदीकी अस्पताल ले जायें और ट्रीटमेंट शुरू करायें। उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर सांप ने काटा है, उस स्थान को ज्यादा से ज्यादा आराम देने की जरूरत है, इसलिए काटे हुए स्थान को ज्यादा हिलाएं नहीं। उस स्थान को कस कर न बांधें क्योंकि देखा गया है कि बांधने से गैंगरीन होने की संभावना रहती है।

डॉ. चंद्रकांत लहरिया ने कहा कि सांप काटने की ज्यादातर घटनाएं पुरुषों के साथ और 20 वर्ष से 55 वर्ष की आयु के लोगों के साथ होती हैं, इसकी बड़ी वजह यह है कि रोजी-रोटी के लिए निकलने वालों में यही वर्ग सर्वाधिक होता है। उन्होंने कहा​ कि सभी केसेज की रिपोर्टिंग न होने से नीति निर्धारकों तक सही आंकड़े नहीं पहुंचते हैं, जिससे आवश्यक नीति बनाने में दिक्कत आती है। उन्होंने बताया कि सांप काटने की घटनाओं पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 2019 में संज्ञान लिया गया तथा 2030 तक सांप के काटने से होने वाली मौतों की संख्या आधी करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होंने बताया कि सर्पदंश से मौत होने पर सरकार की ओर से 4 लाख का मुआवजा दिये जाने का प्रावधान है। उन्होंने बताया ​कि सांप के काटने पर पारम्परिक रूप से दी जाने वाली दवाओं का कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है, इसलिए इसे नहीं देना चाहिये।

एक प्रश्न के उत्तर में डॉ लहरिया ने कहा कि यदि यह पुष्टि नहीं हो पा रही है कि सांप ने काटा है अथवा नहीं, तो भी व्यक्ति को डॉक्टर से पास अवश्य ले जायें, डॉक्टर स्वयं लक्षणों के आधार पर समझ लेगा कि सांप ने काटा है अथवा नहीं। इसके बावजूद अगर उसे सांप के काटने पर दी जाने वाली वैक्सीन लग जाती है तो भी कोई नुकसान नहीं है। एक अन्य सवाल के जवाब में प्रो सीएम सिंह ने कहा कि यदि पीडि़त व्यक्ति पानी मांगता है तो उसे पानी पीने के लिए दिया जा सकता है लेकिन कोशिश यह होनी चाहिये कि व्यक्ति पानी बैठकर पीये, लेटकर नहीं1

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