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कम उम्र में शादी, कुपोषण व ज्यादा बच्चों वाली माताओं को टीबी का खतरा ज्यादा

-विश्व टीबी दिवस पर केके केके इन्स्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग एण्ड पैरामेडिकल साइन्सेज में आयोजित संगोष्ठी में डॉ सूर्यकान्त ने दी जानकारी 

सेहत टाइम्स

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय केजीएमयू के रेस्पाइरेटरी मेडिसिन विभाग के एचओडी डॉ सूर्य कान्त ने कहा है कि वे लड़कियां जो कि कुपोषण की शिकार हैं, जिनकी शादी कम उम्र में हो गई है या जिनके बच्चे ज्यादा हैं, उनको ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी होने का खतरा ज्यादा होता है। इसके अतिरिक्त जो महिलाएं आज भी लकड़ी के चूल्हे पर खाना बना रही हैं या जिनके घर में कोई बीडी/सिगरेट पीता है उन महिलाओं को भी चूल्हे के धुएं और घर में किये जा रहे धूम्रपान से टीबी होने का खतरा ज्यादा होता है।

डॉ सूर्यकान्त ने यह जानकारी आज 25 मार्च को केके इन्स्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग एण्ड पैरामेडिकल साइन्सेज, लखनऊ में आयोजित एक स्वास्थ्य चर्चा में नर्सिंग छात्र-छात्राओं सहित अन्य को सम्बोधित करते हुए दी। विश्व टीबी दिवस के मौके पर आयोजित इस चर्चा में उन्होंने यह भी बताया कि बाल एव नाखून को छोडकर शरीर के किसी भी अंग में टीबी हो सकती है। उन्होंने टीबी के कारणों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि दो सप्ताह से ज्यादा खांसी, बुखार, कमजोरी, थकान, भूख कम लगना व वजन घटना जैसे लक्षण भी हो सकते हैं। यदि रोगी को खांसी में खून आ रहा है तो टीबी होने की सम्भावना बढ़ जाती है। ऐसे लोगों को किसी भी सरकारी अस्पताल में जाकर टीबी की जांचें करानी चाहिए, इन जांचों में बलगम में टीबी के जीवाणु की जांच व सीने का एक्स-रे प्रमुख होती हैं।

डॉ सूर्य कान्त ने बताया कि प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत टीबी की जांचें व उपचार निःशुल्क होता है तथा टीबी के हर रोगी को प्रति माह 1000 रुपये पोषण भत्ता के रूप में दिया जाता है, जो उनके खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता है।

इस कार्यक्रम में नर्सिंग एवं पैरामेडिकल की निदेशक डॉ अनिता सिंह, प्रधानाचार्य, हितेश मसीह, डॉ अजय कुमार सिंह, डॉ अनिल कुमार सिंह, शिक्षकगण एवं 400 छात्र/छात्राएं उपस्थित रहीं। इस संगोष्ठी का आयोजन निदेशक डॉ अनिता सिंह द्वारा किया गया।

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