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आनुवंशिकी रोग विभाग की जरूरत को तीन दशक पूर्व ही समझ लिया था डॉ एसएस अग्रवाल ने

-भारत के प्रथम मेडिकल जेनेटिक्स एवं क्लिनिकल इम्यूनोलोजी विभाग को किया था स्‍थापित

-संजय गांधी पीजीआई में जयंती पर याद किया गया पूर्व निदेशक डॉ एसएस अग्रवाल को

सेहत टाइम्‍स 

लखनऊ। संजय गांधी पी जी आई के आनुवंशिक रोग विभाग द्वारा 5  जुलाई को  प्रो एसएस अग्रवाल की  जयंती मनाई गई। प्रोफेसर एस एस अग्रवाल एक प्रसिद्ध आनुवंशिकीविद्, प्रतिरक्षा विज्ञानी और एसजीपीजीआई के पूर्व निदेशक भी रहे।

टाटा मेमोरियल सेंटर में एडवांस्ड सेंटर फॉर ट्रीटमेंट, रिसर्च एंड एजुकेशन इन कैंसर (ACTREC) के पूर्व निदेशक प्रो अग्रवाल, भारत में मेडिकल जेनेटिक्स और क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी शिक्षा के अग्रणी थे। आनुवंशिकी और आणविक जीव विज्ञान के क्षेत्र में अपने शोध के लिए प्रख्यात, वह नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर एमेरिटस थे।

डॉ एसएस अग्रवाल ने न केवल इस  संस्थान की नींव रखी थी, उन्होंने भारत के पहले मेडिकल जेनेटिक्स  एवं क्लिनिकल इम्यूनोलोजी विभाग को स्थापित किया। उन्हें इस विषय में डीएम कोर्स शुरू करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने भारत में आनुवंशिकी रोग के विभाग  की आवश्यकता आज से 3 दशक पहले एक ऐसे समय में पहचाना, जब हम संचारी रोगों से जूझ रहे थे।

कार्यक्रम का संचालन विभाग की प्रमुख डॉ एस आर फड़के ने किया। संस्थान के निदेशक डॉ आर के धीमन और डीन डॉ अम्बेश ने इस अवसर पर डॉ एस एस अग्रवाल से जुड़ी अपनी मधुर यादें साझा की।

विभाग की पीडीसीसी छात्रा डॉ श्रीजा शंकर ने एक खूबसूरत गणेश वंदना से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई और रेसिडेंट डॉक्टर( प्रज्ञा, पूजा, आदर्शा, नीलाद्रि एवं पावना ) ने डॉ एस एस अग्रवाल को एक संगीतमय श्रद्धांजलि दी।

जीनोम टेस्‍ट अविष्‍कार किसी चमत्‍कार से कम नहीं

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ मधुलिका काब्रा, जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली की जेनेटिक्स एकाई की अध्यक्ष हैं, ने “जीनोम टेस्ट आविष्कार : एक चमत्कार” के ऊपर एक ज्ञानवर्धक और रोचक व्याख्यान दिया। उन्होंने पूरे जीवन चक्र में जेनेटिक्स के महत्व के विषय में जानकारी दी। गर्भ धारण से पहले दंपति में thalassemia, spinal muscular atrophy व fragile X  की जांच के महत्व के बारे में जनसामान्य को बताया।

अतिथि वक्ता डॉ. काबरा ने एक बार में पूरे जीनोम या 20000 जीनों को अनुक्रमित करने की नवीनतम तकनीक के उपयोग और चिकित्सा की सभी शाखाओं में इसके विविध अनुप्रयोगों के बारे में बात की। एक्सोम सीक्वेंसिंग के रूप में भी वर्णित इस तकनीक का व्यापक रूप से आनुवंशिक विकारों के निदान के लिए उपयोग किया जाता है, जिनमें से कई बहुत दुर्लभ हैं।

बौद्धिक विकलांगता, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, त्वचा विकार जैसे विकारों का सटीक निदान सामान्य परामर्श प्रदान करने और प्रसवपूर्व निदान के माध्यम से परिवार में पुनरावृत्ति को रोकने में मदद करता है। कभी-कभी सही निदान उपचार प्रदान करने में मदद करता है, जिनमें से कुछ महंगे होते हैं।

उन्होंने सभी जोड़ों के लिए थैलेसीमिया और स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी जैसे सामान्य विकारों के लिए आनुवंशिक परामर्श और परीक्षण की आवश्यकता के बारे में भी बात की। समय पर परामर्श से परिवार में आनुवंशिक विकारों की रोकथाम में मदद मिल सकती है।

उन्होंने भारत में चिकित्सा आनुवंशिकी के कई और विभागों की आवश्यकता पर बल दिया। सरकार की दुर्लभ रोग नीति का उद्देश्य आनुवंशिक विकारों के लिए चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने में मदद करना है।

ज्ञात हो कि संजय गांधी पी जी आई भारत में दुर्लभ बीमारियों के लिए उत्कृष्टता के 11 केंद्रों में से एक है। इस कार्यक्रम में लगभग 100 लोगों ने प्रतिभागिता की। कार्यक्रम का समापन जेनेटिक्स विभाग की संकाय सदस्य डॉक्टर हसीना द्वारा धन्यवाद ज्ञापित करने के साथ हुआ।

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