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निपाह वायरस : केरल से आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग की सलाह दी डॉक्टर ने

इस बीमारी से घबराने की नहीं बल्कि सतर्कता बरतने की जरूरत

 

लखनऊ. केरल में निपाह वायरस से 16 मौतें हो चुकी हैं. इस खबर के बाद से इसको लेकर सबके मन में डर बैठ गया है जबकि डरने के बजाए अगर थोड़ी सी सावधानी रखी जाए तो इससे आसानी से बचा जा सकता है. इस बारे में एक विशेष बातचीत में केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर वेद प्रकाश ने बताया कि लोगों को इससे घबराने की जरूरत नहीं है बल्कि सावधानी बरतने की जरूरत है. डॉ वेद ने कहा कि फौरी तौर पर इस बीमारी से बचने के लिए यह आवश्यक है कि केरल की तरफ से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग की जाए और यदि किसी यात्री में  इस बीमारी के लक्षण दीखते हैं तो उससे आइसोलेट करके यानी अलग वार्ड में रखकर इलाज किया जा सकता है. डॉ. वेद ने बताया कि केजीएमयू में आरआईसीयू को पूरी तरह तैयार रखा गया है. उन्होंने कहा कि यात्रियों की स्क्रीनिंग के लिए इसमें केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों के विशेष सहयोग की आवश्यकता होगी.

 

उन्होंने बताया इस बीमारी की शुरुआत ज्यादातर समुद्र तटीय इलाकों से हुई है. इसी क्रम में केरल में इस का प्रकोप सामने आया है. आपको बता दें निपाह वायरस मुख्य रूप से फ्रूट बैट यानी फल खाने वाली चमगादड़ से फैलता है. खासतौर से इन चमगादड़ों द्वारा खाए गए फलों को जो मनुष्य खाता है उसमें इस वायरस का प्रवेश हो जाता है और फिर इससे संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले दूसरे लोगों में फैल जाता है इसलिए आवश्यक यह है कि शुरुआत में इससे बचाव कर लिया जाए. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि ऐसे फल जो समुद्र के किनारे लगे पेड़ों पर पाए जाते हैं उनको खाने से अगर परहेज कर लिया जाए तो बेहतर होगा. इन फलों में नारियल, खजूर जैसे फल शामिल हैं.

 

डॉ वेद ने बताया अभी तक उत्तर प्रदेश में इसका कोई केस नहीं सुनाई पड़ा है और अगर सतर्कता बरती जाती है तो कोई केस होगा भी नहीं, इसके बावजूद हमारी टीम ने पूरी तैयारी कर रखी है अगर किसी मरीज के इससे संक्रमित होने की सूचना मिलती है तो उसको आवश्यक इलाज की सारी सुविधाएं केजीएमयू में उपलब्ध हैं. उन्होंने बताया कि यह बीमारी पहली बार मलेशिया में 1998 में निपाह ग्राम में फैली थी इसीलिए इस बीमारी का नाम भी निपाह पड़ गया.

 

उन्होंने बताया भारत में निपाह का संक्रमण पहली बार पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में 2001 में हुआ था. 2001 में ही यह बीमारी बांग्लादेश में पाम ट्री से बनी शराब के पीने से फैली थी. उन्होंने बताया इस बीमारी से संक्रमित 40 से 75% मरीजों की मृत्यु हो जाती है.

 

लक्षण

डॉ. वेद ने इस बीमारी के लक्षणों के बारे में बताया कि इस वायरस का इनक्यूवेशन पीरियड 5 से 14 दिन का होता है इसलिए लक्षण वायरस के मरीज के संपर्क में आने के 5 से 14 दिन बाद ही आते हैं सामान्य लक्षणों में सर्दी, जुकाम, बदन दर्द, सिर दर्द, उल्टी आना, पेट दर्द, खांसी आना, अचानक सांस फूलना, तेज सांस लेना, फैटल इंसेफेलाइटिस, चक्कर आना, झटके आना, बेहोशी आना, और कोमा हो सकता है.

 

ऐसे करें बचाव

उन्होंने यह भी बताया कि इससे बचाव के लिए जो कदम उठाने चाहिए उनमें खाद्य पदार्थ चमगादड़ से संक्रमित न हों, उन्हें चमगादड़ खा न पाए एवं मल मूत्र विसर्जन न कर पाए, उस फल को न खाएं जिस में चमगादड़ की खाने की संभावना हो, जमीन पर गिरे हुए फल न खाएं, नारियल से बनने वाली चीजों को ना खाएं ना पीयें. हाथ अच्छे से धोएं और बीमार मरीज से दूर रहें, साथ ही बीमार मरीज द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीजों को अलग रखें.

 

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