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घुटने के दर्द को असहनीय होने तक न ले जाइये, संभव है पूरा घुटना बदलने की जरूरत ही न पड़े

पारशियली नी रीप्‍लेसमेंट पर सीएमई का शुक्रवार को आयोजन

लखनऊ। अगर कम उम्र में घुटनों में दर्द रहना शुरू हो गया है, तो सबसे पहली बात यह है कि दर्द बढ़ने और बर्दाश्‍त की हद तक जाने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि हो सकता है कि आपके घुटने का कुछ ही भाग खराब हुआ हो, अच्‍छी बात यह है कि अब पूरा घुटना बदलने के बजाय खराब वाला भाग बदलने (partially knee transplant) से ही काम चल जाये। इससे फायदा यह रहता है कि आगे होने वाला नुकसान बच जाता है और दोबारा घुटना बदलने के चांस भी कम हो जाते हैं।

 

यह बात आज यहां गोमती नगर स्थित हेल्‍थसिटी ट्रॉमा सेंटर एंड सुपर स्‍पेशियलिटी हॉस्पिटल में आयोजित पत्रकार वार्ता में ऑथोपैडिक विशेषज्ञ डॉ संदीप कपूर और डॉ संदीप गर्ग ने कही। उन्‍होंने बताया कि कल 7 सितम्‍बर को चौथे प्रो यूएस मिश्र मेमोरियल सतत चिकित्‍सा शिक्षा (सीएमई) का आयोजन पारिशियली नी ट्रांसप्‍लांट विषय पर आयोजित किया जा रहा है। इस विषय के विशेषज्ञ यूके के मैनचेस्‍टर के डॉ फि‍लिप हीर्स्‍ट सीएमई में उपस्थित होंगे। डॉ फि‍लिप व्‍याख्‍यान के साथ केस प्रेजेन्‍टेशन भी देंगे।

 

डॉ कपूर ने बताया कि ऑर्थराइटिस फाउंडेशन ऑफ लखनऊ और हेल्‍थ सिटी के तत्‍वावधान में होने वाला आयोजन हम लोग तीन साल से कर रहे है, यह चौथी सीएमई है।

नी रीप्लेसमेंट के बारे में मॉडल पर समझाते डॉ संदीप गर्ग और डॉ संदीप कपूर।

डॉ कपूर और डॉ गर्ग ने बताया कि सरकार द्वारा इम्‍प्‍लांट के दाम कम किये जाने के बाद इस सर्जरी में लगने वाला इम्‍प्‍लांट अट्यून जो पहले 2 लाख रुपये का आता था, अब 62 हजार रुपये का आ रहा है। उन्‍होंने बताया कि घुटना एकदम से खराब नहीं होता है, घुटने में पहले अंदरूनी परत खराब होती हैं, फि‍र धीरे-धीरे पूरा घुटना खराब हो जाता है। इसलिए बेहतर यही रहता है कि जितनी जल्‍दी प्रत्‍यारोपण हो जाये, अच्‍छे परिणाम की संभावना उतनी ही जल्‍दी मिलती है।

 

उन्‍होंने बताया कि एक बीमारी होती है जिसमें मरीज को सिर्फ सीढ़ियां चढ़ने में दर्द होता है, उन्‍होंने बताया कि इस बीमारी की डायग्‍नोसि‍स कराती है लेकिन एक्‍स रे में भी कुछ शो नहीं होता है। बीमारी शो न होने के बाद मरीज की ऑर्थोस्‍कोपी से जांच कर तब रोग का पता लगाया जाता है। इस समस्‍या को एपटेलो फीमोरल रीप्‍लेसमेंट से ठीक किया जाता है। उन्‍होंने बताया कि ऑस्‍टोअर्थराइटिस का रोग आजकल नवजवानों में भी देखा जा रहा है। उन्‍होंने बताया कि सीएमई यहीं हेल्‍थसिटी अस्‍पताल में ही होगी।

 

 

 

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