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बहुत दुर्लभ और जटिल बीमारी है डिस्‍टोनिया स्‍टॉर्म, सफल ऑपरेशन

शुरुआती समय में इलाज न कराया जाय तो चौबीसों घंटे होता रहता है शरीर में मूवमेंट
डॉ आदित्य गुप्ता

गुरुग्राम/लखनऊ। डिस्टोनिया स्टॉर्म बीमारी एक बहुत दुर्लभ और जटिल बीमारी है। इस बीमारी से पीड़ित के शरीर के अंगों का पोस्चर बहुत ही विचित्र हो जाता है। उन्हें अत्यधिक दर्द होता है और शरीर में ऐंठन महसूस होती है। शुरुआती अवस्था में इसका इलाज नहीं कराने पर एक समय के बाद ऐसी परेशानियां विकसित हो जाती हैं, जिससे रोगी की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जाती है और शरीर में चौबीसों घंटे मूवमेंट होता रहता है। यही कारण है कि इस बीमारी को मूवमेंट डिसऑर्डर के नाम से भी बुलाया जाता है।

जारी विज्ञप्ति में यह जानकारी देते हुए आर्टेमिस हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जरी विभाग के निदेशक, डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने बताया है कि इस बीमारी से पी‍डि़त मरीज पिछले 15 महीनों से सरवाइकल डिस्टोनिया से पीड़ित था और उसके शरीर की गतिविधियां अनियंत्रित हो चुकी थीं। उन्‍होंने बताया कि मरीज को आईसीयू में डिस्टोनिया स्टोर्म नामक बहुत ही गंभीर स्थिति में भर्ती कराया गया था। यह बीमारी बहुत ही दुर्लभ है और स्वाभाविक रूप से एक घातक मूवमेंट डिसऑर्डर है। कई विशेषज्ञों और अस्पतालों में दिखाने के बाद उन्हें एम्स के डॉक्टरों ने हमारे पास भेजा था।

उनका कहना है कि रोगी के शरीर की गतिविधियां पूरी तरह से अनियंत्रित हो गई थीं और इसलिए उनके शरीर की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए उन्हें सीडेशन की अत्यधिक खुराक पर रखा गया था। यही नहीं, सीडेशन की अधिक खुराक की पूरी करने के लिए और उनके शरीर की गतिविधियों को पूरी तरह से रोकने के लिए एक ब्रीदिंग ट्यूब लगाई गई थी। यहां तक कि उन्हें 5 दिनों तक मैकेनिकल वेंटिलेटर पर रखने के बाद भी दवाएं पूरी तरह से शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित नहीं कर पा रहीं थीं और इसलिए टीम ने अगला उपचार करने का फैसला किया।’’

जब मरीज को एमरजेंसी में भर्ती कराया गया था, तो देखा गया कि रोगी मूत्राशय (यूरिनरी ब्लैडर) पर अपना नियंत्रण खो चुका है। उसे मूत्र संक्रमण और निमोनिया हो गया था जिसे सर्जरी से पहले कम किया जाना था। आईसीयू में दी गई दवाओं और इंजेक्शन से वह लगभग बेहोशी की अवस्था में ही रहा। उसकी हालत स्थिर हो जाने के बाद उसे सर्जरी के लिए तैयार किया गया। डाक्टरों की टीम ने डीप ब्रेन स्टिमुलेशन सर्जरी करने का फैसला किया जो मस्तिष्क के लिए पेसमेकर की तरह होता है। ऐसी गंभीर स्थिति में डीबीएस के साथ साइबर नाइफ तकनीक के इस्तेमाल करने के बाद टीम के लिए यह देखना बेहद आश्चर्यजनक और विस्मयकारी था की उसकी शारीरिक गतिविधि शुरू हो गई। इसके बाद उसे जल्द ही आईसीयू से बाहर निकाल दिया गया।

मरीज की पत्नी संगीता का कहना है कि, “वह पिछले एक साल से इस बीमारी से पीड़ित थे। उन्हें कई अस्पतालों, न्यूरोलॉजिस्ट और मूवमेंट डिसआर्डर स्पेशिलिस्ट को दिखाया गया लेकिन डिस्टोनिया मूवमेंट को नियंत्रित नहीं किया जा सका और हम लगभग उम्मीद खो चुके थे। लेकिन सर्जरी के बाद मेरे पति बिल्कुल ठीक हो गए हैं और अब हमेशा की तरह सामान्य हैं।