बच्चों में बढ़ता स्क्रीन टाइम- भाग-4

यह देखा गया है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों में ज्यादा स्क्रीन टाइम की वजह से ‘कॉग्निटिव स्किल’ विकसित नहीं हो पाती है। इसका सीधा सा मतलब ये है कि बच्चे सही और गलत में फर्क नहीं कर पाते, वे जो देखते हैं वही सीखते हैं, कई बार देखा गया है कि बच्चे कार्टून की तरह ही बोलने की कोशिश करते हैं। कई पेरेंट्स ये शिकायत लेकर भी आते हैं कि बच्चे बहुत ज्यादा एग्रेसिव हो रहे हैं। जीवन के शुरुआती समय में वयस्क निर्देशित टेलीविजन सामग्री के एक्सपोजर से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास बाधित हो सकता है।
एक अध्ययन से पता चलता है कि अधिक स्क्रीन समय वाले बच्चों में देर से भाषा का विकास, सीखने की समस्याएं, और पढ़ने की समस्याएं ज्यादा पाई गयी। हिंसक वीडियो गेम के संपर्क में आने वाले किशोरों में शत्रुता, मार-पीट, झगड़े और खराब स्कूल प्रदर्शन देखा गया। ऐसे बच्चे जो 1 और 3 साल की उम्र में टेलीविजन के शुरुआती संपर्क में ज्यादा थे, 7 साल की उम्र में आने पर उनमें कम ध्यान देने की समस्याए (अटेंशन प्रॉब्लम) पाई गईं। टीवी पर देखने से नशीली दवाओं और मादक द्रव्यों के सेवन का बढ़ावा मिलता है, जैसे मूवी में हीरो को सिगरेट, शराब पीते हुए देखने पर बच्चों को इसकी लत लग सकती है।
एक बात और ऐसा नहीं है कि मोबाइल फोन, टीवी, कंप्यूटर, टैबलेट से केवल परेशानिया ही आती हैं, इसके काफी फायदे भी हैं। बच्चे इन्टरनेट से अपनी पढाई-लिखाई, कोई नई विधा सीखने, नई-नई चीजों को जान पाते हैं, बस ध्यान इतना रखना है कि समय सीमा मानक के अनुसार हो।

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