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नवजात ही नहीं, बड़े बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य पर भी नजर रखेंगी आशा कार्यकत्रियां

-होम बेस्ड केयर फॉर यंग चाइल्ड कार्यक्रम बच्चों के लिए बनेगा संजीवनी

-डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने स्वास्थ्य की नई योजना का बेहतर तरीके से संचालन के दिए निर्देश

सेहत टाइम्‍स
लखनऊ। अब आशा कार्यकत्री नवजात शिशु ही नहीं बल्कि बड़े बच्चों की सेहत का भी हाल लेंगी। लक्षण के आधार पर उन्हें डॉक्टर के पास ले जायेंगी। इलाज उपलब्ध कराने में मदद करेंगी। बच्चों की मृत्युदर रोकने के लिए नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) की तरफ से होम बेस्ड केयर फॉर यंग चाइल्ड कार्यक्रम की शुरुआत हुई है।

चिकित्‍सकों का कहना है कि बच्चे सबसे ज्यादा निमोनिया, डायरिया, कुपोषण समेत दूसरी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। शुरुआती लक्षणों को पहचान कर इलाज शुरू कर बीमारी को गंभीर होने से रोका जा सकता है। बच्चों की मृत्युदर में भी कमी ला सकते हैं। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने बताया कि एनएचएम की ओर से होम बेस्ड केयर फॉर यंग चाइल्ड कार्यक्रम (एचबीवाईसी) बच्चों के लिए संजीवनी बनेगी। इसके तहत आशा बच्चों का वजन, लंबाई आदि लेंगी। आस-पास का परिवेश देखेंगी। स्वास्थ्य एवं पोषण व्यवहारों को बढ़ावा देने के लिए घर आकर बच्चों की सेहत का हाल लेंगी। बच्चे को तीन, छह, आठ, 12 और 15 माह होने तक देखेंगी। अतिरिक्त गृह भ्रमणो की व्यवस्था होम बेस्ट केयर फॉर यंग चाइल्ड कार्यक्रम के अन्तर्गत की गयी है।

79 पोषण केंद्र में संवारी जा रही बच्चों की सेहत


डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने बताया कि बीमार बच्चों के बेहतर इलाज के लिए सिक न्यूबॉर्न केयर इकाई स्थापित की जा रही है। इसमें 28 दिन तक के नवजात शिशुओं तथा कम वजन के बच्चों को भर्ती किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि कुपोषित बच्चों में मृत्यु की सम्भावना नौ गुना अधिक होती है। प्रदेश में 79 पोषण पुनर्वास केन्द्र इकाइयां संचालित हैं। इन इकाइयों में गम्भीर रूप से कुपोषित जटिल बच्चों को भर्ती कर उपचार किया जाता है। साथ ही माता-पिता को बच्चों की घर पर उचित देखभाल करने तथा खान-पान की जानकारी देकर कुपोषण से बचाव के लिए जागरूक किया जाता है।

अफसर करें कार्यक्रम की समीक्षा


डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि एचबीवाईसी कार्यक्रम की सीएमओ और एनएचएम के अधिकारी समय-समय पर समीक्षा करें। स्थलीय निरीक्षण करें, ताकि कार्यक्रम को बेहतर तरीके से लागू किया जा सके। समय-समय पर आशा व अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान किया जाये। शिशुओं में होने वाली बीमारियों को लक्षणों की पहचान की बारीकियां सिखाई जायें।

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