मुंबई के न्यूरोजेन इंस्टीट्यूट में जन्मजात मानसिक रोगों का इलाज संभव, 16 दिसम्बर को लखनऊ में फ्री कैम्प
लखनऊ, 22 नवंबर। जन्म से मस्तिष्क में समझने की शक्ति को पहचानने वाले तंत्र के कम या ज्यादा काम करने के कारण बच्चा कभी किसी चीज को सही समझता है तो कभी सही नहीं समझता। ऑटिज्म रोग के शिकार ऐसे बच्चे बहुत हाईपरएक्टिव होते हैं। लेकिन जन्मजात मानसिक विकृति के शिकार आटिज्म के बच्चों को पूरी जिंदगी इस दिक्कत के साथ बिताना अब मजबूरी नहीं रहा, क्योंकि ऐसे बच्चों में पैदाइशी इस न्यूरोलॉजिकल विकार का इलाज स्टेम सेल तकनीक के साथ-साथ पुनर्वास से किये जाने के बहुत अच्छे परिणाम सामने आये हैं।
यह जानकारी नवी मुम्बई के नेरुल स्थित न्यूरोजेन ब्रेन एंड स्पाइन इंस्टीटयूट की डॉ नंदिनी गोकुलचंद्रन ने आज यहां आयोजित एक प्रेस वार्ता में देते हुए बताया कि संस्थान स्पाइनल कॉर्ड इंजुरी, मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी, ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी जैसे रोगों का इलाज सफलता पूर्वक कर रहा है। उन्होंने कि अगर हम ऑटिज्म की बात करें तो ऑटिज्म भी एक प्रकार की मानसिक विकृति है जिसमें बच्चों के दिमाग में मौजूद सेंस का संतुलन बराबर नहीं होता है, उनमें यह संतुलन कभी ज्यादा होता है तो कभी कम, जिस कारण उनका व्यवहार भी सामान्य बच्चों से अलग होता है। लेकिन अब हमारे संस्थान ने पहली बार इसका सफल उपचार खोजा है, इसमें बच्चे के मस्तिष्क के असंतुलित सेंस को उसी के बोन मैरो के स्टेम सेल से संतुलित किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस रोग की पहचान के लिए पहले पेट सीटी स्कैन के माध्यम में ब्रेन की स्टडी की जाती है, जिसमें साफ पता चल जाता है कि ब्रेन का कौन सा हिस्सा काम नहीं कर रहा है।
डॉ नंदिनी ने बताया कि शुरुआत में सात दिन के उपचार के तहत हम अपने संस्थान में बच्चे को सात दिनों के लिए भर्ती करते हैं इसमें पहले दिन स्टेम थेरैपी की जाती है। इसमें बच्चे की कमर से बिना किसी चीर-फाड़ के बोन मैरो निकालते हैं तथा फिर उस बोन मैरो से स्टेम सेल निकालकर बच्चे की रीढ़ के पानी में डाल देते हैं जिससे स्टेम सेल पानी के साथ मस्तिष्क तक पहुंच जाता है और वहां वह मस्तिष्क को रिपेयर करना शुरू कर देता है। इसके बाद बाकी छह दिन मरीज को अनेक प्रकार की बातें सिखायी जाती हैं साथ ही उसके दिमाग की स्थिति पर नजर रखी जाती हैं। इसके लिए उसे अनेक बातों का प्रशिक्षण दिया जाता है। फिर यही प्रशिक्षण बच्चे को घर पर करवाने के लिए माता-पिता से कहा जाता है। इसके बाद तीन माह बाद बच्चे को बुलाकर उसकी जांच की जाती है। तथा छह माह बाद बच्चे का सीटी स्कैन कराकर स्थिति देखी जाती है। उन्होंने बताया कि हमारा संस्थान स्टेम सेल थेरेपी और रिहैबिलेशन के माध्यम से असाध्य न्यूरोलॉजिकल विकारों से पीड़ित मरीजों के लिए नई उम्मीद की तरह है।
न्यूरोजेन बीएसआई की स्थापना स्टेम सेल थेरेपी के जरिए सुरक्षित और प्रभावी तरीके से असाध्य न्यूरोलॉजिकल विकारों से पीड़ित मरीजों की मदद करने और उनके लक्षणों और शारीरिक विकलांगता से राहत प्रदान करने के लिए की गई है। न्यूरोजेन ब्रेन ऐंड स्पाइन इंस्टीट्यूट न्यूरोलॉजिकल विकार मसलन, ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता, ब्रेन स्ट्रोक, मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी, स्पाइनल कॉर्ड इंजुरी, सिर में चोट, सेरेबेलर एटाक्सिया, डिमेंशिया, मल्टीपल स्केलेरॉसिस और न्यूरोसाइकिएट्रिक विकार के लिए स्टेम सेल थेरेपी और समग्र पुनर्वास प्रदान करता है। अब तक इस संस्थान ने 60 से अधिक देशों के 6000 मरीजों का सफलतापूर्वक उपचार किया है।
डॉ नंदिनी ने जानकारी देते हुए बताया कि न्यूरोजेन ब्रेन ऐंड स्पाइन इंस्टीट्यूट न्यूरोलॉजिकल विकारों से पीड़ित मरीजों के लिए लखनऊ में आगामी 16 दिसंबर को एक निःशुल्क कार्यशाला व ओपीडी परामर्श शिविर का आयोजन कर रहा हैं। इसमें स्पाइनल कॉर्ड इंजुरी, मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी, ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी इत्यादि विकारों से पीडि़त मरीजों को देखा जायेगा। इस निःशुल्क शिविर में परामर्श के लिए समय लेने के लिए मोना (मोबाइल नंबर- 09920200400) या पुष्कला (मोबाइल नंबर- 09821529653) से संपर्क किया जा सकता है।
इस मौके पर आटिज्म का शिकार लखनऊ का रहने वाला सात साल का बच्चा ओम रमन अपने पिता तथा स्पीच थेरेपिस्ट इमरान के साथ उपस्थित था, ओम के पिता ने अपने अनुभव सुनाते हुए बताया कि किस प्रकार उनके बच्चे में चमत्कारिक तरीके से परिवर्तन आया है। और अब ओम वह सब कर रहा है जो पहले करने में असमर्थ था। उन्होंने बताया कि ओम की मां गर्भावस्था के समय डायबिटीज की शिकार थी और गर्भस्थ शिशु की हृदय गति कम होने के कारण तय तारीख से एक दिन पूर्व सिजेरियन डिलीवरी करनी पड़ी थी। पैदा होने के बाद शिशु में रक्त शर्करा, हृदय गति और ऑक्सीजन का स्तर सामान्य दर से कम दर्ज किया गया, जिसके चलते उसे तत्काल चिकित्सा सहायता दी गई थी। ओम ने सफलतापूर्वक इस कठिनाई को पार किया और उसका सामान्य विकास शुरू हुआ। हालांकि शुरुआती महीनों के दौरान वह कुछ समय तक लड़खड़ा कर गिर पड़ता था, लेकिन 15 महीने की उम्र तक वह चलने में कामयाब रहा और 17 महीने की उम्र तक एकाध शब्द बोलना शुरू कर दिया। 18 से 20 महीने की उम्र के दौरान उसके नेत्र-संपर्क और संवाद क्षमता में कुछ प्रतिगमन देखा गया।उसकी एकाग्रता की अवधि में गिरावट आ गई, सामाजिक मेलजोल भी बाधित हुआ। ढाई वर्ष की उम्र में एक बाल-विकास चिकित्सक ने बताया कि ओम ऑटिज्म का शिकार है। इसके बाद कई तरह के नैदानिक परीक्षणों के बाद मनोचिकित्सक ने भी इसकी पुष्टि की।
ओम की समस्या के स्पष्ट होने के बाद उनके माता-पिता ने बताई गई स्पीच थेरेपी, व्यावसायिक थेरेपी और विशेष शिक्षा के साथ-साथ होम्योपैथिक दवाओं से उपचार जारी रखा। ओम जब छह वर्ष का हुआ तो इंस्टीट्यूट का पता चलने पर उसका संस्थान में एक साल पूर्व नवम्बर 2017 में इलाज शुरू किया गया। डॉ नंदिनी ने बताया कि ऑटिज्म सामान्यतः लड़कियों के मुकाबले लड़कों में अधिक पाया जाता है। हालांकि सामान्य तौर पर तीन वर्ष की उम्र में बच्चों में इसके लक्षण स्पष्ट होने लगते हैं, लेकिन कुछ मामलों में यह काफी बड़ी उम्र के बाद उभरता है। इस विकार की ईटियोलॉजी (सटीक कारण) और पैथोफिजिओलॉजी के बारे में बेहद अनभिज्ञता है, लेकिन अनुसंधानों ने इसके लिए जेनेटिक्स (आनुवांशिकता), चयापचय या न्यूरोलॉजिकल कारकों, कुछ विशेष प्रकार के संक्रमणों जन्मके पूर्व या प्रसवोत्तर पर्यावरण आदिकी ओर इशारा किया है।’’
डॉ नंदिनी ने बताया कि उनकी 14 से ज्यादा रिसर्च इंटरनेशनल जरनल में प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि इसके इलाज की सफलता में भारत अग्रणी रहा है, दूसरे नम्बर पर चीन तथा तीसरे नम्बर पर अमेरिका है।